PulwamaTerror Attack : शहीद रतन के लिए जाने क्या कर दें सभी में यही चाहत दिखी

रतनपुर में जाति-धर्म, ऊंच-नीच का भेद मिटा दिया। रतन को एक झलक देखने की ललक जितनी उनके परिवार को थी उससे कम गांव के लोगों में नहीं थी।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Sun, 17 Feb 2019 09:20 PM (IST) Updated:Mon, 18 Feb 2019 09:44 PM (IST)
PulwamaTerror Attack : शहीद रतन के लिए जाने क्या कर दें सभी में यही चाहत दिखी
PulwamaTerror Attack : शहीद रतन के लिए जाने क्या कर दें सभी में यही चाहत दिखी

भागलपुर [जेएनएन]। रतनपुर में जाति-धर्म, ऊंच-नीच का भेद मिटा दिया। रतन को एक झलक देखने की ललक जितनी उनके परिवार को थी उससे कम गांव के लोगों में नहीं थी। शहीद रतन का पार्थिव शरीर आने से पहले ही गांव में दर्शन के लिए हजारों की भीड़ लगी थी। शहीद रतन के घर के ठीक बगल में अल्पसंख्यक परिवार रहता है। उनका घर मदारगंज के वार्ड छह में है। वार्ड छह के कतार में अधिकांश घर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का है। रतन के शहीद होने की सूचना के बाद से जिस तरह उनके घर में मातम छाया हुआ था उसी तरह उनके पड़ोसियों के घर में भी शोक था। हमारे गांव का नाम पूरे देश में अब लोग जान गए। अपना रतन सचमुच बहुत अच्छा लड़का था। क्या बताएं हमें भी इच्छा है, इस शहीद के लिए जाने क्या कर दूं। घटना को लेकर काफी गुस्सा है। बस हम किसी के पास व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। किससे बोले। शहीद रतन के परिवार का दर्द हम महसूस कर रहे हैं। कितनी पीड़ा हो रही होगी। एक बच्चा है तीन साल का। उस बेचारे को तो सही तरीके से यह भी पता नहीं होगा कि उसके पापा अब नहीं रहे। बातें होने लगी। यहां की मिट्टी और आबो-हवा भाईचारा की अलग मिसाल पेश करता है। मदारगंज के तीनों गांवों के बीच से सड़क निकलती है। सड़क के इस पार मदारगंज तो उस पार हरेरामपुर, रतनपुर लेकिन अगर किसी किस्म की दिक्कत हुई तो दोनों गांवों से लोग अपने छतों पर खड़े होकर एक दूसरे गांवों के लोगों को पुकारते हैं। लोग एक दूसरे के लिए खड़े होते हैं। शहीद रतन के घर दुख का पहाड़ टूटा है।

मिल्लत की मिसाल ऐसी भी कि शहीद रतन के घर पहुंचने वाले रिश्तेदारों को पड़ोसी आगे बढ़ कर पूछ रहे हैं। उनके उन्हें ढाढस देने से लेकर चाय-नास्ते के लिए लगे हैं। लोग सबकी खैर-खबर लेते दिखे। उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत ना हो इसका भी ख्याल कर रहे थे। उनके घर के पास काफी संख्या में लोग जमा थे। सभी शहीद रतन के परिवार के गम में शामिल। गर्व भी महसूस हो रहा था कि उसकी शहादत देश के लिए हुई।

बेलसर गांव से पहुंचे अघोरी यादव को गर्व है इस शहादत पर

बेलसर गांव से पहुंचे 64 वर्षीय अघोरी यादव को रतन की शहादत पर गर्व है। इस बात का अफसोस है कि उसने जिंदगी के 64 बसंत देखे लेकिन उसे ऐसी शहादत का मौका नहीं मिला। वह सैनिक नहीं बन सका। रतन ठाकुर बना तो उसे कम समय में ही बलिदानी देनी पड़ी। सारा काम धंधा छोड़ बेलसर गांव से पैदल ही पहुंचे थे अघोरी। हजारों की भीड़ देख सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया। वाह रे वाह, जियो शेर। मूंछ पर हाथ भी फेरते रहे। एन्हैं नै देखैल अैले छियै हो... कुच्छु त छै बात जे सभैं दौड़ले चल्लै अएलै।

शहीद होकर रतन ने मिटा दिया जाति-धर्म का भेद

रतनपुर में जाति-धर्म, ऊंच-नीच का भेद मिटा दिया। रतन को एक झलक देखने की ललक जितनी उनके परिवार को थी उससे कम गांव के लोगों में नहीं थी। शहीद रतन का पार्थिव शरीर आने से पहले ही गांव में दर्शन के लिए हजारों की भीड़ लगी थी। शहीद रतन के घर के ठीक बगल में अल्पसंख्यक परिवार रहता है। उनका घर मदारगंज के वार्ड छह में है। वार्ड छह के कतार में अधिकांश घर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का है। रतन के शहीद होने की सूचना के बाद से जिस तरह उनके घर में मातम छाया हुआ था उसी तरह उनके पड़ोसियों के घर में भी शोक था। गांव के वार्ड-छह और सात में आज एक भी घर ऐसा नहीं होगा जहां दोपहर तक चूल्हे नहीं जले थे। रतन के पार्थिव शरीर को देखने के लिए दर्जनों घरों की छतों पर महिलाएं और बच्चे खड़े होकर इंतजार कर रहे थे। गांव में हर परिवार को लग रहा था कि उसका रतन अमर हो गया। बदहवास रतन की पत्नी को दिन भर सांत्वना देने के लिए पड़ोस की महिलाएं थीं। वैसे शहीद की पत्नी राजनंदनी के मैके से उनकी मां सुनीता देवी सहित मामी, छोटी बहन और मौसी भी आई थीं। रतन की सास का भी रो-रोकर हाल बुरा था। सास को संभालने में ससुर लगातार सांत्वना दे रहे थे। गांव में रतन का पार्थिव शरीर आने के बाद बहन नीतू कुछ देर के लिए बेसुध हो गई थी। परिवार के सदस्य लगातार स्थिति को संभालने में लगे थे। भाई मिलन कुमार सहित अन्य लोग रतन के पुत्र कृष्णा कुमार का ख्याल रखे हुए थे। हालांकि बच्चे को यह नहीं पता कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे।

हालत बिगडऩे पर कहलगांव पीएचसी से आए डॉक्टर

शहीद रतन की पत्नी राजनंदनी की शनिवार को रह-रहकर तबियत बिगड़ रही थी। गर्भवती होने के कारण उल्टी भी हुई। सुबह से उन्हें ग्लूकोज और शर्बत पिलाने की कोशिश की गई लेकिन वह नहीं ले रही थीं। जिस समय तबियत बिगड़ी थीं उसी समय सांसद कहकशां परवीन उनसे मिलने पहुंची। सांसद ने उसे अपने दिल से सटाकर उनको सांत्वना दी। दोपहर करीब डेढ़ बजे कहलगांव प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से प्रभारी डॉ. लखन मुर्मू के नेतृत्व में नर्स और कंपाउंडर पहुंचे। उनका रक्तचाप की जांच की गई जो बढ़ा हुआ था। शहीद रतन के पार्थिव शरीर का दर्शन कराने के नाम पर उन्हें जब घर से बाहर निकाला गया तो फिर उनकी तबियत बिगडऩे लगी। संयोगवश नर्स वहां थी। उसने स्थिति को संभाला। डॉक्टर ने कहा कि राजनंदनी की चिकित्सीय जांच प्रतिदिन की जाएगी। उन्हें किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होने दी जाएगी।

पोते को बनाएंगे पुलिस अधिकारी

शहीद रतन के पिता राम निरंजन ठाकुर ने कहा कि बेटे को खोने के बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। कहा कि पोते कृष्णा कुमार को पुलिस अधिकारी बनाएंगे। रतन के पिता ने उक्त बातें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से कही। गिरिराज ने भावुक पिता को गले लगाया और उनका ढांढस बांधा। गिरिराज ने पिता से कहा कि आपके बेटे की शहादत पर पूरा देश गर्व कर रहा है। आपके पीछे पूरी सरकार है। पिता ने कहा कि मेरे पोते का भविष्य बना दीजिए।

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