Lakhisarai News: किऊल नदी से गायब हुआ बालू और पानी, बड़हिया से दूर हो गई गंगा की धार
लखीसराय जिले से होकर बहने वाली नदियों की स्थिति ठीक नहीं है। नदियों के संरक्षण के प्रति उदासीनता के कारण अस्तित्व मिटते जा रहा है। कभी पानी से लबालब रहने वाली किऊल नदी के दोहन के कारण पानी का भंडार हर साल घटता जा रहा है।
जागरण संवाददाता, लखीसराय। लखीसराय शहर से सटकर बहने वाली किऊल नदी सूख गई है। इस कारण जलस्तर सरकने लगा है। जिला अंतर्गत हरुहर और गंगा नदी का भी बुरा हाल है। नदियों के संरक्षण के प्रति उदासीनता के कारण अस्तित्व मिटते जा रहा है। कभी पानी से लबालब रहने वाली किऊल नदी के दोहन के कारण पानी का भंडार हर साल घटता जा रहा है।
नदी में बालू की जगह मिट्टी भर गई है। पानी की जगह शहर का मलबा और नाली का गंदा पानी नदी की सूरत बिगाड़ दी है। शहरी क्षेत्र रहने के बावजूद नदी को बचाने के लिए कोई पहल नहीं हुई है। लाल बालू के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध किऊल नदी वर्तमान में अंतिम सांस गिन रही है। जिला अंतर्गत बड़हिया में गंगा नदी की मुख्यधारा भी करीब पांच किलोमीटर दूर हो गई है। हरूहर नदी में भी पानी का भंडारण हर साल घटता जा रहा है। इसका सीधा असर जल स्तर पर पड़ रहा है। पर्यावरणविदों के अनुसार लखीसराय जिले में पिछले तीन वर्षों में चार से छह फीट तक जलस्तर गिरा है।
मृत हो गई किऊल नदी, रूठकर गंगा चली गई दूर
पानी से हमेशा लबालब रहने वाली किऊल नदी वर्तमान में मृत हो गई है। किऊल नदी ने नाला का रूप ले ली है। यह नदी बालू के लिए नहीं पूरे राज्य में ख्याति प्राप्त है लेकिन वर्तमान में यह नदी खेत का रूप ले ली है। यहां दूर-दूर तक बालू नजर नहीं आता है। लखीसराय शहर का नाला का गंदा पानी नदी में बह रहा है। इससे इस नदी का अस्तित्व समाप्त हो गया है। उधर जिले के बड़हिया और पिपरिया से गंगा नदी दूर चली गई है। गंगा नदी के संरक्षण के प्रति उदासीनता अभी भी बरकरार है। स्थानीय निवासी रसायन विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. जयनंदन प्रसाद बताते हैं कि गंगा नदी मूल धारा से मीलों दूर चली गई है। नदी के बहाव में अवशेष पैदा कर दिए जाने से ऐसा हुआ है। इसका असर जलस्तर पर भी पढ़ रहा है।
क्या कहते हैं पदाधिकारी
प्लास्टिक कचरा के बढ़ते प्रयोग के कारण धरती की जल ग्रहण क्षमता खत्म हो रही है। पिछले तीन वर्षों से जिले में वाटर लेवल तीन से पांच फीट नीचे चला गया है। सरकार की जल-जीवन-हरियाली अभियान से प्राचीन जल स्रोतों को पुनर्जीवित कर उनके संरक्षण की दिशा में तेजी से कार्य किया जा रहा है। सबों के सामूहिक प्रयास और जागरूकता से जल संकट से निजात मिल सकती है तथा नदियों को बचाया जा सकता है।
- शशिभूषण प्रसाद ङ्क्षसह, सहायक अभियंता, पीएचईडी