बिहार में एक जिला ऐसा, जहां देवी-देवताओं के नाम पर हैं डेढ़ सौ से अधिक गांव, जानिए वजह

बिहार के पूर्णिया में डेढ़ से ज्‍यादा गांव ऐसे हैं जो देवी-देवताओं के नाम पर रखे गए हैं। बताया जा रहा है कि प्राकृतिक प्रकोप से बचने को गांवों के नाम देवी-देवताओं का नाम पर रख दिया जाता है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 10:40 AM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 10:40 AM (IST)
बिहार में एक जिला ऐसा, जहां देवी-देवताओं के नाम पर हैं डेढ़ सौ से अधिक गांव,  जानिए वजह
पूर्णिया जिले में कई गांव ऐसे हैं, जो देवी-देवताओं के नाम पर रखे गए हैं।

पूर्णिया [प्रकाश वत्स]। सरसी से रानीगंज की ओर जाने वाली एस एच 77 पर काला बलुआ के समीप एक गांव है शिवनगर। इस गांव का कोई ठोस इतिहास यूं तो ग्रामीणों काे नहीं पता है, लेकिन वे इतना मानते हैं कि उनके पूर्वज तकरीबन सवा सौ वर्ष पहले आकर यहां बसे थे। गांव को भगवान का नाम देने के पीछे एक कारण प्राकृतिक व दैवीय प्रकोप से रक्षा का भाव था। उस दौरान पूरे परिक्षेत्र में हैजा ने तबाही मचा रखी थी। बाढ़ आदि का भी भीषण प्रकोप होता था। ऐसे में गांव में कोई आफत न हो, इसके लिए भगवान के नाम से गांव का नाम रखना उचित समझा गया था। यह बागनी भर है। पूर्णिया जिले में सरकारी दस्तावेज में डेढ़ सौ से अधिक ऐसे गांव हैं, जिनके नाम देवी देवता भी हैं। अधिकांश गांवों के इन नामाें के पीछे भी एक तरह की कहानी ही है।

हनुमाननगर, रामनगर, दुर्गापुर, सरस्वती नगर, विष्णुपुर, नारायणपुर, कालीगंज, लक्ष्मीनगर, वासुदेवपुर व ब्रह्मज्ञानी जैसे गांव यहां हर अंचल में मौजूद हैं। समान देवी देवता के नाम वाले कई गांव दो व तीन अंचलों में भी मौजूद हैं। अमौर में विष्णुपुर तो धमदाहा में भी विष्णुपुर गांव अवस्थित है। बड़हरा कोठी अंतर्गत वासुदेवपुर गांव है।

गांवों पर अध्ययन करने वाले लोगों व समाजशास्त्रियों का मानना है कि काला पानी के लिए चर्चित पूर्णिया परिक्षेत्र में बिहार के अन्य इलाकों के अपेक्षा सन 1917-20 के बीच हैजा का भीषण प्रकोप रहा था। कई बस्तियों में अधिकांश लोग काल कलवित हो गए थे। ऐसे में पलायन का एक दौर भी चला था। बस्तियां ही स्थानांतरित हो गई थी और ऐसे गांवों के शेष लोग नए स्थानों पर बस गए। पुन: ऐसी आपदा का सामना न करना पड़े, इस चलते लोगों ने ईश्वर के नाम पर गांवों का नाम रखा था। इधर नदियों का जाल इस इलाके में बिछा हुआ था। खासकर कोसी के तांडव से हर क्षेत्र के लोग प्रभावित होते थे। कोसी व मिथिलांचल से ही काफी तादाद में आकर लोग यहां बसे थे, जो कहीं कहीं प्राकृतिक प्रकोप से पीड़ित थे। ऐसी स्थिति फिर न हो, इसी मंशा से देवी-देवताओं के नाम पर गांवों का नामांकरण किया गया। यद्यपि कुछ गांवों के ऐसे नामाें के पीछे वहां संबंधित देवी देवता के पौराणिक मंदिरों की मौजूदगी भी रही है।

देवी-देवताओं के नाम पर काफी संख्या में गांवों के नाम के पीछे एक बड़ा कारण रहा है। दैवीय व प्राकृतिक प्रकोप से बचने के लिए इस क्रम की शुरुआत हुई थी। तकरीबन सौ वर्ष पूर्व हैजा के भीषण प्रकोप व कालांतार में बाढ़-कटाव की विपदा से बचने को नई-नई बस्तियां आबाद हुई। पुन: इस तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े, इसके लिए गांवों का नाम देवी-देवताओं के नाम पर रखना मुनासिब समझा गया। हिन्दू के साथ मुस्लिम समुदाय में भी यह चलन यहां रहा। यहां रामनगर, दुर्गापुर के साथ मुहम्मदपुर जैसे गांवों की संख्या काफी अधिक है।-  मनोज कुमार झा, शोधकर्ता, पूर्णिया के गांव।

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