सुपौल : पानी की किल्लत से जूझ रहे लोग, सरकारी और निजी तालाबों पर लोगों ने कर रखा है अतिक्रमण

सुपौल में लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी अतिक्रमित तालाबों का जीर्णोद्धार नहीं हो रहा है। यही हाल रहा तो आने वाले सालों में कई तालाब का अस्तित्व मिट जाएगा। इस पर ध्‍यान नहीं दिया जा रहा है।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Wed, 21 Apr 2021 03:57 PM (IST) Updated:Wed, 21 Apr 2021 03:57 PM (IST)
सुपौल : पानी की किल्लत से जूझ रहे लोग, सरकारी और निजी तालाबों पर लोगों ने कर रखा है अतिक्रमण
सुपौल में लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं।

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार(सुपौल)। जल ही जीवन है लेकिन इसके लिए हमने कुछ किया ही नहीं। जिन पेयजल स्रोतों ने हमारी पहचान बनाई, उसे आज हम बर्बाद होने के लिए छोड़ दिए हैं। अगर उपेक्षा का यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ी को पोखर व तालाब सिर्फ तस्वीरों में ही देखने को नसीब हो सकेगी। तालाब व पोखर का नष्ट होना इस बात का भी प्रतीक है कि हम अपने जल संस्कारों के प्रति कितने उदासीन हो गए हैं। तालाबों को धरोहर मानने वाली हमारी संस्कृति अब कहां चली गई।

लोगों का निजी स्वार्थ तालाबों के अस्तित्व को मिटा रहा है। कहीं अतिक्रमण करके तो कहीं कूड़ादान बनाकर तालाब को नष्ट किया जा रहा है। आम लोगों के साथ-साथ प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो रहे तालाब व पोखर अपनी पहचान खो रहे हैं। क्षेत्र के कई तालाब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। बसंतपुर प्रखंड के रतनपुर पंचायत अंतर्गत एनएच 106 के बगल में स्थित तालाब की बात करें या राघोपुर प्रखंड के गोसपुर मध्य विद्यालय के नजदीक स्थित पुराने तालाब की। स्थिति हर जगह एक ही जैसी है। तालाब के चारों ओर कूड़ा-कचरा व झाडिय़ों का साम्राज्य फैल गया है।

कभी लोगों को ङ्क्षजदगी देने वाला तालाब आज खुद उसके स्वार्थ में उसी के हाथों मिटने को विवश है। प्रशासनिक अधिकारी भी इसे बचाने के बजाय तालाबों की ऐतिहासिकता को जमींदोज कर रहे हैं। पानी के बीच बसे कोशी के इस इलाके के लोगों को भले ही अभी तालाबों की दुर्दशा की ङ्क्षचता नहीं हो रही है। लेकिन भूजल के प्रति लोगों की संवेदनहीनता से एक समय लातूर व बुदेलखंड की तरह पेयजल की समस्या यहां भी उत्पन्न हो सकती है। इससे बचाव का एक मात्र साधन तालाब व पोखरों को संरक्षित करना है। इसके लिए आम लोगों को आगे आना होगा। आने वाली पीढ़ी को पेयजल की समस्या से मुक्ति के लिए तालाबों को संरक्षित करना ही एक मात्र साधन है।

धर्मशास्त्रों में है तालाबों का बड़ा महत्व

क्षेत्र के धर्मशास्त्री बताते हैं कि हिन्दू सनातन धर्म शास्त्रों में पोखर व तालाब को तड़ागों के नाम से जाना जाता है। क्योंकि तड़ाग यज्ञ का आध्यात्मिक एवं इहलौकिक महात्म्य है। पहले के समय में राजा-महाराजाओं के जितने भी कार्य होते थे उनमें पोखर व तालाब खुदवाना सबसे प्रमुख कार्य था। क्योंकि इनसे समस्त प्रजा एवं जीव-जंतुओं को सुख प्राप्त होता था। उस समय पोखर खुदवाना बड़ा ही कठिन कार्य था। साधारण मनुष्य इसे नहीं खुदवा सकते थे। इसलिए राजा-महाराजा समस्त प्रजा से लेकर जीव-जंतु के हित के उद्देश्य से पोखर का निर्माण करवाते थे। लेकिन आज विडंबना ऐसी है कि राजा-महाराजों के समय से चले आ रहे इस अति प्राचीन संस्कृति एवं धरोहरों की रक्षा नहीं हो पा रही है।

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