बारिश, ओलों और लॉकडाउन ने लीची किसानों को किया तबाह, नहीं पहुंच रहे खरीदार

भागलपुर और नवगछिया क्षेत्रों में लीची की फसल को इस बार ग्रहण लग गया है। 90 फीसदी फसल वृक्ष में ही बर्बाद हो रहे हैं। बारिश और ओलों ने फसल को नुकसान पहुंचाया है। खरीदार नहीं हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Thu, 04 Jun 2020 09:43 AM (IST) Updated:Thu, 04 Jun 2020 09:43 AM (IST)
बारिश, ओलों और लॉकडाउन ने लीची किसानों को किया तबाह, नहीं पहुंच रहे खरीदार
बारिश, ओलों और लॉकडाउन ने लीची किसानों को किया तबाह, नहीं पहुंच रहे खरीदार

भागलपुर [नवनीत मिश्र]। इस बार बारिश व ओलों के साथ लॉकडाउन ने भी लीची किसानों को परेशान किया है। समय पर केमिकल का छिड़काव नहीं किए जाने के कारण 90 फीसद फल पेड़ में ही बर्बाद हो गए। जो बचे हैं, उसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इस कारण लीची की खेती करने वाले किसान खून के आंसू रो रहे हैं।

लॉकडाउन से भी परेशानी : बिहपुर (अमरपुर) के लीची की खेती करने वाले किसान जितेंद्र शर्मा और डॉ. रविंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि पेड़ पर मंजर आने के साथ ही बारिश, ओलों और आंधी से सामना हुआ। लीची जब मसूर के दानों के बराबर हुए तो दो बार आंधी-बारिश आ गई। पेड़ पर जो फल बचे, उनपर केमिकल डालने से पूर्व ही लॉकडाउन शुरू हो गया।

पेड़ से टूटने के बाद तीन दिन होती है लीची की लाइफ : लीची मई महीने के तीसरे सप्ताह से पकती है। यह फल जून के दूसरे- तीसरे सप्ताह तक ही पेड़ों पर रहते हैं। पेड़ों से टूटने के बाद इसकी लाइफ महज दो से तीन दिनों की ही होती है। लीची की सेल्फ लाइफ बहुत कम होती है, इसलिए भी किसान इसे लेकर बहुत परेशान हैं। सबसे ज्यादा बेदाना लीची पसंद की जाती है। यह महज दस-12 दिनों में खत्म हो जाती है। फिर चाइना (चूंकि इसका साइज भी छोटा होता है) और इसके बाद देसी लीची का सीजन आता है।

व्यापारी नदारद और किसान परेशान : लीची के पेड़ों में मंजर आते ही व्यापारी बगान खरीद लेते हैं। लॉकडाउन की वजह से इस बार व्यापारी किसानों तक नहीं पहुंच सके। फल पेड़ों पर पक चुके हैं, व्यापारी नदारद हैं और किसान परेशान। तेलघी के अंजनी कुमार सिंह बताते हैं कि पहले ट्रेनें बंद थीं और अभी भी काफी कम ट्रेनें चल रही हैं। स्टेशन और लोकल बाजार में भी लीची की मांग काफी रहती है। यहां की लीची दिल्ली और मुंबई के बाजार में जाती रही है, लेकिन इस बार यह मौका नहीं मिल पाया।

10 हजार में बिकता था एक पेड़ : बभनगामा के निरंजन चौधरी ने बताया कि अमूमन एक लीची का पेड़ पांच से दस हजार रुपये का बिकता था, लेकिन इस बार पेड़ों पर ध्यान नहीं दिए जाने की वजह न तो फल बढ़ पाए और ना ही लाल हो पाए। समय पर खेत का पटवन होता और पेड़ की धुलाई होती तो इस बार एक पेड़ 15 हजार तक का बिकता।

तापमान बढऩे से नहीं हो पाई परिपक्व लीची : तापमान बढऩे से देसी व बेदाना लीची का आकार बढऩे के बदले वह तेजी से लाल होकर जल रही है। हवा में नमी की मात्रा कम होने के साथ ही पकने के वक्त बारिश नहीं होने से लीची के आकार व छिलके के अंदर में गूदे की मात्रा नहीं बढ़ सकी। साथ ही लीची के धूप में जलकर फटने के कारण किसान परेशान हैं। बिहपुर, नवगछिया, गोपालपुर, खरीक सहित रंगरा चौक में भी लीची की पैदावार होती है।

chat bot
आपका साथी