नदियों की धारा-चचरी ही सहारा: यहां नई नवेली दुल्हन का स्वागत करता है खुद का बनाया पुल, सुपौल की दास्तां
इंटरनेट मीडिया पर कई फोटो और वीडियो वायरल हुए। चचरी पुल हाथों से बनाया हुआ पुल। सुपौल के विकास की गाथा बयां करता है। यहां कई गांव ऐसे हैं जहां नाते रिश्तेदार आना पसंद नहीं करते। नई नवेली दुल्हन की एंट्री भी इसी पुल से होती है।
जागरण टीम, सुपौल : 'कहां तो तय था चराग़ां हरेक घर के लिए, कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए।' जिले में बिछे सड़कों के जाल के बीच कई स्थानों पर नदियों की धारा पर चचरी का सहारा देख दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति बरबस ही याद आ जाती है। कोसी तटबंध के अंदर के गांवों की बात छोड़ भी दें तो बाहर कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी चचरी पारकर ही जाना पड़ता है। कहीं-कहीं चचरी के अभाव में लोग नाव से भी पार करते हैं। कई स्थानों पर ग्रामीणों ने चंदे से चचरी का निर्माण कराया है तो कहीं-कहीं सरकारी व्यवस्था भी की जाती है। यह अलग बात है कि इन गांवों में जाने के लिए लोगों को अपनी गाड़ी चचरी के उस पार ही छोड़नी पड़ती है। कोई बीमार हुआ तो उसे खाट पर लादकर चचरी पार कराना पड़ता है। कई गांव तो ऐसे हैं जहां नई नवेली दुल्हनों को पैदल ही चचरी पार कर ससुराल जाना पड़ता है।
प्रतापगंज प्रखंड क्षेत्र के कई ऐसी महत्वपूर्ण सड़कें हैं जहां लोगों को नदी पार करने के लिए चचरी ही एक मात्र सहारा है। या फिर लंबी दूरी तय कर गंतव्य तक जाना पड़ता है। प्रतापगंज-महदीपुर मार्ग पर पडिय़ाही के बीच मिरचैया नदी स्थित धरमघाट के पास चचरी पुल पार कर आसपास के दर्जनों गांवों के लोग सफर तय करते हैं। चिलौनी उत्तर पंचायत के लोगों को तीनटोलिया दुर्गा मंदिर के समीप भेंगा धार पर चचरी बनाकर नदी के उस पार भालूकूप गांव या उससे आगे जाने की यात्रा तय करनी पड़ती है।
त्रिवेणीगंज प्रखंड मुख्यालय की लतौना दक्षिण पंचायत के शिवनगर नेपाली टोला वार्ड 08 के ग्रामीणों के लिए पुल का निर्माण नहीं हो पाया। ग्रामीणों की मानें तो जनप्रतिनिधियों के द्वारा पुल निर्माण एवं सड़क बनाने का वादा किया जाता है लेकिन अब तक यह छलावा ही साबित हुआ है। पुल के अभाव में चचरी पुल व नाव ही आवागमन का मुख्य सहारा है। मानगंज पश्चिम वार्ड 05 स्थित छुरछुरिया नदी पर बना पुल 2008 की बाढ़ में ध्वस्त होने के 14 साल बाद भी ग्रामीण चचरी पुल के सहारे आवागमन करने पर मजबूर हैं। नदी के किनारे बसे गांववाले आपसी सहयोग से चचरी पुल का निर्माण करते हैं, लेकिन प्रत्येक वर्ष नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण चचरी पुल बह जाता है।
किशनपुर प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत शिवपुरी पंचायत के थरबिट्टा पूर्वी कोसी तटबंध से पश्चिम नौआबाखर जाने वाली सड़क में कोसी के तांडव से पुल ध्वस्त हो जाने से आधा दर्जन गांव के लोगों को नदी में पानी आने के बाद छह माह तक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोग चंदा कर यहां चचरी बनाते हैं।
छातापुर प्रखंड को विरासत में मिली सुरसर, मिरचैया, गेड़ा नदी का निदान अबतक नहीं हो सका है। विकास की गाड़ी प्रखंड क्षेत्र में भी दौड़ रही है। विगत कुछ वर्षों में छातापुर प्रखंड में भी कई पुल बने और सड़कों का जाल बिछा लेकिन कुछ गांव ऐसे हैं जहां जिंदगी नाव या चचरी पुलिया के सहारे चलती है। प्रखंड की घीवहा पंचायत के पूर्वी हिस्सा में बह रही सुरसर नदी के कारण हसनपुर, लालगंज पंचायत के मध्य में प्रवाहित पडियाही गांव में गेड़ा नदी व मिरचैया नदी व रामपुर पंचायत में प्रवाहित सुरसर नदी के कारण रामपुर, झखाडग़ढ़, कटहरा के लोगों की ङ्क्षजदगी चचरी पुल के सहारे कट रही है। बाढ़ आने पर यह चचरी बह जाती है।
बलुआ बाजार थाना क्षेत्र की लक्ष्मीनियां पंचायत एवं बलुआ पंचायत की सीमा पर स्थित महादेवपट्टी वार्ड 03 में 2008 से नदी बस्ती के निकट से होकर बहती है। यहीं पर बलुआ-उधमपुर मार्ग भी है। नदी में पुल नहीं होने के कारण लोगों को बरसात में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। लोग बारिश के दिनों में चचरी बनाकर नदी पार करते हैं।