Supaul : शुरू हो गई बाढ़ की अवधि, अब विभाग खोज रहा नाव, हर साल लोग इसी तरह झेलते हैं परेशानी
कोसी का जलस्तर लगातार बढ़ते जा रहा है इससे बाढ़ का खतरा शुरू हो गया है। लेकिन विभाग की ओर से अब तक कोई तैयारी नहीं की गई है। यहां तक की नाव के लिए अब विभाग इधर उधर खोज रहा है।
सुपौल [भरत कुमार झा] । कोसी अपनी विचित्रता के लिए विख्यात है। यह कब किधर का रुख अख्तियार कर ले इसे समझ पाना कठिन है। कब कहां काटना शुरू कर दे और कब कहां बालू का टीला खड़ा दे यह कोसी की अपनी मर्जी है, अपना रवैया है। हर साल बाढ़ आनी है, लोगों को बसना-उजडऩा है। इन सबके बीच बाढ़ से बचाव के लिए प्रशासनिक व्यवस्था भी कोसी से कम विचित्र नहीं है। कोसी की कोख में बसर करने वाले लोगों की ङ्क्षजदगी ही होती है नाव। बाढ़ के दिनों में नाव नहीं हो तो कोसी के दोनों तटबंधों के बीच बसी आबादी की ङ्क्षजदगी सांसत में फंस जाए। प्रशासनिक विचित्रता की स्थिति यह कि बाढ़ अवधि 15 जून से शुरू है और अब विभाग नाव ढ़ूंढ़ रहा है। अभी तक नावों का पंजीयन नहीं हो पाया है। हालांकि अंचलाधिकारी सुपौल ङ्क्षप्रस राज का कहना है कि नावों का निबंधन 01 जुलाई से 30 सितंबर तक के लिए होता है इसलिए समय से सब हो जाएगा।
नाव के बिना कोसी में मुश्किल है जीवन
दो तटबंधों के बीच बसे लोगों के लिए रोजमर्रा के सामान की जरूरत हो तो नाव, खेतीबारी के लिए निकलना हो तो नाव, मवेशी को चारा चाहिए तो नाव। यानी, बगैर नाव के कोसी में जीवन मुश्किल है। यह बाढ़ के मौसम के अतिरिक्त दिनों की दिनचर्या हुआ करती है इसके लिए लोग अभ्यस्त होते हैं। जब कोसी का तांडव शुरू होता है तो लोग लाचार हो जाते हैं। उस वक्त सरकार की ओर से नावों की भी लंबी-चौड़ी सूची जारी होती है। गांवों में पानी का प्रवेश हो जाता है जीवन मौत से जूझने लगता है सरकारी महकमा प्रखंड से कागज पर ही नाव छोड़ देता है और कागज की कश्ती पर डूबती-उतराती ङ्क्षजदगानी चलती रहती है।
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चल रही कागजी कार्यवाही
नावों के रजिस्ट्रेशन के लिए 14 जून से तिथि निर्धारित की गई। पहले दिन किसनपुर प्रखंड क्षेत्र में निबंधन और एकरारनामा आदि की प्रक्रिया की जानी थी। यहां अब तक 22 नावों को सत्यापित किया गया है लेकिन एक भी नाव का निबंधन नहीं हो पाया है। दूसरे दिन सुपौल में किया जाना था जहां अब तक 59 नाव की आवश्यकता है इसको चिह्नित किया गया है लेकिन निबंधन नहीं हो पाया है। सरायगढ़ भपटियाही में 25 नाव सत्यापित किए गए हैं। बसंतपुर में 17 जून, मरौना में 18 जून और निर्मली में 19 जून को यह प्रक्रिया की जानी है।
सरकारी नाव के अलावा निजी नावों का होता है पंजीयन
बाढ़ के दिनों के लिए सरकारी नाव के अलावा निजी नावों का पंजीयन होता है। नाव पर लाल रंग का झंडा टंगा होना आवश्यक है ताकि लोग ये समझ सकें कि ये सरकारी नाव है। यह निश्शुल्क सेवा है। नाव भले ही नदी में छोड़ दी जाती हो, लेकिन पीडि़तों के लिए बगैर शुल्क कोई सेवा नहीं मिलने वाली।
स्थानीय नाविक ही चलाते हैं सरकारी नाव
नाव चलाने के लिए अंचलाधिकारी नाविकों का चयन करते हैं। नाव सहित उसका निबंधन परिवहन विभाग से कराया जाता है फिर जगह निर्धारित करते हुए नाव उसके जिम्मे कर दी जाती है एक नाव पर तीन नाविक मान्य होते है. जिसका भुगतान सरकारी स्तर से किया जाता है इसकी निगरानी राजस्व कर्मी के जिम्मे होती है. अब इनके भुगतान की बात करें तो पिछले साल का भुगतान अब किया जा रहा है.
नाव के लिए मचती है हाय-तौबा
प्रशासनिक इस व्यवस्था के कारण जब कभी कोसी कहर मचाती है तो नाव के लिए हाय-तौबा मची रहती है। कोसी पीडि़तों को नाव नहीं मिल पाती है।