जानिए वीरों की भूमि समेली के बारे में, यहां पग-पग पर है शहीदों के बलिदान के निशां

कटिहार का समेली आज भी वीरों की भूमि के नाम से जाना जाता है। यहां के कई वीरों ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रेल की पटरी खोलने के क्रम में यहां पर छह साथियों को अंग्रेजों ने गोलियों से भून डाला था।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 02:40 PM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 02:40 PM (IST)
जानिए वीरों की भूमि समेली के बारे में, यहां पग-पग पर है शहीदों के बलिदान के निशां
कटिहार का समेली आज भी वीरों की भूमि के नाम से जाना जाता है।

कटिहार [पूनम यादव]। स्वतंत्रता सेनानियों की धरती के रुप में समेली प्रखंड की पहचान रही है। देश को गुलामी की जंजीर से मुक्त करने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले शहीदों की वीरगाथा आज भी यहां गूंज रहे हैं। ऐसे वीर सपूतों में एक नटाय परिहार भी थे। उन्हें स्वदेश पर अंग्रेजी हुकूमत स्वीकार नहीं था। वे हर पल अग्रेजों को देश से खदेडऩे की जतन में जुड़े रहते थे। वे ब्रिटानियों की फौज से भी लोहा लेने से परहेज नहीं करते थे। इस क्रम में वे आजादी की लड़ाई में रेल पटरी खोलने के क्रम में छह साथियों के साथ सीने पर गोली खाकर शहीद हो गए थे।

प्रखंड के चकला मौलानगर गांव में एक गरीब परिवार वाणेश्वर तियर के घर छह फरवरी 1890 को जन्म लेने वाले नटाय परिहार आर्थिक तंगी व मजबूरी के कारण गांव के जमींदार सरदार कुलदीप ङ्क्षसह के यहां सिपाही का कार्य करते थे। उन दिनों लोग अंग्रेजी हुकूमत द्वारा ढाये जा रहे जुल्म से परेशान थे। नौ अगस्त 1942 को जब महात्मा गांधी की अगुवाई में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो क्षेत्र में अंग्रेजों से लोहा लेने वालों में वीरता व देशप्रेम के पर्याय नटाय परिहार सबसे आगे थे। 52 वर्षीय नटाय परिहार अपने साथी जग्गू, अगनू, रमचू, धथुरी आदि के साथ रेलवे पटरी उखाडऩे देवीपुर पहुंच गए।

देवीपुर में अंग्रेजों की कोठी थी। गोरे सैनिक आक्रमण कारियों को भागने की धमकी देते रहे, लेकिन गोली की परवाह किए बिना आजादी के वे दिवाने रेल पटरी उखाडऩे में लगे रहे। अंत में सैनिकों द्वारा गोली दागी जाने लगी और देश के वे सात वीर सपूत शहीद हो गए। नटाय को सिर में गोली मारी गई थी। घायल अवस्था में गांव के ही वैद्य सह स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार द्वारा उनका इलाज किया गया, परंतु गहरे जख्म के कारण वे शहीद हो गए। उनका शहीद स्थल कुर्सेला में बनाया गया, लेकिन उस स्थल पर सि$र्फ औपचारिकता भर होती है। उनके घरों में आज भी गरीबी की चादर फैली हुई है।

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