यहां कोसी के साथ कहर बरपाती है काली कोसी और बागमती, नदियों में पानी बढऩे के साथ गर्भवतियों को भेज देते हैं मायके

खगडि़या में कोसी के साथ साथ काली कोसी और बागमती भी कहर बरपाती है। इससे लोगों की परेशानी और बढ़ जाती है। यही कारण है कि बाढ़ का खतरा देखते ही यहां के लोग गर्भवती महिलाओं को उनके मायके भेज देते हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 05:04 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 05:04 PM (IST)
यहां कोसी के साथ कहर बरपाती है काली कोसी और बागमती, नदियों में पानी बढऩे के साथ गर्भवतियों को भेज देते हैं मायके
खगडि़या में कोसी के साथ साथ काली कोसी और बागमती भी कहर बरपाती है।

जागरण संवाददाता, खगडिय़ा। खगडिय़ा को नदियों का नैहर कहा जाता है। परंतु, यहां नदियों का जलस्तर बढऩे के साथ ही नदी किनारे, तटबंध के अंदर, दियारा में बसे गांवों में संकट का अलार्म बज जाता है। घाट-बाट सुरक्षित नहीं रहने से स्थानीय लोग नव विवाहिताओं और गर्भवतियों को मायके भेज देते हैं। क्योंकि यहां की चिकित्सा व्यवस्था भी झोलाछाप के सहारे है।

कोसी-काली कोसी और बागमती नदियों से घिरी है चौथम प्रखंड की चार पंचायतें। ये पंचायतें हैं-सरसवा, बुच्चा, ठुठी मोहनपुर और रोहियार। यहां 50 हजार से ऊपर की आबादी बसती है। बरसात का मौसम शुरू होते ही यहां के लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ जाती है। वे नव विवाहिताओं और गर्भवतियों को सुरक्षित स्थानों पर भेज देते हैं।

बंगलिया के वकील शर्मा कहते हैं- मैंने अपनी पुत्रवधु को उसके मायके सिमरी बख्तियारपुर स्थित पहाड़पुर भेज दिया हूं। वकील शर्मा ने बताया कि पिछले साल बाढ़ के पानी में उनका पोता डूबते-डूबते बचा था। ठुठी मोहनपुर के प्रमोद साह ने बताया कि बाढ़ का समय आने से पहले वे प्रत्येक साल अपने बच्चे को ननिहाल भेज देते हैं। बंगलिया के ही कुंदन कुमार ने कहा कि पत्नी पूजा देवी को बाढ़ आने से पहले सहरसा भेज दिए हैं। सहरसा कुंदन का ससुराल है। रोहियार पंचायत स्थित बलकुंडा गांव के संजय ङ्क्षसह ने अपनी गर्भवती पत्नी को उसके मायके भेज दिया है। उन्होंने बताया कि गांव में अस्पताल नहीं है। बाढ़-बरसात में कौन रिस्क लें।

स्थानीय जिला परिषद सदस्य मिथिलेश यादव ने बताया कि एक अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र ठुठी में है। यह भाड़े के मकान में चलता है। यहां चिकित्सक नहीं है। क्षेत्र में दो उप स्वास्थ्य केंद्र भी है, लेकिन ये कागज पर ही है।

संभावित बाढ़ को देखते हुए ऊंचे शरण स्थलों की खोज कर ली गई है। जहां मेडिकल सेटअप भी रहेगा। नाव की व्यवस्था रहेगी। गर्भवतियों की सूची तैयार कर ली गई है।

टेशलाल ङ्क्षसह, प्रभारी पदाधिकारी आपदा प्रबंधन, खगडिय़ा।

कोसी-काली कोसी और बागमती नदियों से घिरे चौथम दियारा में स्वास्थ्य सेवा कागजों पर ही है। आठ वर्ष हो गए, परंतु नवादा घाट से ठुठी मोहनपुर, खैरता, धमारा होते हुए मां कात्यायनी स्थान तक जाने वाली सड़क नहीं बन सकी। 11 किलोमीटर लंबी यह सड़क बन जाने से यहां की तस्वीर ही बदल जाएगी।

मिथिलेश यादव, जिला परिषद सदस्य, क्षेत्र संख्या नौ।  

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