सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज प्रतियोगिता: केंद्रीय टीम भागलपुर में ढूंढ रही शौचालय

सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज प्रतियोगिता भागलपुर में सार्वजनिक शौचालय बने खंडहर केंद्रीय टीम ढूंढ रही गली-गली। शहरी क्षेत्र के शौचालय की स्वच्छता का किया औचक निरीक्षण। शहर में शौचालय की साफ-सफाई व रखरखाव का टीम कर रहा आंकलन।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 12:01 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 12:01 PM (IST)
सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज प्रतियोगिता: केंद्रीय टीम भागलपुर में ढूंढ रही शौचालय
केंद्रीय टीम ने शौचालय की स्वच्छता का औचक निरीक्षण किया।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। शहरी क्षेत्र की स्वच्छता को लेकर पहले स्वच्छता सर्वेक्षण और अब 243 शहरों में सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज प्रतियोगिता शुरू हो चुकी है। इसमें भागलपुर नगर निगम भी शामिल हुई है। इसमें बेहतर प्रदर्शन करने वाले निगम को 52 करोड़ रुपये का पुरस्कार मिलेगा। मगर हैरानी की बात है कि केंद्र सरकार की टीम जो पिछले दो दिनों से है और शहर में शौचालय की साफ-सफाई का मूल्यांकन कर रही है, लेकिन नगर निगम ने अभी तक इस दिशा में कोई खास कार्य योजना तैयार नहीं की है। टीम के सदस्य कहां जांच कर रहे हंै इसका अता-पता भी नहीं है। निगम ने न तो शौचालय की सफाई हुई और न ही जर्जर संसाधन को दुरुस्त। ऐसे में भागलपुर की रैंकिंग सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

दरअसल, सफाई मित्र चैंलेंज का उद्देश्य सीवरेज और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को रोकना और उनकी मशीन से सफाई को बढ़ावा देना है। 2021 तक सभी सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए मशीनों के प्रयोग और खतरनाक सफाई से किसी भी व्यक्ति की मौत को रोकने की दिशा में काम करना है। प्रतिभागी शहरों का वास्तविक जमीनी स्तर पर मूल्यांकन स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किया जा रहा है। यह टीम सर्वे के दौरान सीवरेज व सेप्टिक टैंक की सफाई व अन्य कार्य मशीनों से कराया जा रहा है या नहीं।

नारकीय है सार्वजनिक शौचालय, कहीं खंडहर तो कहीं गंदगी

शहरी क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालय की कोई कमी है। इस योजना पर निगम ने पिछले दो दशक में लाखों रुपये पानी की तरह बहा दिए, लेकिन निर्माण बाद निगम ने पलट कर भी नहीं देखा। नतीजा, रखरखाव के अभाव में शौचालय बेकार हो गए चुके हैं। कहीं गंदगी का अंबार लगा है, तो कहीं ताले लटके हुए हैं। बावजूद लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। शहर में आठ वर्ष पहले 10 लाख रुपये की लागत से 14 हाईटेक शौचालय बनाए थे। निगम प्रशासन की अनदेखी के कारण सभी जर्जर व बदहाल हो गए हैं। 14 स्थानों पर दो मंजिला शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। अब स्मार्ट सिटी की योजना से ई-टायलेट के निर्माण तैयारी है। किसी भी शौचालय के संचालन के लिए निगम ने न तो निविदा की और न ही पीपीपी मोड पर दिया।

आठ वर्षों से निर्माण बाद नहीं खुला ताला

जिला स्कूल मार्ग में नगर निगम ने हाईटेक शौचालय का निर्माण तो करा दिया गया, लेकिन आठ वर्ष बीतने के बावजूद अब तक इसका लाभ राहगीरों को नहीं मिला। इससे तीन इंटर स्तरीय विद्यालय की छात्रों के राहगीरों को भी सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है।

दरवाजे क्षतिग्रस्त, टूट चुकी हैं टाइल्स

मायागंज, खंजरपुर और नाथनगर के आउट पोस्ट लेन में हाईटेक शौचालय के दरवाजे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और टाइल्स टूट गई हैं। निर्माण कराकर उसे लावारिस छोड़ दिया गया है। नतीजतन परिसर में कूड़े का अंबार लगा हुआ है। सैंडिस कंपाउंड के सार्वजनिक शौचालय को नगर निगम ने सुलभ इंटरनेशनल को रख-रखाव के लिए दिया है। यहां महिला वार्ड के अधिकांश दरवाजे क्षतिग्रस्त हो चुके है।

स्मार्ट सिटी का शौचालय हुआ कबाड़

शहर के प्रमुख 13 सार्वजनिक स्थानों पर बने स्मार्ट सिटी योजना से एल्यूमीनियम शीट वाले शौचालयों की भी सेहत काफी खराब है। एक शौचालय पर करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च किए गए, लेकिन असामाजिक तत्व उन्हें उखाड़ ले गए। नगर निगम के गोदाम में 10 बायो शौचालय के कैमिकल और उपकरण चार वर्षो से धूल फांक रहे हैं।

सफाई और पानी की सुविधा की गुंजाइश ही नहीं

शौचालयों में सफाई व पानी की सुविधा की तो कोई गुंजाइश ही नजर नहीं आती। दीपनगर चौक, लाजपत पार्क मैदान, सदर अस्पताल परिसर, मारवाड़ी पाठशाला के सामने, वार्ड सात के हुसैनाबाद, कुंडीटोला व ललमटिया चौक आदि क्षेत्र में दो दशक पुराने शौचालय अब भी जर्जर अवस्था में हैं।

गंगा घाट पर अधूरा है निर्माण

बरारी पुल घाट पर निविदा के सात वर्ष बाद भी नगर निगम शौचालय का निर्माण कार्य पूरा नहीं करा पाया। गंगा स्नान को काफी संख्या में महिलाएं पहुंचती है। इसमें ताला लगा होने से काफी परेशानी हो रही है।

एक दशक से नहीं हुई सफाई

मंसूरगंज चौक पर तीन दशक पहले बना शौचालय रख-रखाव के अभाव में जर्जर हो गया। गंदगी का अंबार है। मल टंकी भर गया है और पानी सीधे नाले में गिर रहा है। सफाई के अभाव में स्लम बस्ती के लोग उपयोग को मजबूर है।

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