Pitru Paksha 2021: धर्म शास्त्र व पुराणों में वर्णित है पितृपक्ष का महत्व, श्राद्ध करने से मिलती है मन को शांति

Pitru Paksha 2021 पूर्वजों के मोक्ष के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इन दिनों बैकुंठ के द्वार खुले होते हैं। पितरों को तर्पण करने से उन्हें स्वर्ग प्राप्ति होती है। वहीं धर्म शास्त्र और पुरणों में इसका महत्व वर्णित है।

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 09:57 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 09:57 PM (IST)
Pitru Paksha 2021: धर्म शास्त्र व पुराणों में वर्णित है पितृपक्ष का महत्व, श्राद्ध करने से मिलती है मन को शांति
Pitru Paksha 2021: पढ़ें सुपौल के आचार्य द्वारा बताई मान्यता।

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार(सुपौल)। Pitru Paksha 2021: प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। इसे 15 दिवसीय महालय श्राद्ध पक्ष या महालया पितृ पक्ष भी कहते हैं। इस पितृ पक्ष में व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए तिल-जल के द्वारा तर्पण करते हैं। इसी पक्ष में चतुर्दशी के बाद अमावस्या पर्व आता है, जिसे पितृ विसर्जन अमावस्या कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक माह की अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि मानी जाती है, लेकिन आश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए विशेष फलदायक मानी गई है। इस तिथि को समस्त पितरों का विसर्जन होता है। जिन पितरों की पुण्यतिथि स्वजनों को ज्ञात नहीं होती या किसी कारणवश जिनका श्राद्ध तर्पण इत्यादि पितृ पक्ष के 15 दिन में नहीं हो पाता वह उनका श्राद्ध तर्पण आदि इसी दिन करते हैं।

पितृ पक्ष का महात्म्य बताते हुए आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की रश्मि तथा रश्मि के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। श्राद्ध की मूलभूत परिभाषा यह है कि प्रेत और पितर के निमित्त उनकी आत्मा के तृप्ति के लिए श्रद्धा पूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। पितृ पक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृ प्राण स्वयं आप्लावित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो तिल आदि से तर्पण श्राद्ध आदि करते हैं उसमें से रेतस् का अंश लेकर वह चंद्रलोक में अंभप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र ऊपर की ओर होने लगता है।

15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से उसी रश्मि के साथ रवाना हो जाता है इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं, और इसी पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति प्राप्त होती है। अत: मानवीय मर्यादाओं में पितृ गणों का श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि करना अति आवश्यक है। पितृ पक्ष में उन पूर्वजों को स्मरण कर उनकी पूजा-अर्चना करना हमारी सांस्कृतिक परंपरा है जिससे हमें सुख-शांति एवं संतुष्टि प्राप्त होती है। यह भी कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तो पितर यानी पूर्वज अपने पुत्र पौत्र के यहां आते हैं। विशेषत: आश्विन अमावस्या के दिन वह दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं यदि उस दिन उनका तर्पण या श्राद्ध नहीं किया जाता है तो वह आशीर्वाद की जगह श्राप देकर लौट जाते हैं। अत: उस दिन पत्र, पुष्प, फल और जल-तर्पण से यथाशक्ति उनको तृप्त करना चाहिए।

धर्म शास्त्र व पुराणादि में पितृपक्ष की महत्ता

धर्म शास्त्र एवं पुराणादि ग्रंथों में वर्णन है कि एक बार राजा करन्धम ने परम शैव महायोगी महाकाल से पूछा कि भगवन, मेरे मन में सदा यह संशय बना रहता है कि मनुष्यों के द्वारा पितरों के उद्देश्य से जो ङ्क्षपडदान तर्पण आदि किया जाता है तो वह जल-पिंड आदि पदार्थ तो यहीं रह जाते हैं तो पितरों के पास कैसे पहुंचते हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है। इस पर परम योगी महाकाल ने बताया कि पितरों और देवताओं की योनि ही ऐसी है कि वह कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा और दूर से की गई स्तुति से भी संतुष्ट होते हैं।

वह भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ जानते हैं और सर्वत्र पहुंचते हैं। पांचो तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति इन नौ तत्वों का बना हुआ उनका शरीर होता है। इसके भीतर 10 वे तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरूषोत्तम निवास करते हैं। इसलिए देवता और पितर गंध तथा रस तत्वों से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं पवित्रता देखकर उन्हें परम तुष्टि होती है। जैसे मनुष्य का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण (घास)है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार तत्व है। पितरों की शक्तियां अचिन्त्य और ज्ञानगम्य है। अत: वे अन्न और जल का सार तत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है वह यहीं स्थित रह जाती है।

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