नमो देव्यै महादेव्यै: शिक्षा दान की प्रबल इच्छा से आगे बढ़ती गईं मधेपुरा की पूनम, ऐसी नारी शक्ति को भी नमन

नमो देव्यै महादेव्यै... मधेपुरा की पूनम नारी शक्ति के रूप में मिसाल हैं। कालेज प्रबंधन के साथ-साथ संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी निभाने वाली पूनम के मजबूत हौसलों और शिक्षा दान की प्रबल इच्छा ने आज जो मुकाम हासिल किया वो सराहनीय है...

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 02:33 PM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 02:33 PM (IST)
नमो देव्यै महादेव्यै: शिक्षा दान की प्रबल इच्छा से आगे बढ़ती गईं मधेपुरा की पूनम, ऐसी नारी शक्ति को भी नमन
पूनम ने बदल दी तस्वीर, तकदीर और पूरे हुए देखे हुए सपने...

संवाद सूत्र, मधेपुरा।  नमो देव्यै महादेव्यै: संघर्ष के बाद सफलता की कहानी पूनम कुमारी से ज्यादा और कोई नहीं बता सकता। शिक्षादान की मजबूत इच्छा के चलते पूनम आगे बढ़ती ही गईं। कहते हैं न कि इरादे नेक हो तो सपने भी साकार होते ही हैं। इसी उद्देश्य के साथ मधेपुरा कालेज के संस्थापक व डिग्री कालेज के प्राचार्य डा. अशोक कुमार की पत्नी डा. पूनम कुमारी ने 1987 में पति के साथ मधेपुरा में पहली बार कालेज की नींव डाली। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह कालेज एक दिन एक बड़ा समूह बन जाएगा। खुद पूनम बताती है कि वे शादी के पूर्व से प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थी। इसी बीच शादी के बाद पति अशोक कुमार की इच्छा हुई कि क्यों न स्वयं का कालेज खोला जाए। तब लगा कि मधेपुरा जैसे पिछड़े इलाके में इसकी सफलता की क्या गारंटी होगी।

कालेज शुरूआती दिनों में अच्छा चला। लेकिन 1997 के बाद संघर्ष का दौर शुरू हो गया। कालेज को लेकर कई तरह की गलत भ्रांति फैलाई गई। 1999 में तो ऐसा लगा कि सबकुछ जल्द खत्म हो जाएगा। छात्रों ने नामांकन तक कराना बंद कर दिया था। लेकिन हमलोगों ने निश्चय किया कि हर हाल में इस चुनौती को पुरी ताकत के साथ सामना करेंगे। उसी का नतीजा है कि आज कालेज बिहार का एक चर्चित संस्थान के रूप में कार्य कर रहा है। वे कहती है कि मेरे साथ बड़ी जिम्मेदारी परिवार की थी। हमलोगों का ससुराल लंबे समय से संयुक्त रूप में रहा।

सारी जिम्मेदारी को निभाना ही अपने आप में चुनौती थी। बावजूद हमने हिम्मत नहीं हारी। आज उसी का नतीजा है कि सभी लोग एक साथ आंनद के साथ रह रहे हैं। वे कहती है कि तीसरी जिम्मेदारी बच्चों को लेकर थी। मैंने शुरूआती दौर में कलेजे पर पत्थर रखकर बेटा-बेटी को बहार रखा। इतना ही नहीं पुरे अनुशासन के साथ दोनों को सींचा। उसी का नतीजा है कि आज मेरा बेटा डाक्टर है तो बेटी एक कालेज की जिम्मेदारी निभा रही है।

वे कहती है कि हमदोनों का सपना है कि इस कालेज के विभिन्न अंगो को समेटकर एक निजी विश्वविद्यालय का निर्माण करूं। उम्मीद है कि जल्द ही इसमें सफलता मिलेगी और कोसी के लोगों को शिक्षा की बड़ी सौगात मिलेगी।

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