जानिए इस चलंत स्कूल के बारे में... यहां कभी फूस की झोपड़ी तो कभी पेड़ों के नीचे बैठकर ककहारा सीखते हैं बच्चे

सुपौल में एक विद्यालय ऐसा है जिसकी कक्षा कभी फूस की झोपड़ी में लगती है तो कभी पेड़ के नीचे लग रही है। दरअसल दर्जनों ऐसे विद्यालय हैं जहां भवन नहीं रहने के कारण पढऩे वाले बच्चे बरसात धूप तथा जाड़े में सुरक्षित जगह खोजने को मजबूर होते हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 04:03 PM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 04:03 PM (IST)
जानिए इस चलंत स्कूल के बारे में... यहां कभी फूस की झोपड़ी तो कभी पेड़ों के नीचे बैठकर ककहारा सीखते हैं बच्चे
सुपौल के कई विद्यालयों को भवन नहीं रहने के कारण चलता-फिरता विद्यालयों में नौनिहालों के भविष्य गढ़े जा रहे हैं।

सुपौल [विमल भारती]। प्रखंड क्षेत्र के कई विद्यालयों को भवन नहीं रहने के कारण चलता-फिरता विद्यालयों में नौनिहालों के भविष्य गढ़े जा रहे हैं। दर्जनों ऐसे विद्यालय हैं जहां भवन नहीं रहने के कारण पढऩे वाले बच्चे बरसात, धूप तथा जाड़े में सुरक्षित जगह खोजने को मजबूर होते हैं। प्रखंड क्षेत्र में 11 संस्कृत विद्यालय, छह मदरसा, 10 उच्च विद्यालय, 48 मध्य विद्यालय तथा 83 प्राथमिक विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में हजारों की संख्या में छात्र-छात्राओं का नामांकन है। इनमें से कई ऐसे विद्यालय हैं जो या तो फूस की झोपड़ी में चलते हैं या फिर वृक्ष के नीचे। कुछ विद्यालय तो चलता-फिरता विद्यालय है क्योंकि वहां पढऩे वाले बच्चों का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। अभिभावक इस समस्या के निदान के लिए बार-बार आवाज उठाते हैं लेकिन कोई समाधान नहीं होता है।

नहीं हुआ है जमीन का निबंधन

नवसृजित विद्यालयों के लिए कई जगहों पर लोग जमीन देने के लिए आगे आए लेकिन उसका निबंधन नहीं हो सका। दान की जमीन के निबंधन के लिए अंचल कार्यालय से प्रक्रिया पूरी कर उसे जिला निबंधन कार्यालय भेजा जाता है लेकिन निबंधन की प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो रही है। प्रखंड क्षेत्र में कुछ जगह तो ऐसे हालात बन गए कि पहले अभिभावकों ने जिस उत्साह के साथ जमीन दान में दिया बाद में वापस ले लिया। इस कारण कई विद्यालय को जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी। फूस की झोपड़ी में पढऩ़े को विवश बच्चे अब धीरे-धीरे दूसरे विद्यालय जाने लगे हैं।

भवनहीन विद्यालयों को नजदीक के विद्यालयों में किया गया टैग

पिछले वर्ष प्रखंड क्षेत्र के वैसे विद्यालय जिनके पास अपना भवन नहीं था उसे नजदीक के मध्य विद्यालयों में टैग कर दिया गया था। शिक्षा विभाग के इस आदेश के तहत शिवनंदन यादव प्राथमिक विद्यालय गढिय़ा राहुल शर्मा टोला पिपरा खुर्द महेंद्र सिंह राय धोबी टोला पिपरा खुर्द, खापटोला सरायगढ़ सीताराम मेहता टोला कल्याणपुर सहित कई ऐसे विद्यालय थे जिसका संचालन पंचायत के वैसे विद्यालय में होने लगा जिनके पास अपना भवन था लेकिन कुछ ही सप्ताह बाद विद्यालय से बच्चे दूर हो गए और धीरे-धीरे शिक्षक अपनी पुरानी जगह पर चले गए। अब तक भवनहीन और भूमिहीन विद्यालय अपनी-अपनी जगह ही अवस्थित है। विद्यालय भवनहीन रहने के कारण बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

बोले अभिभावक

मिश्री लाल पंडित, बद्री नारायण यादव, राघवेंद्र झा, हजारी प्रसाद राय आदि बताते हैं कि शिक्षा की नींव प्राथमिक विद्यालय है लेकिन भवनहीन और भूमिहीन विद्यालयों में बच्चे पढऩ़े में असहज महसूस करते हैं इसलिए उसका संपूर्ण विकास नहीं हो पाता है। सरकार को सभी विद्यालय भवन को पक्का बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। जब बच्चे सुरक्षित बैठ नहीं सकते तो वह पढ़ कैसे सकते हैं। कोसी के इलाके में तो एक भी विद्यालय को पक्का भवन नहीं है। यह दुर्भाग्य है कि कोसी के क्षेत्र में बच्चों को हर वर्ष जगह बदल कर अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ती है।

भरोसी संस्कृत मध्य विद्यालय ढोली

अभिभावक रामवृक्ष सिंह, बसंत सिंह, दुर्गी लाल सिंह ने बताया कि कुछ दिन पहले यह विद्यालय कोसी नदी से काफी दूर था। पिछले बाढ़ के समय कोसी के कटाव में वह जगह पानी में विलीन हो गया। अब विद्यालय को हटाकर दूसरी जगह पलार पर ले जाया गया जहां बच्चों को जाना पड़ेगा।

प्राथमिक विद्यालय भुलिया

अभिभावक अजय सिंह, ललित नारायण सिंह, जयकृष्ण सिंह ने बताया कि पहले यह विद्यालय 05 किलोमीटर उत्तर चलता था जहां भुलिया बस्ती भी बसी थी। कोसी के कटाव के कारण विद्यालय को बलथरबा गांव की सीमा में लाना पड़ा। अभी वहीं अवस्थित है और भुलिया गांव के बच्चों को उसी विद्यालय में पढऩे जाना पड़ता है। बताया कि कोसी नदी के कटाव के कारण क्षेत्र के दर्जनों विद्यालयों का स्थान बार-बार बदलते रहता है जिससे बच्चों को परेशानी होती है और इसका असर पठन-पाठन पर भी पड़ता है।

प्राथमिक विद्यालय कटैया भुलिया

नरसिंह सिंह का कहना है कि यह विद्यालय पहले भुलिया गांव में स्थापित था। कोसी नदी ने ऐसा कहर ढाया कि विद्यालय को झखराही गांव के पास ले जाना पड़ा। विद्यालय तो वहां चला गया लेकिन लोग इतने दूर नहीं जा सके क्योंकि वहां जीविकोपार्जन का साधन उपलब्ध नहीं है। हालात यह है कि विद्यालय में एक दर्जन बच्चे भी नहीं आते हैं।

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