कुपोषण से हर रोज जंग लड़ रहीं रंजू दीदी, जमुई के ग्रामीण इलाकों में बदलने लगी तस्वीर

कुषोषण के खिलाफ हर रोज जमुई की रंजू दीदी जंग लड़ रहीं हैं। उनके इस प्रयास का असर भी अब दिखने लगा है। जमुई के ग्रामीण इलाके की तस्वीर बदलने लगी हैं। यहां की महिलाएं कुपोषण को लेकर जागरूक हो रहीं हैं। सा

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 09:23 AM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 09:23 AM (IST)
कुपोषण से हर रोज जंग लड़ रहीं रंजू दीदी, जमुई के ग्रामीण इलाकों में बदलने लगी तस्वीर
कुषोषण के खिलाफ हर रोज जमुई की रंजू दीदी जंग लड़ रहीं हैं। प्रतिकात्‍मक तस्‍वीर।

संवाद सहयोगी, जमुई। यह कहावत सिद्ध है कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता और इसकी बुनियाद जन्म से पांच वर्ष तक में ही पड़ जाती है। इस बात को लोगो को समझाने के प्रयास मे जुटी हैं जिले के गिद्धौर प्रखंड स्थित आंगनबाड़ी केंद्र सं. 33 ए की आंगनबाड़ी सेविका रंजू कुमारी। वह विगत 30 वर्षों से उक्त केंद्र पर सेवारत हैं। उन्होंने मैट्रिक तक पढ़ाई की और आंगनबाड़ी से जुड़ गई।

अपने प्रारंभिक प्रशिक्षण में समेकित बाल विकास परियोजना के तहत छह सेवाओं में पोषण की महत्ता को बखूबी समझ लिया था। इसमें शिशु को माता द्वारा छह महीने तक केवल स्तनपान, व्यक्तिगत स्वच्छता और पूरक पोषाहार के महत्व को अपने कार्यक्षेत्र की लक्षित समूह वर्ग में समझाने का प्रयत्न करती रही। इसे लागू करने की प्रतिदिन हर संभव कोशिशों ने दर्जनों बच्चों को कुपोषण से बचाने में सफलता दिलाई है।

रंजू कुमारी अपने अनुभवों को जोड़कर बताती हैं कि केवल स्तनपान और इसे पिलाने के सही तरीके से किसी भी शिशु के शुरुआती 180 दिन प्रारंभिक तौर पर पोषण की नींव ही है। इसके महत्व को मैंने स्वयं भी अपनाया और पोषक क्षेत्र की धात्री माताओं को भी अपनाने के लिए प्रेरित किया। परिणामत: मेरे क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक बच्चों में से कोई भी कभी कुपोषण की श्रेणी में नहीं गया। मैं गृहभ्रमण की कार्ययोजना में इसे अहम मुद्दे तौर पर शामिल करती हूं। इसके साथ ही केंद्र पर बच्चों को हाथ को साबुन से धोने और व्यक्तिगत स्वच्छता को अनिवार्य रूप से बताती हूं।

वृद्धि आकलन पर तुलनात्मक चर्चा की सार्थक पहल

इसी गांव की 23 वर्षीय ङ्क्षरकी देवी (जिनका पहला संतान तीन वर्ष का है और सातवें माह की गर्भवती है) कहती हैं कि मैंने सेविका दीदी के खानपान की सलाह को पूरी तरह तो अपनाया ही है। शिशु जन्म के छह माह तक केवल स्तनपान अपने संतान को कराया है। जब-जब मासिक तौर पर केंद्र के बच्चों के वृद्धि आकलन के लिए कार्ड भरा जाता है जिसमें मेरे बच्चे की हमेशा हरी लाइन रहने की वजह से मुझे शाबाशी तो मिलती ही रही है।

मेरा उदाहरण देकर सभी मौजूद माताओं को समझाने का कार्य करती हैं। ये मैं जरूर कहूंगी कि इनके बताए बातों से मेरे बच्चे कमजोरी के कारण डाक्टरी इलाज से बचे रहे। इसमें रंजू दीदी की भूमिका ही रही वर्ना रूढ़ीवादी विचारों वाली महिला की तरह मैं भी परेशान रहती और गरीबी और भगवान को कोसती रहती। इनके कार्यों की सराहना करते हुए महिला पर्यवेक्षिका प्रीति कुमारी कहती हैं कि रंजू कुमारी के प्रयासों से हमारे क्षेत्र के शिशुओं और माताओं की बेहतर स्वास्थ्य की स्थिति रहती है। इन्होंने प्रशिक्षण में बताए गए तथ्यों को सुचारू तौर पर लागू किया है।

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