खगडिया के कटाव पीडितों का जानिए दर्द, न ठौर, न ठिकाना..., बस दिन गिनते है जाना

खगडिय़ा के कटाव पीडि़तों का दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। उनके विस्थापन को लेकर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। ये बांध-तटबंधों पर सड़कों नदियों किनारे भू-पतियों से जमीन लीज लेकर जैसै-तैसे गुजर-बसर करने को विवश हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 04:31 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 04:31 PM (IST)
खगडिया के कटाव पीडितों का जानिए दर्द, न ठौर, न ठिकाना..., बस दिन गिनते है जाना
खगडिय़ा के कटाव पीडि़तों का दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।

जागरण संवाददाता, खगडिय़ा। बाढ़ और कटाव खगडिय़ा की नियति बन चुकी है। जिले में विस्थापितों की एक बड़ी आबादी निवास करती है। ये बांध-तटबंधों पर, सड़कों, नदियों किनारे, भू-पतियों से जमीन लीज लेकर जैसै-तैसे गुजर-बसर करने को विवश हैं। बाढ़ और कटाव के कारण ये Óकिनारे के लोगÓ बनकर रह गए हैं।

अपनी जमीन, अपना घर हसीन सपने जैसा

खगडिय़ा जिले में 148 किलोमीटर की लंबाई में बांध-तटबंध हैं। इन बांधों-तटबंधों पर जगह-जगह गांव-टोले बसे हुए हैं। ये लोग नदियों के कटाव से विस्थापित हुए लोग हैं। कई-कई लोग 50 साल से बुनियादी सुविधाओं से दूर बांध-तटबंधों पर नारकीय जिंदगी जीने को विवश हैं। इनके लिए अपना घर, अपना मकान, अपनी जमीन, अपनी जोत सपना ही है। वे शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं।

Ó46 साल हो गए बांध पर ही हूं, अब तो अर्थी भी यहां से ही निकलेगीÓ

तेलिहार जमींदारी बांध के कामाथान के पास 25 वर्षों से रह रहे रामचरित सदा कहते हैं- लगता है कि यहां पर ही कफन दफन होगा। 28 वर्षीय विकास चौधरी कहते हैं- पहले ठाकुरबासा में अपना घर था। कोसी मैय्या ने उजाड़ दिया, तो पांच साल से जमींदारी बांध पर झोपड़ी बनाकर रह रहा हूं। अधिकारी वर्षों से कहते आ रहे हैं कि पुनर्वास के लिए जमीन देख रहे हैं। मुनि टोला, पचाठ के विमल मुनि कहते हैं- नदी में घर समा गया। 15 वर्षों से सड़क किनारे झोपड़ी में जिंदगी कट रही है।

उपेंद्र मुुनि कहते हैं- 10 वर्षों से कोसी किनारे झोपड़ी बनाकर रह रहा हूं। बाढ़-बरसात के मौसम में डर लगता है। कब यह झोपड़ी भी नदी में समा जाएगी, कहना मुश्किल है। वकील शर्मा की उम्र 80 साल है। 1975 में गंगा की कटाव से विस्थापित होकर तेमथा रिटायर्ड बांध पर आकर बस गए। वकील शर्मा कहते हैं- उस समय लगा था, जल्द ही सरकार पुनर्वास दे देगी, लेकिन 46 साल हो गए बांध पर ही हूं। अब तो अर्थी भी यहां से ही निकलेगी। लक्ष्मी शर्मा 21 वर्ष की उम्र में तेमथा रिटायर्ड बांध पर आकर बसे थे, अब 67 साल के हो गए हैं। कहते हैं, तबसे आज तक गंगा होकर न जाने कितना पानी बह गया, लेकिन पुनर्वास नहीं मिला। हां, आश्वासन खूब मिले। जवानी में आए थे अब बूढ़ा हो चला हूूं।

बाढ़-कटाव से विस्थापित ऐसे लोग जिनको अपनी जमीन नहीं है, उन्हें भूमि खरीद कर पुनर्वासित करने का प्रावधान है। विस्थापितों के लिए भू-अर्जन की प्रक्रिया चल रही है।

टेश लाल ङ्क्षसह, प्रभारी पदाधिकारी, आपदा प्रबंधन, खगडिय़ा।

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