कोसी और सीमांचल के दियारा में बड़े पैमाने पर होगी 'स्वर्ण रेखा' की खेती, किसानों को दिया जाएगा प्रशिक्षण

कोसी और सीमांचल में बड़े पैमाने पर स्‍वर्ण रेखा प्रभेद के परवल की खेती होगी। इसकी खेती बंजर भूमि पर की जाएगी। इसके लिए कृषि विभाग की ओर से किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। साथ ही अन्‍य तरह के...

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Fri, 05 Nov 2021 09:42 PM (IST) Updated:Fri, 05 Nov 2021 09:42 PM (IST)
कोसी और सीमांचल के दियारा में बड़े पैमाने पर होगी 'स्वर्ण रेखा' की खेती, किसानों को दिया जाएगा प्रशिक्षण
कोसी और सीमांचल में बड़े पैमाने पर स्‍वर्ण रेखा प्रभेद के परवल की खेती होगी।

संस, सहरसा। कोसी दियारा क्षेत्र में हर वर्ष हजारो एकड़ भूमि बेकार रह जाती है। इस क्षेत्र की बलुआही मिट्टी परवल की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। इससे किसानों को अच्‍छी खासी आमदनी होगी। इसके लिए कवायद शुरू कर दी गई है, जल्‍द ही इसे धरात पर उतारने की तैयारी की जा रही है। 

इसके लिए कृषि व उद्यान विभाग ने इस दियारा इलाके में उन्नत प्रभेद के परवल की खेती कराने की योजना बनाई है। इससे बेकार बड़ी भूमि का उपयोग होगा और इलाके के किसान भी समृद्ध होंगे। परवल की उन्नत खेती के लिए विभाग द्वारा किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

प्रखंड स्तर पर खरीददारी की होगी व्यवस्था

सहकारिता विभाग द्वारा सभी प्रखंडों में सब्जी की खरीद- बिक्री हेतु आउटलेट केंद्र खोले जाने की तैयारी की जा रही है। इन आउटलेट में सब्जी जमा होगा और बिक्री से बचे सब्जी को दूसरी जगी भेजने की व्यवस्था होगी। सब्जी के आनलाइन व्यवसाय की भी रणनीति बनाई जा रही है। यहां खरीद की गई सब्जी का भुगतान संबंधित किसानों के खाते के माध्यम से किया जाएगा। इसके लिए काम शुरू कर दिया गया है।  

उन्नत प्रभेद के परवल का सालोभर होगा उत्पादन

कोसी दियारा में किसानों द्वारा छिटफुट तरीके से परवल की खेती की जाती है। इससे किसानों को काफी मुनाफा भी होता है। कृषि विभाग ने इस क्षेत्र में उत्पादित देसी परवल के अलावा सालोभर उत्पादन के लिए उन्नत नस्ल का राजेंद्र परवल, नरेंद्र परवल, कल्याणी गुली, निरिया के अलावा अत्यधिक उत्पादन होनेवाला स्वर्ण अलौकिक परवल की खेती कराने की रणनीति बनाया है। इसके उत्पादन से जहां बेकार जमीन का उपयोग होगा, वहीं इलाके के किसान इसकी खेती कर बेहद लाभांवित होंगे।

उन्नत किस्म के परवल की खेती से इलाके के किसान बेहद ही लाभांवित होंगे। इससे बेकार पड़ी जमीन का भी उपयोग होगा और इलाके की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

-दिनेश प्रसाद सिंह, जिला कृषि पदाधिकारी, सहरसा।

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