अमेरिका व आस्ट्रेलिया में बढ़ा भारतीय संस्‍कृति का क्रेज, सुबह उठकर माता-पिता को करते हैं प्रणाम, सीख रहे हिंदी और संस्‍कृत, गायत्री मंत्र भी

अब विदेशों में भी भारतीय भाषाओं का क्रेज बढ़ता जा रहा है। हिंदी और संस्कृत सीख रहे अमेरिका और आस्ट्रेलिया के भारतीय बच्चे। भागलपुर के शिक्षक पुंडरीकाक्ष पाठक प्रतिदिन ऑनलाइन दे रहे शिक्षा। अपने माता-पिता को पांव छूकर प्रणाम करते हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Fri, 02 Jul 2021 09:46 AM (IST) Updated:Fri, 02 Jul 2021 09:46 AM (IST)
अमेरिका व आस्ट्रेलिया में बढ़ा भारतीय संस्‍कृति का क्रेज, सुबह उठकर माता-पिता को करते हैं प्रणाम, सीख रहे हिंदी और संस्‍कृत, गायत्री मंत्र भी
बच्चों द्वारा लिखी हिंदी और संस्कृत की वर्णमाला और भारतीय शिक्षक ने आनलाइन पढ़ते बच्‍चे।

भागलपुर [नवनीत मिश्र]। अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों के भारतीय बच्चे हिंदी व संस्कृत सीखने में रुचि ल रहे हैं। इन देशों में बसे कई भारतीय परिवार अपने बच्चों को हिंदी व संस्कृत सीखाने के लिए आनलाइन क्लास करा रहे हैं। अपने बच्चों को हिंदी व संस्कृत पढ़ाने वाले अधिकांश लोग दिल्ली व हिमाचल प्रदेश के डाक्टर हैं। इन बच्चों के शिक्षक पटना विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर कर भागलपुर में दीपशिखा विद्यापीठ खोलकर बच्चों को शिक्षित करने वाले पुंडरीकाक्ष पाठक हैं।

हालांकि कोरोना काल में वह विद्यापीठ बंद हो चुकी है। पर उनकी इस नई आनलाइन कक्षा में इस समय आठ से 12 आयुवर्ग के अमेरिका के छह व अस्ट्रेलिया के दो बच्चे संस्कृत व हिंदी की शिक्षा पा रहे हैं। वे छात्र शिक्षक से हिंदी व संस्कृत विषय से संबंधित दोनों भाषाओं में सवाल भी पूछ रहे है। शिक्षक पुडुरीकाक्ष पाठक ने बताया कि दीपशिखा विद्यापीठ के बच्चों को गीता पाठ, वेद पाठ आदि भी कराए जाते थे। उन्होंने उसके कई वीडियो यूट्यूब पर अपलोड कर रखे हैं। उस पर उनका मोबाइल नंबर भी है। उन्हें देखकर एक साल पूर्व कुछ अभिभावकों ने उनसे अपने बच्चों को हिंदी व संस्कृत की शिक्षा देने की पेशकश की।

उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। तब से अमेरिका के कैलिफोर्निया के बच्चे इवाना, इहाना, सान्वी व तनय प्रतिदिन रात्रि 10.30 बजे और ऑस्टे्रलिया के सिडनी के रजत व अन्य बच्चे शाम पांच बजे आनलाइन पढ़ रहे हैं। इन बच्चों को भारतीय संस्कार व परंपरा के बारे में भी जानकारी दी जा रही है। वह बच्चों को भगवान राम का उदाहरण देकर माता-पिता व बड़ों को प्रणाम करने के महत्व को बता रहे हैं। इसमें सुबह उठकर अपने माता-पिता को प्रणाम करना, भोजन करने से पहले अन्नदाता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए अन्नदाता सुखी भव: आदि शामिल है। सभी बच्चे प्रसन्न मुद्रा में यह शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

पुंडरीकाक्ष पाठक ने बताया कि विदेश में रहने वाले आठ से दस बच्चे हिंदी व संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं। वह हिंदी की गिनती, हिंदी व संस्कृत वर्णमालाएं सीख चुके हैं। हिंदी में लिख व बोल रहे हैं। वे पालतू जानवरों, नदी, पेड़-पौधे, मिठाई, भारतीय खान-पान के बारे मेंभी रुचि लेकर सीख रहे हैं। धीरे-धीरे उन्हें भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अनुरूप शिष्टाचार, सदाचार आदि की समझ होने लगी है। ङ्क्षहदी व संस्कृत पढऩे वाले ऐसे बच्चों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

गायत्री मंत्र से शुरू होती है पढ़ाई प्रतिदिन पढ़ाई की शुरुआत गायत्री मंत्र ऊं भूर्भुव: स्व ... तथा सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया ... से होती है। छात्रों को सर्वे भवन्तु सुखिन: (सभी सुखी रहें), सर्वे संतु निरामया (सभी निरोग रहें), त्वम कुत्र गच्छसि (तुम कहां जा रहे हो), अहं गृहं गच्छामी (मैं घर जा रहा हूं) जैसे संस्कृत भाषा के वाक्य ङ्क्षहदी अनुवाद के साथ सहजता पूर्वक बताए जा रहे हैं। साथ-साथ वेद, गीता, रामायण, भारतीय सभ्यता-संस्कृति के संबंध में भी बच्चों को जानकारी जा रही है। दशरथ कौन थे। उनके यहां भगवान राम का जन्म क्यों हुआ। लव-कुश कौन थे, उनकी शिक्षा-दीक्षा कहां हुई। भगवान राम लोगों के प्रिय क्यों हैं आदि के बारे में ये जिज्ञासू बच्चे मनोयोगपूर्वक सुनते हैं।

भारतीय संस्कृति की मिल रही सीख

विदेश में रह रहे ये भारतीय मूल के बच्चे भारतीय संस्कृति सीख रहे हैं। बच्चे सुबह उठकर वे माता-पिता के चरण स्पर्श करते हैं। वे आपस में गुड मार्निंग की जगह सुप्रभात कह रहे हैं। बच्चे भारतीयता, भगवान श्रीराम, श्रीमद्भागवत गीता, रामचरित मानस से प्रभावित हो रहे हैं। पुंडरीकाक्ष पाठक के अनुसार वे बच्चे भारत नाम क्यों पड़ा, अयोध्या क्यों प्रसिद्ध है, राम को भगवान क्यों मानते हैं, वे किनके पुत्र थे और कितने भाई थे जैसे सवाल कर अपना ज्ञान बढ़ा रहे हैं। वे स्वामी विवेकानंद व एपीजे अब्दुल कलाम के साथ कौरव-पांडव के बारे में भी जानकारी पाना चाह रहे हैं।

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