फिर सताने लगा बाढ-विस्थापन का दंश, 15 जून से शुरू हो जाती है कोसी के लोगों की अग्निपरीक्षा, इस तरह काटते हैं जीवन

कोसी का जलस्‍तर बढ़ने के साथ ही लोगों की परेशानी भी बढ़ने लगी है। यहां के लोगों की परेशानी 15 जून से बढ़ने लगी है। हर साल यहां के लोग बाढ़ का दंश झेलने को मजबूर हैं। इस दौरान ये लोग घर छोड़ कर दूसरे जगह चले जाते हैंैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 04:48 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 04:48 PM (IST)
फिर सताने लगा बाढ-विस्थापन का दंश, 15 जून से शुरू हो जाती है कोसी के लोगों की अग्निपरीक्षा, इस तरह काटते हैं जीवन
कोसी का जलस्‍तर बढ़ने के साथ ही लोगों की परेशानी भी बढ़ने लगी है।

सरायगढ़(सुपौल) [विमल भारती]। कोसी के गांव में बसे लोगों को फिर से सताने लगा बाढ-विस्थापन का दंश। प्रतिवर्ष 15 जून वहां के लोगों के लिए चेतावनी का दिन होता है, 15 सितंबर तक लोग भयाक्रांत रहते हैं।

वर्ष 2010 में कोसी के प्रलयंकारी बाढ़ और कटाव के कारण सैकड़ों परिवार विस्थापित हुए थे। वैसे परिवारों में से अधिकांश अभी भी पूर्वी तटबंध पश्चिमी गाईड बांध और विभिन्न स्थानों पर शरण ले रखे हैं। सरकार द्वारा आर्थिक पुनर्वास की घोषणा वैसे परिवारों के लिए अभी भी छलावा बना हुआ है। 15 जून से 15 सितंबर के बीच कोसी नदी में बाढ़ का समय हुआ करता है। उस दौरान कोसी के पेट में बसे लोगों को कई प्रकार के झंझावातों से गुजरना पड़ता है। जब लोगों के घरों में पानी होता है तब लोग अपने और अपने मवेशी तथा अनाज के बचाव के लिए परेशान हो उठते हैं। उन्हें विस्थापन के लिए बाध्य होना पड़ता है। इस बार भी जैसे-जैसे जून माह बीतता जा रहा है वैसे-वैसे लोगों के दिलों-दिमाग में पिछले कुछ वर्षों की कहानी याद आने लगी है।

सुरक्षित ठिकाने की तलाश करने लगे हैं लोग

जून से सितंबर माह के कठिन सफर को तय करने के लिए कोसी के गांव के लोग अपने सुरक्षित ठिकानों की तलाश में जुट गए हैं। कुछ लोग नदी के किनारे से अपने-अपने घरों को उंचे स्थानों पर ले जाने लगे हैं तो कुछ संभावित बाढ़ और कटाव के खतरे को भांपने में लग गए हैं। कैसा रहेगा इस बार कोसी का कहर। क्या फिर से गांव-गांव में घुसेगा बाढ़ का पानी। पानी घुसने के बाद माल-मवेशी और अनाज को कैसे बचाया जा सकता है। गांव में नाव की कितनी उपलब्धता है। विपरीत समय आने पर प्रशासन के अधिकारी कितने नाव उपलब्ध करा सकते हैं।

क्या गांव में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध होगी। इस तरह के कई सवाल हैं जो कोसी के गांव में रह रहे लोगों के लिए चर्चा का विषय है। लोग आपस में मिलते जुलते उपरोक्त ङ्क्षबदुओं पर ही बातें करते हैं और फिर उसके निदान के रास्ते भी ढूंढ रहे हैं। सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड क्षेत्र में 12 से अधिक ऐसे गांव है जहां प्रतिवर्ष बाढ़ से तबाही होती रही है। लौकहा, तकिया, बाजदारी, उग्रीपट्टी, गौरीपट्टी, सियानी, कटैया, ढोली, झखराही, कटैया, भुलिया, औरही, मौरा, बनैनियां पलार, बलथरवा पलार, सनपतहा डिह सहित अन्य गांव है जहां बाढ़ के समय चार से पांच फीट तक पानी बहता रहता है।

डूब जाती है फसल

कोसी के गांव में लगाया गया फसल बाढ़ के समय अक्सर डूब जाया करता है। इससे किसानों को भारी नुकसान होता है। पिछले वर्ष भी किसानों को अपनी फसलों से हाथ धोना पड़ा था। इस बार भी मूंग की फसल को नुकसान होने की बातें कही जा रही है। कोसी में जो भी लोग बसे हैं उसका मुख्य पेशा खेती है। लेकिन खेती सुरक्षित नहीं रहा करता जिस कारण लोग तबाह होते रहते हैं।

तटबंध और स्पर पर शरण ले रखे हैं लोग

वर्ष 2010 में कोसी ने जो प्रलय दिखाया उसे विस्थापित लोग अभी भी जगह-करजगह शरण ले रखे हैं। नदी के कछार पर छोटे-छोटे स्परों पर बसे लोग किस तरह से ङ्क्षजदगी व्यतीत करते हैं उसे देखने वाला कोई नहीं होता है। विस्थापित परिवार के अधिकांश पुरुष बाहर पलायन का घर का खर्चा ही चला रहे हैं। कोसी के कटाव तथा बाढ़ के बीच जान बचाकर भागे लोग के परिवार में बच्चों का पढ़ाई भी बंद हो गया है। बड़े घराने के लोग भी तटबंध के किनारे फूस के छप्पर में रह रहे हैं। ऐसे लोगों को अभी तक आर्थिक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है। एक बार फिर जब कोसी में पानी का उतार-चढ़ाव शुरू हुआ है तो लोगों का कलेजा हिलने लगा है।कर  

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