अब भागलपुरी कतरनी की बांका से होगी ब्रांडिंग, बेहतरीन खुशबू और जायका, आप भी चखें इस चावल और चूड़ा को

भागलपुर कतरनी धान उत्पादक संघ को जीआइ टैग मिला है। वन डिस्ट्रिक वन क्राप के तहत भागलपुर को जर्दालु आम मिला। यहां के कतरीन की ब्रांडिंग बांका में की जाएगी। इसका बेहतरीन खुशबू और जायका है। भागलपुर के अलावा अन्‍य देशों में भी काफी ड‍िमांड है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 09:51 AM (IST) Updated:Tue, 28 Sep 2021 09:51 AM (IST)
अब भागलपुरी कतरनी की बांका से होगी ब्रांडिंग, बेहतरीन खुशबू और जायका, आप भी चखें इस चावल और चूड़ा को
भागलपुर में कतरनी धान की होती है खेती।

भागलपुर [नवनीत मिश्र]। भागलपुरी कतरनी चावल की खुशबू और जायका लाजवाब होता है। वन डिस्ट्रिक वन क्राप के तहत भागलपुरी कतरनी बांका के नाम कर दी गई है। भागलपुर जिले को जर्दालू आम और बांका जिले को कतरनी धान को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी गई है। 1991 में भागलपुर जिले से बांका को अलग कर दिया गया। इस कारण दोनों जिलों के चावल को बाजार में भागलपुरी कतरनी के नाम से ही प्रसिद्धि मिली है।

राज्य सरकार की ओर से जो सूची जारी की गई थी, उसमें कतरनी धान बांका के नाम कर दिया गया है। किसानों का कहना है कि कतरनी की खेती भागलपुर जिले में अधिक होती है। जो भी हो, किसानों का कहना है कि इलाके की कतरनी कहीं की भी हो, भागलपुरी कतरनी के नाम से ही बिकेगी। इस इलाके में होने वाले धान की खुशबू के कारण इसका चावल व चूड़ा देश-विदेश में विख्यात है। भागलपुरी कतरनी को जियो टैंगिंग भी मिल गया है। कृषि विभाग का तर्क है कि बांका में धान उत्पादन क्षेत्र अधिक है, इसलिए कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए बांका जिले को जिम्मा सौंपा गया है। इधर, कतरनी धान को बढ़ावा देने के नाबार्ड ने गोराडीह प्रखंड में किसान उत्पादक कंपनी बनाई है। यहां से किसानों के समूह को वित्तीय सहायता के साथ-साथ बाजार भी उपलब्ध कराएगा।

कतरनी धान का रकवा घटा

भागलपुर जिले में कतरनी धान का रकबा घटा है। 2015-16 में कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा) के सर्वे के अनुसार भागलपुर में 496.17 एकड़ में कतरनी धान लगाया गया था। लेकिन इस साल मात्र 240.9 एकड़ में ही कतरनी का धान लगाया गया है। बांका जिले में 15-16 में 433.4 एकड़ में कतरनी धान लगाया गया था। इस साल लगभग तीन सौ एकड़ में ही कतरनी है। 2015-16 में भागलपुर, बांका व मुंगेर में 968.77 एकड़ में कतरनी का उत्पादन होता था, जो रकबा घटकर पांच सौ एकड़ रह गया है। कृषि विभाग के अधिकारी की मानें तो किसानों को बीज नहीं मिलने और पर्याप्त सिंचाई की सुविधा नहीं रहने के कारण वे कतरनी धान नहीं लगा रहे हैं। बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को पहले बीज उपलब्ध कराया जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में यह नहीं मिल रहा है। जिलाधिकारी ने जिला कृषि पदाधिकारी को कतरनी धान का रकबा बढ़ाने का आदेश दिया है। अगले साल से विभाग की ओर से किसानों कतरनी धान को लेकर प्रोत्साहित किया जाएगा।

उपज कम और मांग ज्यादा

कतरनी धान की उपज कम होती है। लेकिन इसकी मांग अब विदेश में होने लगी है। एक एकड़ में इसका करीब 10 क्विंटल उत्पादन होता है। इसकी खुशबू दूर तक फैलती है। खाने में यह सुपाच्य होता है। गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी कीमत अन्य चावलों की तुलना में अधिक होती है। भागलपुरी कतरनी धान उत्पादक संघ को जीआइ टैगिंग मिली है। कीमत भी संघ की ओर से तय की जाती है।

वन डिस्ट्रिक वन क्राप के तहत भागलपुर को जर्दालू आम मिला है। बांका जिले में धान का रकबा अधिक होने के कारण कतरनी धान बांका को दिया गया है। भागलपुर में कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए किसानों को अभी जागरूक किया जा रहा है। - कृष्णकांत झा, जिला कृषि पदाधिकारी, भागलपुर

कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए कतरनी धान उत्पादक संघ का गठन किया गया है। संघ को जीआइ टैग मिल गया है। संघ को नाबार्ड की ओर से मदद दिलाई जा रही है। भागलपुरी कतरनी का स्वाद ही अलग है। - प्रभात कुमार सिंह, उप परियोजना निदेशक, आत्मा

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