Bihar: मझधार में फंस गई मछुआरों की 'लाइफ बोट', कर्ज से चल रहा दाना-पानी

अपनी विरासत संजो कर वर्षों से मछलियां बेच जीविका चलाने वाले मछुआरों की जिंदगी मझधार में फंस गई है। ये कोई इस साल की बात नहीं है। बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ में इनकी हालत खराब हो जाती है। सरकार से ये मदद की आस लगाए हैं।

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 07:02 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 07:02 PM (IST)
Bihar: मझधार में फंस गई मछुआरों की 'लाइफ बोट', कर्ज से चल रहा दाना-पानी
कब हटेगा बैन, कब चलाएंगे अपनी जीविका, मछुआरों का उमड़ा दर्द

त्रिभुवन चौधरी, हेमजापुर (मुंगेर)। गंगा के बढ़ते जलस्तर से नैया खेवनाहरों की जिंदगी मझधार में फंस गई है।  गंगा की मछलियाें से ही मछुआरों के पूरे परिवार की आजीविका चलती है। अभी मछली पकड़ने पर राके लगी है। ऐसे में मछुआरे परिवार को घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। सभी सरकार और प्रशासन से आस लगाए बैठे हैं। संभावित बाढ़ ने मछुआरों की आजीविका पर ब्रेक लगा दिया है। जिले के धरहरा प्रखंड में मछुआरों की की संख्या लगभग दो हजार है। इनकी आजीविका का एकमात्र साधन मछली पकड़ना या मारना है। ‌

बाढ़ के समय हर वर्ष तीन माह तक गंगा में मछली पकड़ने पर रोक रहती है। दरअसल, धरहरा प्रखंड के हेमजापुर, रामनगर नवटोलिया, लकड़ा पताल, सुंगठिया, निषाद टोला जगह मिलाकर निबंधित मछुआरों की संख्या लगभग 500 से ज्यादा है। इनके परिवार वालों की संख्या दो हजार के आसपास है। -जलस्तर बढ़ने से नहीं मिल रही मछलियां, घर-परिवार चलाने में हो रही परेशानी -तीन माह तक प्रशासन की ओर से मछलियां मारने पर रहती रोक -तीन सौ से ज्यादा परिवार मछली पालन कर करते हैं जीवनयापन -10 से ज्यादा की प्रजाति पाई जाती है गंगा-किऊल नदी के संगम में -पांच सौ के आसपास है निबंधित मछुआरा -तीन माह हर वर्ष लगाया जाता है प्रतिबंध

पूर्वजों से चली आ रही परंपरा

इन मछुआरों का मछली पकड़ना इनका पुश्तैनी काम है। पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार के एक-दो सदस्यों को छोड़ इस रोजगार में जुड़े हैं। गरीबी और बेरोजगारी के चलते ज्यादातर मछुआरों के बच्चे प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे कदम संभालते ही अपने पिता के कार्यों में हाथ बंटाने लगते हैं तो कुछ युवा होते ही परिवार की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए परदेश की ओर रुख करते हैं।

प्रशासन स्तर पर कोई मदद नहीं

मछली बेचने के लिए और इनके रोजगार के लिए प्रशासनिक स्तर से ज्यादा तैयारियां नहीं दिखती। गंगा नदी से निकाली गई मछलियों को यह स्थानीय बाजार, मुंगेर और लखीसराय शहर में जाकर बेचते हैं। इसी से ही इनके परिवार का गुजर-बसर होता है। पंचायत के ज्यादातर तालाब और जलाशयों पर अतिक्रमण होने से यह मजबूर होकर गंगा में मछली पकड़ते हैं। मछली पकड़ने के दौरान जल दस्यु और बदमाश से भी खतरा बना रहता है।

जानिए इन सभी की परेशानी

हेमजापुर के मछुआरों में दिनेश सहनी, लक्ष्मी सहनी, जागो सहनी अपनी व्यथा में बताते हैं कि गांव में 30 से ज्यादा निबंधित नौका है। इस पर मछुआरे मछली मारते हैं। हर वर्ष तीन माह जुलाई, अगस्त और सितंबर तक सरकार की ओर से अनौपचारिक घोषणा हो जाने से मछली का शिकार नहीं होता है। अभी इन सभी की हालत यह है कि कर्ज लेकर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।

हेमजापुर में मिलती है यह मछलियां

हेमजापुर में गंगा और किऊल नदी का मिलन होता है। लोग इसे संगम के नाम से भी जानते हैं। यहां मछली के प्रजाती टेंगरा, बुआरी, कतला, रेहू, बाटा, सुगवा, बचवा, पलवा और इचना पाई जाती है।

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