टूटे महानंदा तटबंध पर फिर मचा सियासी घमासान, जानिए क्यों नहीं निकल रहा 33 साल से जारी इस विवाद का हल

महानंदा का तटबंध 1987 में पहली बार काटा गया था। अभी यह कटिहार के शिवगंज के समीप क्षतिग्रस्त है। इसको लेकर कटिहार की राजनीति गरमा गई है। दरअसल बागडोप में सिल्ट जमा होने से महानंदा की धारा बदल गई है। इसी बात को लेकर विवाद जारी है।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Mon, 21 Dec 2020 04:19 PM (IST) Updated:Mon, 21 Dec 2020 04:19 PM (IST)
टूटे महानंदा तटबंध पर फिर मचा सियासी घमासान, जानिए क्यों नहीं निकल रहा 33 साल से जारी इस विवाद का हल
महानंदा का तटबंध 1987 में पहली बार काटा गया था।

कटिहार [संजीव मिश्रा]। प्रखंड क्षेत्र के शिवगंज के समीप महानंदा के टूटे तटबंध को लेकर एक बार फिर सियासी घमासान के आसार बढ़ गए हैं। बांध को खुला रखने व बांधने को लेकर तटबंध के नदी क्षेत्र व बाहरी क्षेत्र के लोग आमने-सामने आने लगे हैं। जनप्रतिनिधि भी वोट बैंक की धारा में लाभ वाले किनारे पर खड़े हो रहे हैं। इन सब के बीच बाढ़ के स्थाई निदान की बातें एक बार फिर गुम होने लगी है। 

बांध के टूटने, काटने व बांधने का अर्से से चल रहा सिलसिला

सन 1987 से ही इस बांध के टूटने, काटने व बांधने का सिलसिला जारी है। हर स्थिति में कदवा के अलावा पूरे जिले के लोग बाढ़ की त्रासदी झेलने को अभिशप्त हैं। इस त्रासदी की एक अहम समस्या महानंदा के बागडोप में सिल्ट जमा होने से नदी का मार्ग का अवरुद्ध होने के साथ नदी में जमा गाद है, लेकिन लगभग चार दशक बाद भी इसका समुचित समाधान नहीं निकल पाया है। इस बीच तटबंध के टूटने के बाद करोड़ो का वारा न्यारा होता रहा है। यूं कहें कि महानंदा तटबंध विभागीय अभियंता से लेकर संवेदक एवं जनप्रतिनिधि के लिए कामधेनू बना हुआ है। पहली बार 1987 में तटबंध टूटने पर कदवा के अलावा पूरे जिले के लोगों ने बाढ़ की विनाशलीला देखी। देखते ही देखते कच्चा पक्का घर के साथ पुल पुलिया जमींदोज हो गया था। झौआ एवं गोरफर में रेलवे पुल बह गया तो पटरी उखड़ गईं थी। फिर 1991, 1996, 2017 व 2018 में भी यही तांडव हुआ। कभी तटबंध टूटा तो कभी काटा गया।

तटबंध के अंदर अवस्थित है 11 पंचायत

महानंदा तटबंध के अंदर ग्यारह पंचायत है। लगभग दो लाख की आबादी निवास करती है। बांध बंधने की दशा में बाढ़ के समय वे लोग डूबने लगते हैं। परिणाम स्वरुप 2017 में बढिय़ा परती के पास सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने तटबंध काट दिया था। पुन: वहां बांध बंधा गया तो 2018 में शिवगंज सहित तीन जगह तटबंध टूट गया। पुन: 2019 -20 में टूटे तटबंध से निकलने वाली पानी ने भयानक तबाही मचाई। वोट का मामला होने से अब तक सांसद व विधायक तक किसी खास पक्ष में खड़े होने की स्थिति में नहीं रहते हैं। तटबंध के अंदर बसे लोग हमेशा से बांध बांधने का विरोध करते आ रहे हैं। इसके लिए बांध रोको संघर्ष समिति का गठन कर लड़ाई लड़ी जा रही है। बांकी जगह तटबंध को बांधने के बाद शिवगंज में लोगों के विरोध की वजह से खुला हुआ है। इससे प्रतिवर्ष तटबंध के बाहर बसे कदवा प्रखंड के दर्जनों पंचायत के अलावा डंडखोरा, आजमनगर, प्राणपुर, हसनगंज प्रखंड वासी बाढ़ की विनाशलीला झेलने को अभिशप्त हैं। पहले जहां बाहरी क्षेत्र की जमीन में तीन फसल हुआ करता था, अब एक फसल में आफत है। वहीं पानी के वेग में आने वाले रेत से उपजाऊ भूमि बंजर होती जा रही है।

नदी में सिल्ट का जमाव की वजह से होता है पानी का फैलाव 

महानंदा नदी में गाद के जमा होने की वजह से पानी मुख्य नदी से निकल कर बाहर फैलती है तथा बांध पर पानी का दबाब बढ़ता है। बागडोप में लगभग दो किलोमीटर में गाद जमा होने से महानंदा अपने मुख्य मार्ग में अविरल नहीं बह पा रही है। झौआ रेल पुल के नीचे से कंकर नदी से उसका बहाव होने लगा है। पुल की चौड़ाई कम होने से पानी का डिस्चार्ज कम होता है। जबकि बारसोई से होकर बहने वाली महानंदा की मुख्य धारा शांत रहती है, लेकिन इन वर्षों में बागडोप की खुदाई आज तक नहीं हो पाया है। सन 1987 में तटबंध टूटने के बाद जोर शोर से बागडोप की खुदाई का मामला उठा था। बांध रोको संघर्ष समिति के स्थानीय समाजसेवी रविन्द्र नाथ ठाकुर सहित अन्य के साथ अभियंता के दल ने बागडोप का निरीक्षण भी किया था। तत्कालीन कदवा विधायक उस्मान गनी ने विधानसभा पटल पर बागडोप की खुदाई करने का मामला उठाया था, लेकिन आज तक इस दिशा में कुछ नहीं हो पाया है।

आधे दर्जन प्रखंड होता है प्रभावित

कदवा में आने वाली महानंदा की बाढ़ से कदवा प्रखंड के अलावे डंडखोरा, आजमनगर, प्राणपुर, कटिहार, अमदाबाद सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। प्रतिवर्ष बाढ़ के पानी के वेग में बह जाने एवं डूबने की वजह से सैकड़ों जाने जाती है। लोगों का कच्चा पक्का मकान ध्वस्त होने के साथ फसलों की व्यपक पैमाने पर बर्बादी होती है।इसके अलावा दर्जनों पुल पुलिया सड़क ध्वस्त हो जाती है।

क्या कहते हैं विधायक

कदवा विधायक डा शकील अहमद खान ने कहा कि नदी के गाद की सफाई से ही बाढ़ का समाधान हो सकता है। उन्होंने कहा कि बीच नदी में गाद जमा है। बागडोप की भी खुदाई होनी चाहिए, साथ ही महानंदा तटबंध के ऊपर पक्की सड़क का निर्माण कर टूटे स्थल पर पुल या स्वीस गेट देने से ही बाढ़ का स्थाई निदान हो सकता है।

क्या कहते बांध रोको संघर्ष समिति के सचिव :

इस संबंध बांध रोको समिति के सचिव सह तटबंध के अंदर बसे भर्री पंचायत के मुखिया विनोदानंद साह ने बताया कि इस बांध की कोई उपयोगिता हीं नहीं है। यह बांध महानंदा नदी से कई किलोमीटर दूर रीगा नदी पर बनी है। उन्होंने कहा कि बांध के खुला रहने से बाढ़ के समय अंदर एवं बाहर के लोग सुरक्षित रहते हैं।

क्या कहते बांध रोको समिति के कोषाध्यक्ष 

तटबंध के अंदर बसे बांध रोको समिति के कोषाध्यक्ष सह जिला पार्षद प्रतिनिधि परवेज आलम ने बताया कि बांध का खुला रहना जरुरी है। बांध को बांधने के बाद अंदर के लोग डूबते हैं, जबकि पानी के दबाब में तटबंध टूटने पर कई प्रखंडों में तबाही मचती है।

क्या कहते हैं मुखिया 

इस संबंध तटबंध के खुला रहने से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले कदवा पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि रामप्रवेश महतो ने बताया कि बांध का बांधा जाना नितांत जरुरी है। शिवगंज में तटबंध के खुला रहने से प्रति वर्ष बाढ़ से तबाही होती है। खेतों में बालू एवं जलजमाव की वजह से खेती बाड़ी चौपट हो चुकी है। किसानों की स्थिति दयनीय हो गई है। कल के किसान आज मजदूरी के लिए बाहर जाने को विवश हैं।

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क्या कहते बांध बनाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष 

बांध बनाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष पप्पू कुमार विश्वास ने कहा कि बांध के खुला रहने से प्रति वर्ष व्यापक पैमाने पर नुकसान होता है। कदवा के दो दर्जन पंचायत के अलावा जिले के कई प्रखंड के लोग इसके भुक्तभोगी होते हैं। फसल क्षति के साथ घर-बार उजड़ जाता है। दर्जनों पुल पुलिया एवं सड़कें ध्वस्त हो जाती है। प्रति वर्ष करोड़ों का नुकसान हो रहा है। जान माल की क्षति अलग होती है, इसलिए तटबंध को बंधना जरुरी है।

क्या कहते अभियंता

इस संबंध में विभागीय सहायक अभियंता सत्यजीत कुमार ने बताया कि झौआ से कुट्टी तक नए तटबंध का निर्माण कार्य किया जाना है, जिसके लिए भूअर्जन की प्रक्रिया की जा रही है। नए तटबंध के निर्माण से बाढ़ से क्षति पर बहुत हद तक रोक लग जाएगा।  

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