निजी हॉस्पिटल का कारनामा, कोरोना मरीज मतलब कुबेर का खजाना, 14 दिन में लिए चार लाख, सुनिए... आपबीती

Private hospital मीरजानहाट के मोहद्दीनगर निवासी आलोक केसरी भागलपुर के एक निजी अस्‍पताल में भर्ती थे। कोरोना पीडि़त थे। अभी तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए हैं। एक दिन वेंटिलेटर पर रखने के लिए 35 हजार चुकाया। 25 हजार हर दिन जनरल वार्ड में लिया जाता था।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 07:34 AM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 07:34 AM (IST)
निजी हॉस्पिटल का कारनामा, कोरोना मरीज मतलब कुबेर का खजाना, 14 दिन में लिए चार लाख, सुनिए... आपबीती
मीरजानहाट के मोहद्दीनगर निवासी आलोक केसरी प्लस हॉस्पिटल में थे भर्ती

जागरण संवाददाता, भागलपुर। शहर निजी अस्पतालों के लिए कोरोना मरीज कुबेर के खजाने से कम नहीं है। निजी नर्सिंग होम में मरीज बेहतर इलाज के आस में जाते हैं, लेकिन बढ़िया इलाज की बात तो दूर सिर्फ फीस की बात होती है। हाल ही में खुले निजी हॉस्पिटल का कारनामा भी कुछ इसी तरह का है। यहां एक कोरोना के मरीज से वेंटिलेटर और जनरल वार्ड में  इलाज से लेकर जांच और दवा के एवज में मोटी रकम ली गई। 14 दिनों में मरीज के परिवार वालों ने 3.90 लाख रुपये का बिल अस्पताल को चुकाया। जब परिवार वालों की आर्थिक स्थिति की गड़बड़ आने लगी तो मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर घर ले आए। दरअसल, मोहद्दीनगर के आलोक केसरी को परिवार वालों ने कोरोना पॉजिटिव होने के बाद भागलपुर के एक प्रतिष्ठित निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। शुरुआत में चार दिन इन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। इसके बाद उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। 10 दिनों तक यहां इनका इलाज चला।

बिल देख बढ़ा प्लस, आर्थिक रूप से किया कमजोर

कोरोना को हराकर आलोक केसरी घर तो लौट गए, लेकिन अस्पताल प्रबंधन की मनमानी ने इनके घर को आर्थिक रुप से कमजोर कर दिया। सरकार के निर्धारित शुल्क से हटकर अस्पताल प्रबंधन ने परिवार वालों से फीस की वसूली की। परिवार वाले अस्पताल प्रबंधन को फीस में रियायत करने की गुहार भी लगाई। लेकिन गुहार का अस्पताल प्रबंधन की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा। जैसे-जैसे अस्पताल प्रबंधन फीस की डिमांड बढ़ाता गया। उस तरह से परिवार वाले भी फीस जमा किए।

इंजेक्शन और दवाइयों के दाम भी ज्यादा

मरीज के परिवार वालों ने बताया कि इलाज के दौरान जांच और जरूरी दवाइयों की कीमत भी ज्यादा वसूल की जाती थी। बाहर से दवाइयां लाना सख्त मना किया गया था। मरीज ने बताया कि जनरल वार्ड में चिकित्सक आपने समय अनुसार ही मरीज को देखने आते थे। कभी-कभी मरीज से मिले हुए हैं चिकित्सक चले आते थे। निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है।

सरकारी दर नहीं मान रहे प्रबंधन

निजी पैथोलॉजी में जांच, सिटी स्कैन के लिए जिला स्वास्थ्य समिति की ओर से हर चीज का दर निर्धारित किया गया है। लेकिन, जिस तरह से शहर में जांच के नाम पर लूट मची है, उससे साफ है कि इस अवैध वसूली में सरकारी व्यवस्था भी कम दोषी नहीं है। सिविल सर्जन डॉ. उमेश शर्मा ने कहा कि जांच के नाम पर ज्यादा पैसे लेना गलत है। हर चीज का दर फिक्स्ड है। मरीज के स्वजनों को शिकायत करें। ऐसे संचालकों पर कार्रवाई की जाएगी।

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