Munger: बाढ़ की आहट के साथ ही मछुआरों की बढ़ जाती है बैचेनी, गंगा नदी में मछली पकडऩे में होती है परेशानी
गंगा मेें बाढ़ आने से मछुआरे की परेशानी बढ़ जाती है। लेकिन बाढ़ के बाद गंगा जब अपने पुराने स्वरूप में लौटती है तो मछलियों की कई किस्म सौगात के रूप में छोड़ कर जाती है। जिसे बेच कर मछुआरे मलामाल हो जाते हैं।
जागरण संवाददाता, मुंगेर। मुंगेर में मछुआरों की बड़ी आबादी है। बाढ़ की आहट के साथ ही मछुआरों की परेशानी बढ़ जाती है। हालांकि, मछुआरा बाढ़ के आने और जल्दी लौट जाने की प्रार्थना करते हैं। बाढ़ के दौरान मछुआरों को शाकिारमाही करने में (मछली मारने) परेशानी आती है। लेकिन, बाढ़ के बाद गंगा जब अपने पुराने स्वरूप में लौटती है, तो मछलियों की कई किस्म सौगात के रूप में छोड़ कर जाती है। जिसे बेच कर मछुआरे मलामाल हो जाते हैं।
लगातार हो रही बारिश के कारण गंगा मचलने लगी है। दियारा इलाके में बाढ़ की आहट सुनाई देने लगी है। बाढ़ की आहट सुनाई देते ही मछुआरों की बैचेनी बढ़ जाती है। बाढ़ के दौरान दो महीने तक मछुआरे सही तरीके से शिकारमाही नहीं कर पाते हैं। संतोष सहनी ने कहा कि बाढ़ के दौरान दो से तीन महीने का समय मछुआरों के लिए मुश्किल का समय होता है। कई तालाब-पोखरों से भी मछलियां बाढ़ का पानी बहा ले जाती हैं। संतोष सहनी ने कहा कि दूसरा कारण यह है कि जून जुलाई के महीने में सभी मछलियां अंडे देती हैं। छोटे मछलियों की शिकारमाही पर रोक है। यह रोक मछुआरों के हित में ही है। छोटी मछलियों अगर बड़ी हो जाती हैं, तो मछुआरों को ही फायदा होता है।
दूसरा जब गंगा उफान पर होती है, तो गंगा में सिर्फ राहत और बचाव कार्य से जुड़े नौका के ही परिचालन की अनुमति रहती है। सुरक्षा के ²ष्टिकोण से मछुआरों को भी गंगा में जाने से रोका जाता है। ताकि, कोई दुर्घटना नहीं हो। इस कारण बाढ़ का दो महीना मछुआरों के लिए मुश्किल भरा होता है। वहीं, गंगा जब वापस लौटती है, तो टेंगरा, बुआरी, मोच, कतला, रेहू, निरका, कोलमास, बचवा, सुगवा, पिरोया, ङ्क्षझगा, वामी जैसी मछलियों की कई प्रजातियां बहुतायत में छोड़ जाती हैं। जिससे मछुआरों को अच्छी आमदनी हो जाती है।
संतोष सहनी ने कहा कि कई लोग मच्छरदानी का जाल के रूप में इस्तेमाल कर छोटी मछलियों का शिकारमाही करते हैं। ऐसा करना गलत है। अगर छोटी मछलियों को नहीं पकड़ा जाए, तो गंगा में सालों भर मछलियों की कोई कमी नहीं होगी।