कटिहार के इस कुएं से जुड़ी है शेरशाह सूरी की अमिट यादें... बंगाल फतह के बाद भगवती मंदिर के लिए दी थी पांच सौ एकड़ जमीन

सूर राजवंश के संस्‍थापक शेरशाह सूरी की यादें कटिहार से जुड़ी हैं। बंगाल विजय के बाद लौटने के क्रम में उन्‍होंने यहां पर भगवती मंदिर के निर्माण के लिए पांच सौ एकड़ जमीन दी थी। साथ ही कई अन्‍य काम भी करवाए थे।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 11:25 AM (IST) Updated:Mon, 19 Apr 2021 11:25 AM (IST)
कटिहार के इस कुएं से जुड़ी है शेरशाह सूरी की अमिट यादें... बंगाल फतह के बाद भगवती मंदिर के लिए दी थी पांच सौ एकड़ जमीन
सूर राजवंश के संस्‍थापक शेरशाह सूरी की यादें कटिहार से जुड़ी हैं।

संवाद सूत्र, बरारी (कटिहार)। ऐतिहासिक, धार्मिक व बंगाल पर विजयगाथा से जुड़े जिला के बरारी प्रखंड से सूर राजवंश के संस्थापक शेरशाह सूरी की अमिट यादें जुड़ी हुई है। उन्होंने बंगाल फतह की मन्नतें पूरी होने पर बरारी हाट स्थित भगवती मंदिर को पांच सौ एकड़ जमीन भी दान दी थी। यही नहीं उनके द्वारा निर्मित गंगा दार्जिङ्क्षलग सड़क सहित बरारी हाट अवस्थित कुंआ अब भी उनकी यादे को ताजा करती है।

धार्मिक ऐतिहासिक महत्ता को समेटे कभी इस कुंआ पर शादी समारोह पर कुंआ पूजा कर वर वधु भगवती मंदिर में शीष नवाकर सुखमय जीवन की कामना करते थे। वहीं हाट बाजार आने जाने वाले राहगीरों के लिए भी यह प्यास बुझाने का काम करता था। गत एक दशक से देखरेख के अभाव में उक्त कुंआ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है। जानकारो के अनुसार करीब 1539 - 40 ई में बंगाल पर चढ़ाई के दौरान शेरशाह सूरी ने गंगा नदी के रास्ते काढ़ागोला गंगा घाट पहुंचकर यहां काढ़ागोला घाट से बरारी हाट - फुलवडिय़ा, गेड़ाबाड़ी, पूर्णिया होते हुए दार्जिङ्क्षलग के चटगांव तक सड़क का निर्माण कराया था। तब से यह मुख्य सड़क गंगा दार्जिङ्क्षलग के नाम से प्रसिद्व है।

जानकारो की माने तो आज भी दार्जिङ्क्षलग के चटगांव में एक पीतल के बोर्ड पर काढ़ागोला का जिक्र है। स्थानीय समाजसेवी सह स्वतंत्रता सेनानी स्व. नक्षत्र मालाकार के पौत्र विमल मालाकार सहित अन्य वृद्धों ने बताया कि उक्त गंगा दार्जिङ्क्षलग सड़क के निर्माण के उपरांत इसी रास्ते से वे अपने पलटन के साथ बंगाल पर चढ़ाई के लिए कूच किए थे। इस दौरान ही उक्त कुंए का निर्माण भी उनके द्वारा यहां कराया गया था। आज भी भैसदीरा स्थित पलटन पारा के नाम से गांव मौजूद है। बताया जाता है यही उन्होंने अपने सैनिकों के साथ रात्रि विश्राम किया था।

अहले सुबह उनके हिन्दू सेनापति जब बरारी हाट स्थित भगवती मंदिर में पूजा अर्चना के लिए चले तो शेरशाह ने अपने सेनापति को कहा कि अगर तुम्हारे पूजा अर्चना और माता की कृपा से बंगाल पर फतह हो गया तो वे मंदिर को पांच सौ एकड़ जमीन दान में देंगे। अंतत: बंगाल पर फतह होने के बाद वे शेरशाह खॉ से शेरशाह सूरी कहलाए और तभी यहॉ के एक झोपड़ी में स्थापित माता के नामित को पांच सौ एकड़ जमीन भी दान दिया। बाद में अंग्रेजी शासनकाल में मंदिर के जमीन के कांफी हिस्से को कब्जा कर जाते जाते दरभंगा महाराज के नाम कर दिया गया था।

फिलहाल भी मंदिर के पास काफी जमीन है। इसमें भगवती मंदिर महाविद्यालय भी संचालित है। साथ ही शेष जमीन में हाट बाजार सहित पट्टे पर देकर मंदिर का विकास किया जा रहा है। फिलहाल शादी समारोह सहित अन्य धार्मिक आयोजनों पर उक्त कुंए की कमी लोगों को खूब खलती है। बरारी हाट स्थित गंगा दार्जिङ्क्षलग सड़क के पीडब्लूडी के जमीन में निर्मित फिलहाल उक्त ऐतिहासिक कुंआ स्थानीय एंक दुकानदार द्वारा अतिक्रमित कर लिया गया है। कुंआ को अतिक्रमण मुक्त कराकर सौन्दयीकरण कराए जाने की मांग उठती रही है, लेकिन प्रशासन इसके प्रति पूरी तरह उदासीन बना हुआ है । यहां बता दे कि 1962 मे चाइना वार के दौरान भी शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित उक्त गंगा दार्जिङ्क्षलग सड़क का भारतीन सेना ने भरपूर उपयोग किया था।

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