लोगों की प्यास बुझाने वाला, आज खुद प्यासा: दर्द बयां कर रहा 300 साल पुराना सिकंदरा बाजार का मिट्ठी कुआं

तीन सौ साल पुराना सिकंदरा बाजार का मिट्ठी कुआं अब लोगों की प्यास नहीं बुझा पाता। क्योंकि वो आज खुद स्वच्छ पानी के लिए तरस रहा है। कुएं में जो बचा पानी है उसमें गंदगी का अंबार है।

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Sun, 05 Dec 2021 08:11 AM (IST) Updated:Sun, 05 Dec 2021 08:11 AM (IST)
लोगों की प्यास बुझाने वाला, आज खुद प्यासा: दर्द बयां कर रहा 300 साल पुराना सिकंदरा बाजार का मिट्ठी कुआं
मिट्ठी कुआं में फैली गंदगी, पीने योग्य पानी नहीं।

संवाद सहयोगी, जमुई : कभी पूरे नगर के लोगों की प्यास बुझाने वाला तीन सौ वर्ष पुरानी सिकन्दरा बाजार का मिट्ठी कुआं खुद प्यासा होकर रह गया है। कुएं में फैली बजबजाती गंदगी के साथ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लडऩे को मजबूर है। दरअसल, इस कुआं का महत्व अपने आप में अलग है। बुजुर्ग बताते हैं कि सूर्य की तेज तपिश के बीच जब पूरा सिकन्दरा में घोर जल संकट उत्पन्न हो जाता था तो एक मात्र यह कुआं सिकन्दरा के लोगों की प्यास को बुझाता था पर देखरेख के अभाव में यह कुआं किसी उद्धारक की बाट जोह रहा है। लोग इस कुएं का पानी खाना पकाने से लेकर सब्जी उगाने के लिए पटवन तक किया करते थे लेकिन आज इस कुएं का अस्तित्व मिटने के कगार पर है।

वर्ष में इस कुएं की एक बार साफ-सफाई व ब्लीचिंग पाउडर डालने का काम किया जाता था लेकिन चापाकल के आगमन के बाद लोग इसे भूलने लगे, जबकि जांच में यह साबित हो चुका है कि कुएं के पानी में आयरन व आर्सेनिक ऐसे मीठे जहर की मात्रा कम रहती है।

शादी-विवाह में इस कुएं का अलग है महत्व

बता दें कि प्राचीनतम यह मिठ्ठी कुआं का खासकर शादी-विवाह के प्रयोजन में विशेष महत्व रखता है। सिकन्दरा में किसी लड़की की शादी हो या लड़के की शादी ढोल-नगाड़ों के बीच इस कुआं पर पहुंचकर परंपरागत रीति-रिवाज के अनुसार पानी भराई (पनकट्टी) जैसी रस्मअदायगी का कार्य को पूरा करते हैं। पानी भराई को लेकर कुएं पर उमड़ी भीड़ और ढोल-नगाड़ों के बीच लोगों की थिरकन से मानों सहसा ही कुएं की रौनकता बढ़ जाती है।

जल-जीवन-हरियाली योजना से है अछूता

जल-जीवन-हरियाली योजना के अंतर्गत जल संचयन को लेकर तालाब, पोखर और कुआं का जीर्णोद्धार कर नए स्वरूप देने की योजना बनाई गई है परंतु यह कुआं जल-जीवन-हरियाली योजना से अछूता होकर रह गया है। आलम यह है कि इनके जीर्णोद्धार की ओर न तो जनप्रतिनिधि और न ही पदाधिकारियों का ही ध्यान जा रहा है। एक जमाने में कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन था। तपती धूप में कुआं मुसाफिरों के लिए पानी पीने का बढिय़ा जरिया हुआ करता था।

जानकारों की मानें तो कुआं में आयरन की मात्रा लेस मात्र भी नहीं होती है। लोगों की मानें तो फ्रिज युग से पहले कुआं के पानी को ठंडा जल का स्त्रोत माना जाता था। कपड़ा धोने के लिए भी लोग कुआं के पानी प्रयोग करते थे। वर्षों पहले लोग कुआं जनहित में खोदवाते थे। पूरे गांव के लोगों के लिए कुआं स्नान व पानी पीने के लिए महत्वपूर्ण साधन था। आज के जमाने में कुआं का अस्तित्व मिटते जा रहा है।

'मनरेगा में कुआं मरम्मत का प्रावधान तो है। साथ ही जल-जीवन-हरियाली योजना अंतर्गत कुआं के जीर्णोद्धार करने की योजना है। शीघ्र ही इस कुएं को जीर्णोद्धार कर जीवंत किया जाएगा।'- अजीत कुमार, मनरेगा कार्यक्रम पदाधिकारी, सिकन्दरा।

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