आपदाओं से नहीं घबराते सुपौल के किसान, नई सोच से करते विविध फसलों की खेती

कोसी की बाढ़ ने भरे खेतों में बालू और कड़ी मेहनत के बल पर खून पसीने से सींच किसान अपने खेतों में विविध फसलों की खेती कर सोना उपजा रहे हैं। अनेक समस्‍याओं के बीच इतनी सफल खेती करना कोई सुपौल के किसानों से सीखे।

By Amrendra TiwariEdited By: Publish:Mon, 14 Dec 2020 12:11 PM (IST) Updated:Mon, 14 Dec 2020 12:11 PM (IST)
आपदाओं  से नहीं घबराते सुपौल के किसान,  नई सोच से करते विविध फसलों की खेती
मूंगफली, राजमा, मैंथा, स्ट्राबेरी, तरबूज, ककड़ी के साथ कर रहे औषधीय खेती

सुपौल, [मिथिलेश कुमार] प्राकृतिक आपदाओं को लगे लगाते सुपौल जिले के किसानों की अजब गजब कहानी है। बाढ़ और सुखाड़ जैसी विभीषिका को झेलना और उसके बीच खुद को खुशहाल बनाए रखना यहां के किसानों की नियति बन गई है। इसीलिए तो कहा जाता है समस्‍याओं से जूझ्‍ना कोई सुपौल के किसानों से सीखे। तभी तो ये मेहनतकश किसान बालू से ही सोना उगा लेते हैं।

खेतों में बिछी बालू को वरदान बनाने में लगे हैं किसान

2008 के कुसहा-त्राासदी ने जिले के पांच प्रखंड यथा बसंतपुर, प्रतापगंज, छातापुर, त्रिवेणीगंज, राघोपुर ने कहर बरपाया था। इस त्रासदी में खेतों में लहलहाती फसल कोसी के उदरस्थ हो गई थी और कोसी ने खेतों में बालू की चादर बिछा दी। अधिकांश खेतों में ढाई से तीन फीट तक बालू बिछ गई थी। हालात देखकर किसान हलकान थे। सरकार ने खेतों से बालू हटाने के लिए पहल की और किसानों को आर्थिक मदद दी किंतु विपदा के मारे किसानों ने बालू हटाने की बजाए आर्थिक मदद निजी कार्यो व भरण-पोषण में खर्च कर लिए और अभिशाप बनी बालू को वरदान साबित करने के अभियान में यहां के किसान लग गए। नतीजा रहा कि परंपरागत खेती के साथ-साथ किसानों ने नई सोच से खेती शुरू की और आज उनका परचम नई सोच की खेती में भी लहरा रहा है। किसानों की आर्थिक समृद्धि तो बढ़ रही है साथ ही साथ वे कई लोगों के जीविकोपार्जन का सहारा भी बन रहे हैं।

परंपरागत खेती के साथ-साथ औषधीय खेती की भी दिख रही हरियाली

बालू आच्छादित खेतों में किसानों ने मूंगफली, राजमा, मैंथा, स्ट्राबेरी, परवल, खीरा, तरबूज, ककड़ी के साथ-साथ औषधीय खेती की शुरुआत की। परिणाम से उत्साहित इस तरह की खेती का रकबा बढ़ता ही गया। इस खेती से अनजान कोसी के किसान आज इस तरह की खेती कर अपने लिए आर्थिक समृद्धि का द्वार खोल चले हैं। विभिन्न राज्यों में जाकर मेहनत मजदूरी करने वाले लोगों का रुझान भी अब इस खेती की ओर हुआ है। नतीजा है कि कोसी के इलाके में परंपरागत खेती के साथ-साथ औषधीय खेती की भी हरियाली दिख रही है। किसानों के प्रयास को देख आसपास के गांव के लोग भी इससे प्रभावित हुए हैं और इस तरह की खेती को अपना रहे हैं। मखाना और मशरूम की खेती को लेकर भी कोसी के सुपौल जिले की एक अलग पहचान बनी है। कोसी के किसानों ने यह साबित कर दिखाया है कि वे कहर से नहीं घबराते और नई सोच अपनाते हैं।  

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