JDU की पूर्व सांसद कहकशां परवीन ने सदानंद सिंह को बताया पिता तुल्य, कहलगांव पहुंच अर्पित की श्रद्धांजली
जदयू से राज्यसभा की पूर्व सांसद कहकशां परवीन शुक्रवार को कहलगांव स्थित सदानंद सिंह के आवास पहुंची। यहां उन्होंने दिवंगत कांग्रेस नेता को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए परिजनों को सांत्वना दी। इसके साथ ही उन्होंने सदानंद सिंह को पिता तुल्य बताया।
संवाद सूत्र, कहलगांव। राज्यसभा की पूर्व सांसद कहकशां परवीन शुक्रवार को दिवगंत पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानन्द सिंह के कहलगांव स्थित आवास पर पहुंचीं और उनके चित्र पर माल्यार्पण कर नमन किया। सदानंद बाबू की मां कामनी देवी, पुत्र शुभानंद मुकेश एवं पुत्रबधु से मिलकर सांत्वना दी। इस दौरान वे मीडिया से भी मुखातिब हुईं।
पूर्व सांसद ने कहा कि हम यहां नहीं थे। आने का प्रयास किया पर नहीं आ सकी। सदानंद बाबू पिता तुल्य थे। जब भी मुलाकात होती थी तो बेटी ही कहकर संबोधित करते थे। उनसे काफी आत्मीय लगाव था। उनके खिलाफ चुनाव लड़े थे फिर भी संबंध बरकरार रहा था। जब भी मुलाकात होती थी तो आशीर्वाद जरूर देते थे। पूर्व सांसद ने मां को नमन कर धैर्य रखने की बात कही। उनके साथ जदयू के प्रदेश सचिव नीरज मंडल, प्रखंड अध्यक्ष मनोहर मंडल, सन्हौला प्रखंड अध्यक्ष राकेश यादव, राजीव सिन्हा, मनीष चौधरी, बलवंत आदि जदयू कार्यकर्ता मौजूद रहे।
शोक सभा का आयोजन
पूर्व विधायक सदानंद सिंह के निधन के बाद जिलेवार शोक सभा की जा रही हैं। मधेपुरा, कटिहार, जमुई, किशनगंज समेत लगभग सभी जिलों के कांग्रेस कार्यालय में शोक सभा का आयोजन कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सदानंद सिंह के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित किया। इस दौरान सभी ने उनके पार्टी के प्रति कर्तव्यनिष्ठा का बखान किया।
सदानंद सिंह के बारे में
कहलगांव से पूर्व कांग्रेस विधायक सदानंद सिंह ने बुधवार को पटना में अंतिम सांस ली, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। गुरुवार 9 सितंबर को उनका अंतिम संस्कार कहलगांव में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। सदानंद सिंह 1969 से 2015 तक लगातार 12 बार भागलपुर की कहलगांव सीट से चुनाव लड़े। उन्होंने नौ बार फतह हासिल की। विधानसभा अध्यक्ष के साथ-साथ वे बिहार सरकार में कई विभागों के मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। 1977 की जनता लहर में भी सिंह ने कहलगांव सीट से जीत दर्ज की थी। 1985 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया तो वह कहलगांव से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। सदानंद सिंह कांग्रेस के ऐसे सच्चे सिपाही थे जो आपातकाल में जब कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी और पार्टी के नेता अन्य दलों का रुख कर रहे थे, तब भी वे कांग्रेस में ही रहे और चुनाव में जीत भी दर्ज करा आगे बढ़े।