इस बार भी ठंड को बांध पर काटेंगे विस्थापित, कोई तो सुन लो कटिहार के अमदाबाद में खानाबदोश दर्जनों परिवारों का दर्द

डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद का गृह जिला है कटिहार। यहां के बाढ़ पीड़ित अपना सबकुछ खो चुके हैं। विस्थापित हो चुके दर्जनों परिवार ठंड को कैसे काटेंगे ये देखना हो तो अमदाबाद आ जाइए। बांध पर डेरा जमाए ये खानाबदोश अपना दर्द बयां करते हैं।

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 08:59 AM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 08:59 AM (IST)
इस बार भी ठंड को बांध पर काटेंगे विस्थापित, कोई तो सुन लो कटिहार के अमदाबाद में खानाबदोश दर्जनों परिवारों का दर्द
खानाबदोश हो गए बाढ़ पीड़ित, कब होगा पुनर्वास?

संवाद सूत्र, अमदाबाद (कटिहार): अमदाबाद प्रखंड अंतर्गत गंगा नदी के कटाव का व्यापक असर रहा है। प्रत्येक वर्ष यहां गंगा नदी कटाव कर तांडव मचाती है। जिससे दर्जनों परिवार विस्थापित होकर खानाबदोश की जिंदगी जीने को विवश हो जाते हैं। गंगा नदी के कटाव का असर गोलाघाट से लेकर बबला बन्ना गांव के समीप तक है। प्रखंड के हरदेव टोला, चामा झब्बू टोला, सूबेदार टोला, पोड़ा बाद युसूफ टोला, खट्टी बबला बन्ना गांव के दर्जनों परिवारों का घर गंगा नदी के कटाव की भेंट चढ़ चुका है।

इनमें कई परिवार अन्यत्र पलायन कर गए हैं तो दर्जनों परिवार गोलाघाट से लेकर भगवान टोला के समीप शंकर बांध पर शरण ले कर रहे हैं। बताते चलें कि बांध पर बसने के कारण कटाव पीडि़त परिवार स्थाई रूप से अपना घर भी नहीं बना पाते हैं। लोग छोटे-मोटे बांस बत्ती का घर बनाकर किसी तरह बांध पर ही शरण लेकर रह रहे हैं।

क्या कहते हैं कटाव पीड़ित

शंकर बांध पर बसे श्रीधर चौधरी, पोंगल चौधरी, भोला सिंह, खुशी लाल दास इत्यादि लोगों ने बताया कि गंगा के कटाव से हमलोगों का घर बहुत पहले कट चुका है। हमलोग बांध पर शरण लेकर रह रहे हैं। जिससे हमलोगों को काफी कठिनाई होती है। गंगा नदी के कटाव से जहां धन्नी टोला, खट्टी जामुन तल्ला गांव का अस्तित्व पूरी तरह मिट गया तो दूसरी तरफ सूबेदार टोला, पोड़ा बाद युसूफ टोला, झब्बू टोला, गोलाघाट इत्यादि गांव का बड़ा हिस्सा कटकर नदी में समा गया है।

यूं तो कटिहार डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद का गृह जिला है। सरकार की ओर से पहले भी बाढ़ पीड़ित इन विस्थापितों के पुनर्वास की बात कही जा चुकी है लेकिन अभी तक इनका दर्द कम नहीं हुआ है। ये बारिश, धूप, ठंड झेल रहे हैं। अपनी व्यथा बताते-बताते खुले आसमान की चादर रजाई समझ अपने तन पर डालकर सो रहे हैं। देखना होगा इनके दर्द पर मरहम कब तक लगता है.

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