JLNMCH: इमरजेंसी में मरीज बढ़े, ट्राली पर हो रहा इलाज, कई जरूरी दवाओं का टोटा
50 से ज्यादा मरीजों को प्रतिदिन इमरजेंसी में किया जा रहा भर्ती। 40 बेड थे कोरोनाकाल से पहले। इमरजेंसी में 100 बेड के लिए भवन का निर्माण का मामला अटका। 115 बेड लगा दिए जाने के बाद भी स्ट्रेचर पर किया जा रहा इलाज।
जागरण संवाददाता, भागलपुर। कोरोना संक्रमण में कमी आने के बाद जेएलएनएमसीएच की इमरजेंसी सहित अन्य विभागों में मरीजों की बाढ़ आ गई है। अव्यवस्था का आलम यह कि बेड की कमी की वजह से कई मरीजों का ट्राली पर ही इलाज किया जा रहा है। दूसरी ओर, अस्पताल में कई जरूरी दवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। इनमें बच्चों की दवाओं के अलावा चर्म रोग, सर्दी-खांसी आदि की मेडिसीन शामिल है। इंडोस्कोपिक और टीएमटी मशीन भी शोभा की वस्तु बनकर रह गई है। मेडिसीन विभाग में मरीजों का इंडोस्कोपिक नहीं हो रहा है।
इमरजेंसी में अलग भवन का निर्माण अधर में
इमरजेंसी में कोरोनाकाल के पहले 40 बेड थे। उस समय भी मरीजों को बेड नहीं मिलने पर फर्श पर उनका इलाज किया जा रहा था। दो माह पहले जब कोरोना संक्रमण में कमी आई तो इमरजेंसी विभाग खोला गया। इमरजेंसी के शिशु विभाग को इंडोर में शिफ्ट किया गया। एक कमरा को खाली कराकर कई बेड लगाए गए। अब इमरजेंसी में 115 बेड हैं। लेकिन मरीजों की संख्या इस कदर बढ़ गई है कि इलाज में दिक्कत होने लगी है। इमरजेंसी में 100 बेड के लिए भवन का निर्माण भी होना था। इसके लिए तत्कालीन अधीक्षक द्वारा सरकार को प्रस्ताव भी दिया गया था। भवन निर्माण के लिए जमीन भी चिह्नित की गई। लेकिन मामला किसी वजह से अटक गया। हालांकि कुछ दिन पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के भागलपुर आगमन और मेडिकल कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में अस्पताल अधीक्षक डा. असीम कुमार दास ने भवन निर्माण की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि अस्पताल में 23 जिलों के मरीज इलाज करवाने आते हैं, लेकिन बेड की कमी है।
कई दवाओं का टोटा
जेएलएनएमसीएच में कई महत्वपूर्ण दवाओं की कमी है। चर्म एवं गुप्त रोग विभाग में किट सिक्स, किट फोर और किट थ्री दवा नहीं है। पेशाब के रास्ते में सूजन, फंसी होने, पेट में ओटी के समीप दर्द होने और हर्पिस के मरीजों को उक्त दवाएं दी ताजी हैं। गत दो माह से दवाएं नहीं हैं। वहीं इयर और आइ ड्रॉप भी नहीं है। कफ सीरप, सेट्रीजन सीरप, जिंक सीरप भी नहीं है।
नहीं हो रहा इंडस्कोपिक और टीएमटी
इंडोर मेडिसीन विभाग में इंडस्कोपिक और टीएमटी मशीन शोभा की वस्तु बनकर रह गई है। गत एक वर्ष से मरीजों का इंडस्कोपिक नहीं हो रहा है। इसकी चिंता विभाग के अधिकारियों ने कभी नहीं की। अगर की होती तो शायद मरीजों को राहत मिलती। इंडस्कोपिक से अल्सर सहित पेट की अन्य बीमारियों की जानकारी मिलती है। क्लीनिक में करवाने पर एक हजार से ज्यादा रुपये खर्च होते हैं। वहीं टीएमटी करवाने पर हृदय की धमनियों के बारे में जानकारी मिलती है। ये कीमती मशीनें यूं ही बेकार पड़ी हैं।
दवाओं की कमी दूर की जाएगी। इंडस्कोपिक और टीएमटी मशीन क्यों बंद है इसकी जानकारी ली जाएगी। शीघ्र ही मरीजों को इन मशीनों से लाभ मिल सके इसका उपाय किया जाएगा। - डा असीम कुमार दास, अस्पताल अधीक्षक