बेड पर कराहती रहीमां, पानी तक देने वाला कोई नहीं था, तड़प-तड़पकर हो गई मौत

पूर्व बिहार के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) को कोविड डेडिकेटेड अस्पताल बना दिया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 07:07 AM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 07:07 AM (IST)
बेड पर कराहती रहीमां, पानी तक देने वाला  कोई नहीं था, तड़प-तड़पकर हो गई मौत
बेड पर कराहती रहीमां, पानी तक देने वाला कोई नहीं था, तड़प-तड़पकर हो गई मौत

भागलपुर । पूर्व बिहार के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) को कोविड डेडिकेटेड अस्पताल बना दिया गया है। फिलहाल यहां सिर्फ कोरोना संक्रमित मरीजों का ही इलाज किया जा रहा है। तमाम कमियों के बीच प्रबंधन मरीजों की बेहतर देखरेख और इलाज का दावा कर रहा है। पर इनके दावे और हकीकत में बड़ा अंतर है। हाल के दिनों में जिन कोरोना पीड़ितों की अस्पताल के आइसीयू में मौत हो गई, उनके स्वजनों ने यहां के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की संवेदनहीनता की कहानी बयां कर अस्पताल प्रबंधन के दावों की पोल खोलकर रख दी। पेश है अशोक अनंत की रिपोर्ट :-

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जमालपुर के दौलतपुर की खुशबू ने अपनी कोरोना पॉजिटिव मां को जेएलएनएमसीएच के आइसीयू में भर्ती कराया। जहां 14 मई को उनकी मौत हो गई। अस्पताल कर्मियों की संवेदनहीनता याद कर खुशबू की आंखें गीली हो जाती है। कहती हैं कि मां बहुत कमजोर हो गई थीं, उठ नहीं पाती थीं। आइसीयू के कर्मियों से पानी मांगने पर भी वे नहीं देते थे। वे भूख-प्यास से घंटों तड़पती रहती थीं। मल-मूत्र से बिस्तर गीला हो जाता था लेकिन कोई साफ करने तक नहीं आता था। खाना खिलाने वाला भी कोई नहीं था।

आरजू-मिन्नत करने पर मुझे दो- चार मिनट के लिए अंदर जाने दिया जाता था। इसी दौरान मां की कुछ मदद कर पाती थी। जरा भी देर होने या सवाल करने पर हाथ में दवा की पर्ची थमा दी जाती थी। साथ ही कहा जाता कि अंदर का फोटो या वीडियो बनाया तो मरीज को जेनरल वार्ड में भेज दिया जाएगा। कार्रवाई भी की जाएगी।

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केस स्टडी 02

बांका कंचननगर के मिथुन कुमार ने कहा कि आइसीयू में जब मां प्रमिला देवी को भर्ती किया गया तो पर्ची पर करुणा देवी नाम लिख दिया गया। पूछने पर कर्मी ने कहा कि अभी इलाज करवा लो नाम बाद में ठीक करवा लेना। खूब आरजू-मिन्नत कर मां को आइसीयू में भर्ती कराया था। पर देखरेख और इलाज के अभाव में उन्होंने दम तोड़ दिया। 15 मई को मां हमलोगों को छोड़कर चली गई।

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केस स्टडी 03

मुंगेर के दिनेश कुमार की मौत 10 मई को आइसीयू में हो गई। उनके पुत्र सौरव सुमन ने बताया कि पहली बार जब पिताजी को लेकर आइसीयू आए तो उस वक्त डॉक्टरो और कर्मचारियों की ड्यूटी बदल रही थी। वहां तीन-चार लाशें देखकर मैंने पिताजी को भर्ती नहीं कराया। वहां से उन्हें लेकर जमालपुर कोविड सेंटर चला गया। वहां भी डॉक्टर सेंटर से दूर मोटरसाइकिल पर बैठे रहते थे। कंपाउंडर पर्चा लेकर डॉक्टर के पास जाता था, तो वे सलाह देते थे। डॉक्टर खुद कभी भी मरीज को देखने नहीं आए। वहां की स्थिति देख पिताजी को मुंगेर सदर अस्पताल ले गया। पर अचानक तबीयत अधिक खराब होने पर दोबारा 28 अप्रैल को मायागंज अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करवाया। एक मई को वे आइसीयू में शिफ्ट किए गए। यहां क्या दवा चल रही है यह बताने वाला भी कोई नहीं था। अस्पतालकर्मी हर कार्य अपनी सुविधा के हिसाब से कर रहे थे। इलाज ठीक से नहीं हो पाने के कारण 10 मई को पिताजी की मौत हो गई।

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केस स्टडी 04

गोड्डा के सुधांशु ने कहा कि पिता विपिन बिहारी साह को इमरजेंसी में भर्ती कराया था। 10 दिन बाद जब हालत खराब हुई तो काफी प्रयास के बाद आईसीयू में भर्ती किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि ऑक्सीजन का फ्लो कम रहने के कारण एक घंटे में ही पिताजी की मौत हो गई।

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कोट :-

आइसीयू में मानव बल की कमी है, जिसे दूर किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने स्वजनों को मरीज के पास नहीं जाने का आदेश दिया है। जिन मरीजों की हालत गंभीर है, उन्हीं की मौत हो रही है। डॉक्टर जान बचाने का भरसक प्रयास करते हैं। स्वजन की जो भी शिकायतें हैं उसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

- डॉ. असीम कुमार दास, अधीक्षक, जेएलएनएमसीएच।

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