बांग्लादेश की जेल में बंद हैं राजेंद्र, भागलपुर के इस युवक की होगी वतन वापसी
भागलपुर का एक युवक बांग्लादेश की जेल में बंद है। काम की तलाश में गलती से सीमा पार करने के बाद उसकी गिरफ्तारी की गई थी। सीमा पर तैनात बांग्लादेश की बंगा पिपरा पुलिस ने घुसपैठिया समझकर उन्हें पकड़ लिया। ह्यूमेन राइट्स अंब्रेला ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर मसला उठाया था।
भागलपुर [संजय कुमार सिंह]। बांग्लादेश की जेल में राजेंद्र रविदास पिछले तीन सालों से कैद है। उसकी वतन वापसी के लिए ह्यूमेन राइट्स अंब्रेला (एचआरयूएफ) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मसला उठाया है। राजेंद्र भागलपुर जिले के लोदीपुर निवासी हैं। इसी संगठन ने पिछले वर्ष दरभंगा के सतीश चौधरी को भी बांग्लादेश की जेल से मुक्त कराया था।
लोदीपुर थाना क्षेत्र के उस्तू गांव निवासी राजेंद्र रविदास (30 वर्ष) परिवार की तंगहाली के कारण रोजगार के लिए 2017 में दिल्ली गए थे। दिल्ली में काम नहीं मिला तो वे वहां से पश्चिम बंगाल चले गए। काम की तलाश में भटकते हुए वह बांग्लादेश की सीमा पर पहुंच गए। सीमा पर तैनात बांग्लादेश की बंगा पिपरा पुलिस ने घुसपैठिया समझकर उन्हें पकड़ लिया और मुर्शिदाबाद जेल भेज दिया। रोजगार की तलाश में भटकते-भटकते राजेंद्र की मानसिक स्थिति ठीक खराब हो गई। इधर, परिवार के लोग के बीच कोई संपर्क न होने से यह पता ही नहीं चला कि वह कहां चला गया हैं। इसके बाद परिवार वालों ने उनकी तलाश के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कार्यालय को पत्र भेजा। दोनों कार्यालय से राजेंद्र की तलाश के लिए पत्र संबंधित थानों को भेजा गया। जब पुलिस ने उनकी तलाश शुरू की तब पता चला कि वह बांग्लादेश की जेल में कैद हैं। फिर राजेंद्र की पत्नी सरिता देवी को ह्यूमेन राइट्स अंब्रेला संगठन के बारे में जानकारी मिली। उसने संगठन को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई। दिल्ली निवासी एचआरयूएफ चेयरमैन विशाल रंजन दफ्तुआर ने बताया कि मामला अनुसूचित जाति के एक अत्यंत गरीब और भूमिहीन परिवार का है। इसलिए यह मामला चर्चित नहीं हुआ। राजेंद्र की वापसी के लिए फिलहाल विदेश मंत्रालय और बांग्लादेश सरकार को पत्र भेजा गया है। दोनों स्थानों से सकारात्मक संकेत मिले हैं। दरअसल, बिहार की जेल में पिछले चार सालों से कैद बांग्लादेशी महिला सवेरा बेगम को 28 अक्टूबर तक वापस बांग्लादेश भेजा जा रहा है। इस मामले में बांग्लादेश सरकार ने को-आॢडनेशन का जिम्मा हमारे संगठन को ही दिया है। इसलिए यह उम्मीद है राजेंद्र का मसला भी जल्द हल हो जाएगा। इससे पूर्व भी बांग्लादेश की जेल में 11 सालों से कैद बिहार के दरभंगा निवासी गरीब परिवार के सतीश चौधरी को मात्र एक महीने के अंदर पिछले वर्ष 12 सितंबर को मुक्त करवाया गया था। बांग्लादेश में दो सालों से कैद बलिया, उत्तरप्रदेश के अनिल कुमार सिंह को भी एक महीने में पांच दिसंबर को मुक्त करवाया गया था। दफ्तुआर ने बताया कि कागजी प्रक्रिया पूरी होने में समय लगता है। उम्मीद है कि नए साल में राजेंद्र अपने परिवार के साथ रहेंगे। लगातार प्रयास किया जा रहा है।