जेएलएनएमसीएच में इलाज हो रहा यही बड़ी बात है

भागलपुर [अशोक अनंत] जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) में इलाज ही हा

By JagranEdited By: Publish:Wed, 03 Mar 2021 02:17 AM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 02:17 AM (IST)
जेएलएनएमसीएच में इलाज हो रहा यही बड़ी बात है
जेएलएनएमसीएच में इलाज हो रहा यही बड़ी बात है

भागलपुर [अशोक अनंत]

जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) में इलाज ही हो जा रहा है, वह बड़ी बात है। अस्पताल में दवा से लेकर पेट की सिलाई के लिए धागे भी बाहर से लाने पड़ते हैं। ऐसे में सस्ते इलाज के लिए गांव-देहात से आने वाले मरीजों को निजी अस्पतालों के बराबर खर्च करने पड़ते हैं।

जेएलएनएमसीएच में अव्यवस्था ऐसी है कि ऑपरेशन करवाना तो पेट चीरने के लिए ब्लेड से सिलाई करने के लिए बाहर से धागा तक लेकर आना पड़ता है। इसके अलावा अन्य कई दवाएं भी खरीदनी पड़ रही हैं। अस्पताल में कई दवाओं की कमी है, लेकिन प्रबंधन इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। बताया जा रहा है अस्पताल में ये सारी व्यवस्था रहते हुए जानबुझकर कमीशन पाने के लिए मरीजों से मंगवाया जा रहा है। वहीं, सदर अस्पताल की बात करें तो वहां अन्य दवाएं तो दूर उल्टी रोकने तक की दवा नहीं है। कुल मिलाकर कहने भर के लिए है कि अस्पताल में इलाज निश्शुल्क होता है और सभी दवाएं मिलती हैं।

ब्लेड से धागे तक खरीदने पड़े

नवटोलिया की उषा देवी का अस्पताल के ऑब्स गायनी में सोमवार को सीजेरियन किया गया। स्वजन को ब्लेड, सिलाई के लिए धागे, कैटगेट दवाएं खरीदने में 14 सौ रुपये लग गए। उषा देवी के पति अर्जुन मंडल ने बताया कि पैसे की व्यवस्था करनी पड़ी। मैंने तो सोचा था कि यहां दवाएं भी मिल जाएंगी, लेकिन ब्लेड तक खरीदनी पड़ी। इन दवाओं में बेहोशी की दवा एनाविन, नवजात की नाभी बांधने के लिए कॉड क्लेम, पेट सिलाई के लिए कैटगेट, खून रोकने के लिए दवा भी खरीदवाई गई।

मजदूर हूं, कहां से खरीदूंगा इतनी महंगी दवा

इनडोर शिशु विभाग में नवगछिया निवासी विकास कुमार का सात वर्षीय पुत्र थैलेसिमिया से ग्रस्त है। डसीरॉक्स दवा की कीमत 1528 रुपये है। विकास ने बताया कि मजदूरी करता हूं, एक माह में दो बार बच्चे को भर्ती करना पड़ता है। इतनी महंगी दवा कहां से खरीदूंगा। बताया गया कि उक्त दवा के लिए दो बार दवा स्टोर से मांग की गई है।

मानसिक विभाग में मिर्गी की दवा भी स्टॉक में नहीं

अस्पताल के मानसिक विभाग में मिर्गी की दवा नहीं है। मिर्गी से ग्रस्त मरीज को प्रतिदिन दवा खानी पड़ती है। अस्पताल में प्रतिदिन तीन से पांच मरीज इलाज करवाने आते हैं। इसके अलावा माइग्रेन के मरीजों में भी दवा आवश्यक है। जिन मरीजों को हमेशा डर लगता है, इसकी दवा भी नहीं है।

एक माह से सदर अस्पताल में नहीं हैं आयरन की गोलियां

सदर अस्पताल के इमरजेंसी में ऑपरेशन के बाद दर्द कम करने के लिए ट्रामाडोल दवा फरवरी में ही एक्सपायर हो गई। इसके अलावा पेंटासीन सूई भी नहीं है। अस्पताल के ऑब्स गायनी में उल्टी रोकने की पेरीनॉम, बीपी कम करने और डेक्सट्रो स्लाइन नहीं है। एक माह से आयरन की टेबलेट भी नहीं है, सीरप है।

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कोट एक दिन पहले ही पदभार ग्रहण किया हूं, अस्पताल में कौन सी दवा की कमी है, इस मामले में जानकारी ली जाएगी। शीघ्र की दवा की व्यवस्था कराई जाएगी।

डॉ. दीनानाथ, सिविल सर्जन

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कोट ब्लेड और पेट सिलाई के धागे उपलब्ध हैं। अगर मरीजों को नहीं दिया जा रहा है तो कर्मचारियों की लापरवाही है। अन्य दवाओं के बारे में जानकारी ली जाएगी।

डॉ. अशोक भगत, अधीक्षक, जेएलएनएमसीएच

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