LJP Latest News: चिराग की लौ तेज करने आए भाई, रामविलास पासवान के खत से रिश्‍ते का हुआ खुलासा!

LJP Latest News लोजपा में टूट के बाद चिराग पासवान अकेले हो गए हैं। उनके चाचा सहित पांचों सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया। लेकिन भाई समान उनके दोस्‍त सौरभ ने इस समय चिराग को संभाला हुआ है। वहीं रामविलास पासवान के पत्र में इनके रिश्‍ते का खुलासा हुआ है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Mon, 21 Jun 2021 02:21 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 08:12 AM (IST)
LJP Latest News: चिराग की लौ तेज करने आए भाई, रामविलास पासवान के खत से रिश्‍ते का हुआ खुलासा!
चिराग पासवान के साथ दोस्‍त सौरभ पांडेय।

जमुई [संजय कुमार सिंह]। LJP Latest News: लोजपा की टूट पर भले ही चाचा पारस समर्थक सौरभ पांडेय पर हमलावर हैं। परंतु यह सच है की 2013 में फिल्मी दुनिया छोड़कर राजनीति में आए चिराग के लिए वही मित्र ने ऊंचाईयों तक पहुंचाने में दिन रात एक कर दिए हैं। इस बात का खुलासा सोमवार को स्व रामविलास पासवान के पत्र से हुआ है। यह पत्र स्व रामविलास पासवान ने जनवरी महीने में सौरभ पांडेय को लिखा था। आज जब उनपर हमले हो रहे हैं तो उन्होंने इस पत्र को सार्वजनिक किया है। उस पत्र में लोजपा सुप्रीमो ने चिराग के मित्र सौरव को परिवार के एक सदस्य बतौर पुत्र की तरह ही स्वीकार करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा है कि चिराग जबसे राजनीति में आए हैं। आपने बिल्कुल साये की तरह साथ निभाया है। राजनीति में बेटा आपकी आलोचना भी होगी। चिराग जितना बड़ा कद होगा, आपके आलोचक भी उतने बड़े होंगे। इससे विचलित नहीं होना है। अभी दो मोर्चे पर चिराग के लिए बड़ी लड़ाई लड़ना है। देश और बिहार की राजनीति में तभी स्थापित होगा। दरअसल कांग्रेसी परिवेश में पले बड़े सौरव पांडेय यूपी के बनारस के रहने वाले हैं।

चिराग और उनके बीच 25 साल पुरानी है। सौरभ के पिता पुराने कांग्रेसी रहे हैं। फिलहाल वे यूपी लोजपा प्रदेश अध्यक्ष हैं। चिराग और सौरभ के पिता भी पुराने दोस्त रहे हैं। राजनीति में चिराग के आने के बाद सौरभ की भूमिका बढ़ गई। 2014 और 2019 में जमुई लोकसभा से चिराग की जीत की पटकथा सौरभ ने ही लिखी थी। इसके अलावे स्व रामचंद्र पासवान की मौत के बाद उसने उनके पुत्र प्रिंस राज की जीत भी लंदन में तैयार की थी। दरअसल चुनाव से पहले सौरभ लंदन टूर पर थे। चुनाव के लिए तैयारी करनी थी। वहीं से बैठकर उन्होने सभी रणनीति तैयार कर ली। बाद में समस्तीपुर पहुंचकर उस प्लान को कार्यकर्ताओं के बीच जारी की। प्रिंस राज की जीत के बाद सौरभ का कद परिवार और पार्टी में काफी ऊंचा हो गया।

यही बात चाचा पारस को खलने लगी। चूंकि स्व रामविलास पासवान के दौर में पारस चाचा ही मैनेजर की भूमिका में रहते थे। अब जब चिराग का दौर आया तो सौरव ने लोजपा की राजनीति में रणनीति पर काम करने लगे। बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश के खिलाफ चुनाव लड़ने की रणनीति खुद स्व रामविलास पासवान ने ही तैयार की। उन्हें लगने लगा था कि पिछलग्गू बनकर पार्टी और कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान नहीं मिल पाएगा। दरअसल विधानसभा चुनाव के दौरान सीट बंटवारा को लेकर जदयू ने अपना पल्ला झाड़कर बीजेपी खेमे में लोजपा को डाल दिया। बीजेपी लोजपा को महज 15 सीट ही देने को तैयार थी। चिराग को लगा कि अगर इसबार 15 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो 2024 लोकसभा चुनाव में दो-तीन सीटों पर ही बीजेपी सिमटा देगी।

इसलिए चिराग को अपनी पार्टी का कद बढ़ाने के लिए अलग रणनीति बनाई। 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इससे पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने का मौका मिला और पूरे बिहार में लगभग 25 लाख वोट भी हासिल हुए। चिराग के इस रणनीति में सौरभ ने पूरा साथ दिया। यहां यह बात भी पारस चाचा को खल गई। दरअसल सांसद पशुपति पारस नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे हैं। वह नहीं चाहते थे चिराग बिहार विधानसभा चुनाव जदयू से अलग होकर लड़े। परंतु चिराग और सौरभ ने पार्टी और कार्यकर्ताओं को तव्वजो दी। इसी बात को लेकर चाचा-भतीजा की लड़ाई आज धरातल पर है।

राजद-कांग्रेस में ढूंढ सकते हैं आशियाना

यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं कि चिराग और सौरभ के रिश्ते प्रियंका गांधी से काफी अच्छे हैं। चिराग ने हाल के बयान में बीजेपी और जदयू के प्रति अपनी नाराजगी दिखा दिया है। उन्होंने पार्टी को तोड़ने का ठीकरा जदयू पर फोड़ा तो राम के हनुमान सवाल पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि जब हनुमान को राम से मदद मांगना पड़े तो काहे का राम और काहे का हनुमान। राजनीति विशेषज्ञ इसे चिराग की अगली रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। दरअसल चिराग और सौरभ आनेवाले चुनावों में कम सीटों पर समझौता नहीं करना चाहते हैं। दोनों 2025 के विधानसभा में पार्टी के लिए कम से कम 75 सीटों पर अपना दावा ठोंकना चाहते हैं। एनडीए तो इत नी सीटें देने से रही। तो स्वभाविक है दूसरे खेमें में दलित के बड़े नेता के रूप में स्थापित कर चुके चिराग को अधिकतम सीटें मिल सकती हैं। शायद इसके लिए कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी पहल करें।

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