नेपाल, अलास्का, मंगोलिया, साइबेरिया, रूस, तिब्बत एवं मध्य यूरोप की दुर्लभ पक्षियों को देखना है तो भागलपुर आएं, अद्भुत... मजा आ जाएगा

दुर्लभ पक्षियों का बसेरा बन रहा भागलपुर का कदवा दियारा। यहां अभी लेसर कोकल गोल्डन ओरियोल व कपासी चील आदि कई प्रकार के अद्भुत पक्षी हैं। कुछ दिन पूर्व भागलपुर के सुंदरवन में देखा पीला कबूतर भी देखा गया था।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 06:58 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 06:58 AM (IST)
नेपाल, अलास्का, मंगोलिया, साइबेरिया, रूस, तिब्बत एवं मध्य यूरोप की दुर्लभ पक्षियों को देखना है तो भागलपुर आएं, अद्भुत... मजा आ जाएगा
भागलपुर में दुर्लभ और अद्भुत पक्षी का बसेरा बना हुआ है।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। अरे इस पक्षी को किसी ने गुलेल से मारा है। देखो वह तेजी से नीचे गिर रहा है। यह क्या पक्षी ने चूहे को पैर में दबाया और आसमान की ओर उड़ गया। अक्सर सड़क किनारे बिजली के तारों पर यह दुग्ध धवल और काले धब्बों वाला गोल मटोल शिकारी पक्षी अपनी लाल आंखों से हमें आकॢषत करता है और बड़े इतमिनान से फोटो खींचने की इजाजत देता है। देखते-देखते यह पक्षी धड़ाम से जमीन पर गिर जाता है, जैसे कि किसी ने इसे घायल कर दिया हो, लेकिन यह सीधा अपने शिकार पर ही गिरता है और फिर उसे लेकर फुर्र हो जाता है। इस पक्षी के शिकार करने अलग ही तरीका है। हम बात कर रहे हैं कपासी चील यानि ब्लैक स्लाउड्रेड काइट की। इस पक्षी की खूबसूरती ने लोगों को खुद ब खुद रोक देता है।

अनुकूल वातावरण, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित प्रजनन क्षेत्र होने की वजह से भागलपुर का कदवा दियारा दुर्लभ विदेशी पक्षियों का बसेरा बनता जा रहा है। यहां नेपाल, अलास्का, मंगोलिया, साइबेरिया, रूस, तिब्बत एवं मध्य यूरोप से पक्षी आ रहे हैं। लेसर कोकल, गोल्डन ओरियोल, कपासी चील आदि पक्षी इतने आकर्षक होते हैं कि उन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग दियारा क्षेत्र का रुख करने लगे हैं।

पक्षी प्रेमी अरविंद मिश्रा ने बताया कि इन पक्षियों का बसेरा मुख्य रूप से खगडिय़ा व मोकामा के इलाके में होता है, लेकिन अब ये कदवा इलाके में भी देखे जाने लगे हैं। पक्षी प्रेमियों का दल डीएफओ भरत चिंतपल्लि के नेतृत्व में कदवा दियारा देखने गया था। इस दौरान वहां 30 तरह की पक्षियों को देखा गया।

पक्षी प्रेमी अरविंद मिश्रा ने बताया कि कदवा में प्रवेश करते ही जलप्लावित झाडिय़ों में एक महोक को देख गया। वन प्रमंडल पदाधिकारी भारत चिंतापल्ली और मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने साधारण महोक होने के ख्याल से उसकी तस्वीरें भी लीं। लेकिन क्या पता था कि यह वह महोक था, जिसका पक्षी प्रेमियों को वर्षों से इंतजार था। छोटे महोक के संबंध में डीएफओ ने बताया कि इसकी आंखें लाल नहीं, काली हैं।

छोटा महोक यानि लेसर कोकल, साधारणतया हिमालय के क्षेत्रों और देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में ही ज्यादा दिखाई देता है। भारतीय स्वर्ण पीलक यानि इंडियन गोल्डन ओरियोल और सादी मुनिया यानि इंडियन सिल्वर बिल सहित तीस प्रजाति की पक्षियों को भी वहां देखा गया।

सुंदर वन में दिखा हरा कबूतर

सुंदर वन में ऐश सिर वाला हरा कबूतर देखा गया है। बाल्मिकी टाइगर रिजर्व बेतिया के बाद यह अदभुत पक्षी यहीं दिखा। इस प्रजाति की पक्षी पूर्वोत्तर भारत, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड एवं वियतनाम में पाई जाती है। यह पक्षी ऊंचे पेड़ों पर रहती है। लिहाजा इसे देख पाना बहुत ही कठिन है। पुराने पीपल, बरगद, पाकड़, गुल्लर, वोटल व्रस के फलों को यह अपना आहार बनाता है। विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में आने के कारण इनका संरक्षण आवश्यक है।

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