पुरखों के लगाए बाग-बगीचों से लाभान्वित हो रही नई पीढि़यां
आज हम आसपास में जो बड़े-बड़े पुराने बाग-बगीचे देख रहे हैं उनमें से अधिकाश हमारे पुरखों-बुजुर्गो ने लगाए हैं।
भागलपुर [अमरेंद्र कुमार तिवारी]। आज हम आसपास में जो बड़े-बड़े पुराने बाग-बगीचे देख रहे हैं, उनमें से अधिकाश हमारे पुरखों-बुजुर्गो ने लगाए हैं। उन बाग-बगीचों से आज की नई पीढ़ी लाभान्वित हो रही है। अपने परिवार का जीवन यापन कर रही है।
इन पेड़ों से केवल हमें ही लाभ नहीं है बल्कि पर्यावरण भी शुद्ध रहता है। इसके अलावा पशु-पक्षियों का भी यह आश्रय है, इसलिए जो कार्य हमारे पुरखों ने हमारे लिए किया है अब हमारा दायित्व बनता है कि हम भी आने वाली पीढ़ी के लिए इसे न सिर्फ सहेज कर रखें बल्कि नए फलदार या इमारती लकड़ियों के पौधे लगाएं, ताकि आने वाली पीढि़यों को स्वच्छ वातारण मिल सके। आर्थिक समृद्धि मार्ग प्रशस्त हो सके। प्रदूषण से पृथ्वी को बचाने का पौधारोपण ही एकमात्र सस्ता, टिकाऊ और बेहतर विकल्प है। इनके पुरखों ने लगाए हैं बाग
अनुभव वशिष्ट - बैजानी, संतोष चौधरी - बैजानी, निरंजन साह - खलीफाबाग, अनिस झा - बौंसी, प्यारे हिद और बाबूल विवेक - इशाकचक, रणधीर चौधरी - बाबू टोला कहलगांव, सोनू सिंह - नंदलालपुर, सदानंद तिवारी - अमरपुर, अमरेंद्र यादव - बलहा, प्रसून सिंह और शंभु नाथ सिंह - भवानीपुर, भानू सिंह - बीरबन्ना, सुरेंद्र सिंह, बरमेश्वर तिवारी और शिवाजी सिंह - अम्मापाली, बुलबुल सिंह, रहमत अली, श्रवण भगत और ओमप्रकाश पंडित - पीरपैंती बाजार सहित अन्य। य कर रहे हैं सतत पौधारोपण
विनोद मंडल, सबौर, विजय मंडल, फरका, सुभाष प्रसाद, सबौर और किसान श्री मृगेंद्र प्रसाद सिंह सतत पौधारोपण कर रहे हैं। इनका कहना है कि हर व्यक्ति यदि अपने जीवन काल में प्रतिवर्ष एक पौधा लगाए तो यह पृथ्वी बहुत खूबसूरत हो जाएगी। उन्होंने कहा हरियाली पृथ्वी का गहना है, लेकिन आज जितने पेड़ लग नहीं रहे उससे कहीं अधिक संख्या में कट रहे हैं। इसका दुष्परिणाम बैमौसम बारिश, बाढ़ और सुखाड़ है। बगीचों की सौगात बनी आर्थिक समृद्धि का आधार
पीरपैंती के किसान नवल सिंह बताते हैं कि पिता स्व. कपिलदेव सिंह ने अपनी कड़ी मेहनत से 20 फलदार पेड़ों का बगीचा लगाया था। हमारे लिए यह सौगात थी। हमलोग ब्रजकिशोर, रणधीर, नंद किशोर और जयंत सहित पांच भाई है। सभी भाइयों ने अपने संयुक्त प्रयास से 2004 में 30 बीघे में 250 आम के पौधे लगाए थे। इसके अलावा एक एकड़ में बैर का बाग लगाया। इसके लिए 480 पौधे बांग्लादेश से मंगाए थे। इससे हर साल डेढ़ लाख की आमदनी हो रही। बागों से सालाना लाखों की आमदनी है। इसके बल पर बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। बाग-बगीचों की आमदनी से पूरा परिवार खुशहाल जीवन जी रहे हैं। 30 से 45 आयु वर्ग के लोगों को पौधारोपण में कम है दिलचस्पी
पौधारोपण को लेकर शहर के 50 लोगों से पूछताछ के क्रम में 30 से 45 आयु वर्ग के करीब 30 फीसद तक ऐसे लोग मिले जिन्होंने पौधारोपण नहीं किया। सबौर के सुरेंद्र सिंह ने कहा पौधा लगाने के लिए जमीन नहीं है। वहीं मुंदीचक के प्रणव का कहना था कभी दिलचस्पी ही नहीं हुई। सिंकदरपुर के मनीष कुमार ने कहा अब पौधा लगाने का मन करने लगा है। इस बार अपने घर सजौर जाएंगे तो एक आम का पौधा अवश्य लगाएंगे। वहीं 20 से 30 आयु वर्ग के युवा पौधारोपण को लेकर ज्यादा जागरूक दिखे। तिलकामांझी के पुष्पेंद्र ने कहा हर वर्ष पर्यावरण दिवस पर कहीं न कहीं एक पौधा लगाता हूं। पिताजी के साथ कहलगांव में भी बगीचा लगाने में सक्रिय योगदान दे रहे हैं। वर्तमान पीढ़ी को पर्यावरण सुरक्षा के लिए पौधारोपण के लिए जागरूक भी करने का नेक काम कर रहा हूं।