जेल में पूर्व सांसद आनंद मोहन के पास मिला अवैध समान, बोलीं पत्नी लवली आनंद-बिहार सरकार रच रही षड्यंत्र
सहरसा जेल में हुई छापेमारी में पूर्व सांसद आनंद मोहन के पास से अवैध सामान बरामद किया गया। इसके बाद उनके ऊपर मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की गई। मुंगेर पहुंची उनकी पत्नी लवली आनंद ने इस पूरे वाकये को राजनीतिक षड्यंत्र करार दिया है....
संवाद सूत्र, मुंगेर। शनिवार शाम सहरसा जेल में हुई छापेमारी के बाद पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand Mohan) पर कार्रवाई करते हुए मामला दर्ज किया गया है। पूर्व सांसद की पत्नी सह पूर्व सांसद लवली आनंद ने इसपर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि राज्य की सरकार पूर्व उनके पति के खिलाफ खिलाफ षड्यंत्र रच रही है। निर्दोष रहते हुए भी उन्होंने 14 वर्ष की सजा काट ली है, इसके बाद भी जेल में जबरन रोककर रखा गया है।
संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उप चुनाव में उनके विधायक बेटे चेतन आनंद की सक्रिय भागेदारी का गुस्सा आनंद मोहन पर उतारा जा रहा है। सूबे में सिर्फ मंडल कारा सहरसा में छापेमारी की गई, पूर्व सांसद को परेशान किया गया। विधायक चेतन आनंद ने कहा कि छापेमारी में पिता जी के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ। उन्होंने इस घटना की निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग करने की बात कही।
गौरतलब हो कि शनिवार देर शाम सहरसा मंडल कारा में छापेमारी में छह मोबाइल फोन, एक चार्जर, एक चाकू और एक एक्सटेंशन तार बरामद किया गया। इनमें चार स्मार्ट मोबाइल फोन एवं चार्जर यहां बंद पूर्व सांसद आनंद मोहन के पास से बरामद किए गए हैं। एक मोबाइल फोन बंदी दीपक कुमार के पास से बरामद की गयी। एक मोबाइल फोन बाहरी परिसर में फेंका हुआ पाया गया।
छापेमारी में बरामद मोबाइल सहित अन्य सामान को लेकर जेल अधीक्षक सुरेश चौधरी ने सदर थाना में जेपी खंड के सजायाफ्ता बंदी आनंद मोहन, वार्ड नंबर एक के विचाराधीन बंदी दीपक कुमार एवं वार्ड नंबर तीन के अज्ञात बंदियों के विरुद्ध मामला दर्ज कराया है।
कौन हैं आनंद मोहन (राजनीतिक करियर) सहरसा जिले के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं आनंद मोहन दादा स्वतंत्रता सेनानी थे और आनंद मोहन ने जेपी आंदोलन सेही राजनीति में एंट्री की थी। 17 साल की उम्र से आनंद मोहन सक्रिय राजनीति में उतर गए। 1990 में जनता दल की टिकट पर माहिषी विधानसभा सीट से उन्होंने जीत दर्ज की। आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई। समता पार्टी से हाथ मिलाते हुए चुनाव लड़ा। 1995 में आनंद मोहन का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में भी सामने आया। 1998 में आनंद मोहन शिवहर से सांसद बने और आरजेडी को समर्थन दिया। 1999 में वे बीजेपी के साथ आ गए।
दलित आईएएस अफसर की मौत का मामला 5 दिसंबर 1994 में गोपालगंज में एक दलित आईएएस अधिकारी की हत्या के मामले में आनंद मोहन पर बड़ी कार्रवाई हुई। आरोप था कि जिस भीड़ ने आईएएस जी कृष्मैया की पिटाई और गोली मारकर हत्या कर दी। उसे उसकाने वाले आनंद मोहन थे। 2007 में पटना हाइकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। आजाद भारत का ये पहला मामला था जब किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले नेता को फांसी की सजा दी गई हो। 2008 में इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया। आनंद मोहन पर कई मामले दर्ज थे, इनमें वे बच जाते रहे।