Tokyo Olympics 2020 : ओलंपियन मीराबाई को फिट रखती थीं टीएमबीयू की असिस्टेंट प्रोफेसर श्वेता पाठक
Tokyo Olympics 2020 ओलंपियन मीराबाई के पदक जीतते ही एक और नाम की खूब चर्चा हो रही है। ये बिहार की महिला प्रोफेसर डा श्वेता पाठक हैं। डा श्वेता साईं सेंटर पटियाला में मीराबाई की खेल मनोवैज्ञानिक रह चुकी हैं।
भागलपुर [बलराम मिश्र]। कहते है खिलाडिय़ों को शरीर के साथ मानसिक रूप से फिट रहना बहुत जरूरी होता है। तभी वे बेहतर मुकाम हासिल कर पाने में सफल होते हैं। ऐसी ही है टोक्यो ओलंपिक 2021 में देश के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू। उन्होंने भी अपने शरीर के साथ मानसिक रूप से इतना मजबूत कर लिया कि ओलंपिक में मेडल लेकर वापस लौटी। मीराबाई को तीन वर्षों तक पटियाला स्थित स्पोर्टस आथिरिटी आफ इंडिया (साईं) के सेंटर में टीएनबी कालेज की मनोवैज्ञानिक विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. श्वेता पाठक ने भी मानसिक रुप से फिट रखने के लिए काफी टिप्स दिए थे।
तपस्या का परिणाम है मेडल
खेल मनोवैज्ञानिक के तौर पर डा. पाठक ने मीराबाई को काफी नजदीक से जाना और समझा। उन्होंने बताया कि मीराबाई के साथ उन्हें तीन साल तक काम करने का मौका मिला था। ओलंपिक मेडल मिलने के बाद उन लोगों के खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। उन्होंने कहा कि मेडल जितने के पीछे मीराबाई और उनके कोच द्रोणाचार्य अवार्डी विजय शर्मा की कड़ी तपस्या है। तभी यह मुकाम हासिल हो सका है। मीराबाई के बारे में बताया कि वे शुरू से समर्पित और शांत वेट लिफ्टर रही थी। कोच के बारे में बताया कि वे खिलाडिय़ों से ज्यादा मेहनत करते थे।
'साइकोलाजिकल फस्र्ट एडÓ से करती थीं मदद
स्पोर्टस आथिरिटी आफ इंडिया (साईं) सेंटर पटियाला से डा. पाठक बतौर खेल मनोवैज्ञानिक के रूप में 2014 से जुड़ी। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं। पाटियाला में वेट लिफ्टिंग और कुश्ती की ट्रेनिंग होती थी। उन्होंने बताया कि खेल मनोवैज्ञानिक के तौर पर उन लोगों की बड़ी जिम्मेवारी होती थी। खिलाडिय़ों में बड़ी प्रतियोगिताओं से पूर्व कई तरह की शंकाएं और भ्रम होता है। वे प्रतियोगिता से पूर्व होने वाली मानसिक दबाव और दिक्कतों को उनसे साझा करते थे। खिलाडिय़ों के इन्हीं दिक्कतों को वे लोग 'साइकालोजिकल फस्र्ट एडÓ के माध्यम से बतौर मनोवैज्ञानिक दूर करते थे।
2017 में आ गई भागलपुर
डा. पाठक ने बताया कि 2017 में असिस्टेंट प्रोफेसर में चयनित होने के बाद अपने पति स्पोर्टस साइकोलाजिस्ट डा. मिथिलेश कुमार तिवारी के साथ बिहार के भागलपुर आ गई। डा. पाठक ने तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के टीएनबी कालेज में अपना योगदान दिया। जबकि डा. तिवारी ने एसएम कालेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया। दोनों मनोविज्ञान के शिक्षक हैं। अब भी जरूरत होने पर वे लोग खिलाडिय़ों की मदद के लिए तत्पर रहती हैं। उन्होंने कहा कि वे लोग अपने परिवार के साथ 2018 में बतौर अतिथि मीराबाई और वहां के अन्य खिलाडिय़ों और कोच विजय शर्मा से मिलने गई थी।
मनोवैज्ञानिकों की अहम होती है भूमिका
खेल में मनोवैज्ञानिकों की भूमिका के बारे में डा. पाठक ने बताया कि अभी भी इसका प्रचलन बहुत नहीं है। जबकि हमारे खिलाडिय़ों को इसकी काफी जरूरत होती है। दरअसल, बड़ी प्रतियोगिताओं में खिलाडिय़ों पर भारी मानसिक दबाव होता है। वे परिवार से दूर रहकर कड़ी मेहनत के बाद प्रतियोगिता में पहुंचते हैं। ऐसे में उनके मन में परिवार, समाज, राज्य और देश के लिए जितने का दबाव होता है। इस बीच उनका मानसिक रुप से फिट होना काफी जरूरी होता है। ऐसे में मनोवैज्ञानिकों की भूमिका काफी अहम होती है।