लिली की पहल से बदल गई कटिहार के इस गांव की तस्वीर, शराब बनाने वाली महिलाएं इस तरह कर रहीं स्वरोजगार

कटिहार के नीमा गांव की महिलाएं पहले शराब तैयार कर जीवन यापन करती थीं लेकिन शराबबंदी के बाद ये काम बंद हो गया। इसके बाद लिली की पहल पर ये महिलाएं मशरूम उत्पादन कर जीवन यापन कर रही हैं। इससे उनकी अच्छी आमदनी हो रही है।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 03:58 PM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 09:58 AM (IST)
लिली की पहल से बदल गई कटिहार के इस गांव की तस्वीर, शराब बनाने वाली महिलाएं इस तरह कर रहीं स्वरोजगार
कटिहार की महिलाएं मशरूम उत्पादन कर जीवन यापन कर रही हैं।

संवाद सूत्र, मनिहारी, (कटिहार)। जिले के मनिहारी प्रखंड अंतर्गत नीमा गांव की तस्वीर लगातार बदल रही है। इस बदलाव की नायिका लिली मरांडी है।लिली के प्रयास से कभी देसी शराब बनाने वाली इस गांव की महिलाएं आज मशरुम उत्पादन सहित अन्य रोजगार से जुड़ चुकी है। इसको लेकर लिली मरंडी को कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। बड़ी जिम्मेवारी से तय की लंबी दूरी

लिली मरांडी के पति का 2012 में असमायिक निधन हो गया। इससे चार बच्चों के भरण पोषण की जवाबदेही उन पर आ गई। किसानी को अपने जीने का माध्यम बनाने का निर्णय लेकर वे आगे बढ़ती रही। गांव की महिलाओं के साथ समूह का गठन कर असाक्षर महिलाओं को वितीय साक्षरता का पाठ पढाया। साथ ही खुद मशरूम उत्पादन शुरु करते हुए इसके लिए अन्य महिलाओं को प्रेरित करने लगी। इसमें कृषि विभाग व आत्मा से भी सहयोग मिला। मशरुम उत्पादन के साथ कई अन्य रोजगार से वे अब तक काफी तादाद में महिलाओं को जोड़ चुकी है। इस भगीरथ प्रयास को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भी लिली को सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर द्वारा महिला शशक्तिकरण चुनोती एवं रणनीति विषयक राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर कृषि उद्यमिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया गया था।

आरंभ में लोगों ने उड़ाया उपहास, अब मान रहे लोहा

लिली ने बताया कि शुरुआत काल में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। लोगों ने उनका उपहास भी उड़ाया। कम जमीन के साथ आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर होने के कारण लोग उनकी विफलता को तय मान रहे थे। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कृषि विभाग व जीविका से भी जुड़ी ओर महिलाओं को भी जोड़ा। लिली कहती है कि वर्ष 2015-2016 में कृषि विज्ञान से जुड़ी ओर मशरूम के खेती की ट्रेनिग की।

उन्होंने मशरुम उत्पादन शुरु किया। उनके प्रयास ने रंग लाया। उन्होंने कहा कि इसके बीज सहित अन्य सहयोग सरकारी स्तर पर मिले तो मशरुम उत्पादन ग्रामीण क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकता है। वे फिलहाल कृषक उत्पादन संगठन मनिहारी की सचिव भी है। गांव में 25 से 50 समहू अभी इस गांव में संचालित हैं। गांव के सरयू प्रसाद साह भी जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि मशरूम की बीज व अन्य संसाधन की दिक्कत होती है। पूर्णिया व भागलपुर या पटना जाकर महंगे दाम में बीज लाना पड़ता है। गांव की मेनू मुर्मू, राधा हेम्ब्रम, सुमित्रा हेम्ब्रम, अनिता हेम्ब्रम, क्रिस्टीना हेम्ब्रम, पक्कू सोरेन, जेस्मी मरांडी सहित कई महिला इससे जुड़ी हुई है।

क्या कहते हैं मुखिया

मुखिया जाकिर अंसारी ने कहा कि लिली मरांडी ने इस गांव को एक नई राह दिखाई है। आज महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही है और बच्चे स्कूल जा रहे हैं। मशरूम की बीज सहित अन्य सरकारी स्तर पर सुविधाएं इन महिलाओं को मिलनी चाहिए।

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