जिउतिया: जब लड़का-लड़की समान तो फिर पूजा-पाठ सिर्फ पुत्र के लिए क्यों?

जिउतिया के बाजार के दिए बड़े बदलाव के संकेत। पहले बेटियों के लिए चांदी और बेटों के लिए सोने के जिउतिया की होती थी बिक्री। अब बिटिया रानी को भी दिया जाने लगा है बराबरी का दर्जा। दूसरों को भी लिंग भेद ना करने का दे रहीं संदेश।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Wed, 29 Sep 2021 08:24 AM (IST) Updated:Wed, 29 Sep 2021 08:24 AM (IST)
जिउतिया: जब लड़का-लड़की समान तो फिर पूजा-पाठ सिर्फ पुत्र के लिए क्यों?
संतान के लिए माताएं करतीं हैं जिउतिया पर्व।

जागरण टीम, भागलपुर। जिउतिया एक ऐसा त्योहार है, जिस बारे में मान्यता है कि व्रत पुत्र की रक्षा के लिए रखी जाती है। शास्त्रों में भी ऐसा ही वर्णित है। पंडित-पुजारी भी इसे पुत्र की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत बताते हैं। लेकिन, अब लोगों का नजरिया बदलने लगा है। अकबरनगर में कई ऐसी माताएं हैं, जो बेटे-बेटियों में फर्क नहीं करतीं और उनकी सलामती के लिए व्रत रखती हैं। ऐसी माताओं का सवाल आम है कि जब लड़का-लड़की समान हैं तो फिर पूजा-पाठ सिर्फ पुत्र के लिए ही क्यों?

पांच बेटियों की सलामती के लिए निष्ठा के साथ करती है पर्व

जिउतिया के मौके पर थाना क्षेत्र के रसीदपुर गांव के मटुकधारी तांती की पत्नी मीणा देवी की पांच बेटियां हैं और वो उनकी सलामती के लिए हर साल व्रत रखती हैं। सिर्फ व्रत ही नहीं रखतीं, बेटियों के प्रति समाज को अपनी सोच बदलने का संदेश भी देती हैं। उनका कहना है कि मेरी बेटियां ही मेरे लिए सबकुछ हैं। कभी बेटी-बेटा में फर्क नहीं समझा। बेटा नही है तो क्या हुआ ईश्वर ने लक्ष्मी के रूप में पांच बेटियों को दिया है। कभी बेटे की कमी महसूस नहीं की। 9-10 साल से व्रत रख रही हूं और जब तक शरीर साथ देगा यह व्रत रखती रहूंगी।

पर्व से तीन दिन पूर्व करने लगती है तैयारी, बेटियां भी बंटाती है हाथ

ललिता देवी कुछ साल से ही जिउतिया व्रत रखती रही हैं। इनकी भी पांच बेटियां है। जिउतिया पर्व के तीन दिन पूर्व ही घर के सारे काम-धंधे में बेटियां हाथ बंटाने में जुट जाती हैं। पूजन सामग्री की खरीदारी के साथ घर की साफ सफाई में इनकी बेटियां इनका साथ निभाती हैं। वे कहती हैं कि समय के साथ चीजें बदल रही हैं। शास्त्रों में भी बदलाव की आवश्यकता है। लड़का-लड़की समान है। फिर पूजा-पाठ सिर्फ पुत्र के लिए क्यों?

समाज को आइना दिखाने की कर रही हैं कोशिश, हर साल करती है जिउतिया 

70 वर्षीय वृद्धा कबूतरी देवी की तीन बेटियां है। वे करीब 50 वर्षो से बेटियों की सलामती के लिए पर्व कर रही हैं। कहती हैं कि समय के साथ अब हमारी सोच भी बदलना जरूरी है। जो काम बेटा कर सकता है, वह बेटी भी कर सकती है, फिर बेटियों के साथ भेदभाव क्यों? सभी को सोचना चाहिए। पूरी निष्ठा से बेटियों को प्यार-दुलार के साथ पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देती हूं और व्रत भी करती हूं। ताकि मेरी बेटियां सलामत रहें। अब बेटियों को जिउतिया करने की विधि बता रही हूं।

लाल के साथ-साथ अब लाडो को मिलने लगा बराबरी का दर्जा

युग युग जीओ मोर ललनवा..., ललनवा की लंबी उम्र होय...आदि जिउतिया के प्रमुख गीत हैं। इन गीतों में अब भी समाज में बिटिया की तुलना में बेटों को अधिक महत्व दिए जाने की बात प्रमाणित होती है। यह तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू समाज में हो रहे बदलाव की कहानी बयां करता है। जिउतिया का बाजार बिटिया के प्रति समाज की बदलती धारणा को मजबूत बना रहा है। समाज में बेटों के लिए ही माताएं जिउतिया का व्रत करती रही हैं। अब बदलाव की बयार में यह परंपरा टूटने लगी है। मां का लाड़ अब लाल (बेटों) के साथ ही लाडो (बिटिया) पर भी उमड़ रहा है। जिउतिया के बाजार यही संकेत दे रहे हैं। ऐसी मान्यता रही है कि जितने बेटे हैं, मां उतनी ही जिउतिया बनाती हैं। कुछ महिलाएं बेटा और बेटी दोनों के लिए जिउतिया करती रही हैं, लेकिन भेद दिख जाता था। बेटों के लिए सोने का जिउतिया बनाया जाता था, बिटिया के लिए चांदी का। अब बेटा और बिटिया दोनों के लिए सोने का जिउतिया खरीदे जा रहे हैं। यह संकेत है कि बिटिया को अब समाज में बराबरी का दर्जा मिलने लगा है।

विशाल स्वर्णिका ज्वेलर्स के विशाल आनंद ने कहा कि आज से पांच सात वर्ष पहले तक बेटों के लिए सोने का और बिटिया के लिए चांदी का जिउतिया खरीदने का चलन था। अब बेटा और बिटिया दोनों के लिए सोने का जिउतिया ही खरीद रहे हैं। 02 हजार से 25 हजार के जिउतिया उपलब्ध हैं। बीते वर्ष की तुलना में इस बार जिउतिया का बाजार भी बेहतर रहा है। जिउतिया की खरीदारी कर निकल रही सरोजनी देवी ने कहा कि मैं बीते आठ वर्ष से बेटा और बेटी दोनों के लिए जिउतिया खरीदती हूं। हर बार दोनों के लिए सोने का ही जिउतिया खरीदती हूं। मेरी बिटिया किसी मायने में बेटों से कम नहीं है।

बेटी को बेटा का दर्जा देकर रेखा कर रही हैं जिउतिया

त्याग, प्रेम और पवित्रता के पराकाष्ठा का पर्व जिउतिया महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने के लिए करती हैं। लेकिन ललमटिया इलाके की पीपरपांती मोहल्ले की रहने वाली रेखा देवी अपनी पुत्री को ही पुत्र मानकर यह महापर्व कर रही हैं। अपनी पहली पुत्री के जन्म के बाद से ही 17 वर्षों से यह पर्व पूरी नेम निष्ठा के साथ करती आ रही हैं। रेखा देवी द्वारा किया जा रहा यह पर्व समाज में बेटा बेटी के बीच भेदभाव करने वालों के लिए एक बड़ा संदेश है।

एक सवाल के जवाब में रेखा ने बताया कि हमने अपने परिवार में कभी किसी को बेटा-बेटी के बीच कभी भेदभाव करते नहीं देखा। यह शिक्षा मुझे अपने घर-परिवार से ही मिली है, जिसका अनुसरण मैं खुद कर रही हूं। मैं दूसरों को भी लिंग भेद ना करने का संदेश देती रही हूं। इसका असर यह हुआ है कि रेखा देवी को देख कर समाज की कई महिलाएं जिउतिया का पर्व कर रही हैं। उनका मानना है कि जीवन की गाड़ी स्त्री, पुरुष समान दो पहिए के माध्यम से ही सरलता और सहजता के साथ चलती है। इन दोनों के बीच कभी भेदभाव नहीं करना चाहिए। सरकार भी आज नारी को सशक्त बनाने की दिशा में निरंतर कार्य कर रही है। अब बेटे, बेटियों को पढ़ाने में भी अभिभावक बराबरी का दर्जा देते हैं।

महज दो पुत्री के प्रेम में बिना पुत्र के इंतजार का ही करती है जितिया पर्व

भले ही पुत्र की लम्बी आयु के कामना के लिए जितिया पर्व विवाहित महिलाओं के द्वारा किया जाता है। लेकिन शादी के तत्काल बाद ही गोपालपुर प्रखंड के सैदपुर गांव की मिलन देवी ने पितरों को पानी देने हेतु जितिया पर्व करना प्रारंभ कर दिया था। मिलन देवी बताती है कि पुत्र पुत्री में अभी के समय में कोई अंतर नहीं है। भगवान ने हमें पुत्री के रूप में दो संतान दिया है। दोनों पुत्रियां का हमने पुत्र से बढ़कर पालन पोषण कर अच्छी तालीम भी दी है। वह आज अपने पैरों पर खरी है। बताया कि शादी वर्ष 1988 में हुई थी। सास के नहीं रहने के कारण परिजनों व कुल पुरोहित के निर्देश पर शुभ मुहूर्त पर विधि विधान के साथ जितिया पर्व कर रही हूं। उसके बाद दो पुत्री हुई। परन्तु जितिया पर्व हर वर्ष अपने पूर्वजों को समर्पित कर परिवार के सभी बच्चों के लिये जितिया करती हूं। मिलन देवी के पति विपिन कुमार बताते हैं कि हमारी पत्नी ने कभी भी पुत्र एवं पुत्री में अंतर नहीं समझा हम अपने चारों भाई बहनों में सबसे बड़े होने के कारण इन्होंने बखूबी से अपना अपना फर्ज पूरा किया। दोनों पुत्रियों को अच्छी शिक्षा दी जिसमें पहली पुत्री को हेमियोपैथि चिकित्सा की पढ़ाई पढा कर चिकित्सक बनाया। वही दूसरी पुत्री एवं भाई बहनों को भी अच्छी शिक्षा दी है। मालूम हो कि जितिया पर्व के मौके पर महिलाएं अपने पितरों को अर्पण करती है।

chat bot
आपका साथी