Forest Martyrs Day: देश के 'पैदल सिपाही' के बारे में जानना बेहद जरूरी, बिहार के भागलपुर से लेकर पटना तक इनके कंधे अहम जिम्मेदारी
Forest Martyrs Day कोरोना काल में जब इंसान घरों में कैद था और वन्य जीव आजाद तब वनों के साथ-साथ जीवों की रक्षा करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी थी। ये पैदल सिपाही हर रोज कई किलोमीटर पैदल चलते हैं ताकि वन्य जीव और वन दोनों सुरक्षित रहें।
आनलाइन डेस्क, भागलपुर। वन शहीद दिवस (Forest Martyrs Day) हर वर्ष 11 सितंबर को मनाया जाता है। वन के लिए अपने प्राण गंवा देने वालों के सम्मान में इस दिन को मनाया जाता है। बिहार के एक बड़े भू-भाग में वन क्षेत्र है। ऐसे में इस दिन यहां के वन रक्षकों की बात करना बेहद जरूरी हो जाता है। जंगलों की हिफाजत में लगे लोगों को सैल्यूट करना लाजमी हो जाता है। वन क्षेत्र में जहां वाहनों नहीं ले जाए जा सकते, वहां ये पैदल ही कई किलोमीटर का सफर तय करते हैं।
बिहार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव आईएएस दीपक कुमार सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'उन सभी योद्धाओं को नमन, जिन्होंने वनों और वन्य जीवों के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। यह हमारी वीटीआर की ग्रीन आर्मी है जो वन्यजीव संरक्षण के लिए फ्रंट लाइन पर काम करती है। दूरदराज के इलाकों में काम करने वाले ये योद्धा एक ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है।'
बिहार में एक मात्र राष्ट्रीय टाइगर रिजर्व के अलावा कुल 11 वन अभ्यारण्य हैं। ये भागलपुर, मुंगेर, कटिहार, वैशाली, गया, रोहतास, कैमूर, बेगूसराय, दरभंगा, नालंदा, पटना, वेस्ट चंपारण में स्थित हैं। यहां ये भी बता दें कि बिहार में ऐसा कोई दिन शायद ही बीतता हो जब जंगलों से भटक कर वन्यजीव घनी आबादी वाले क्षेत्रों में न पहुंच जाते हो। ऐसे में वन्य जीवों के साथ-साथ लोगों की सुरक्षा करने के लिए मौके पर जो पहुंचते हैं वो वन रक्षक हैं।
कभी सांप, तो कभी घड़ियाल या मगरमच्छ, रास्ता भटका हिरण हो या जाल में फंसी डॉल्फिन, सभी को बचाने के लिए एक फोन काल में वन रक्षक मौके पर पहुंचते हैं। इसके साथ ही वे लोगों को इस बारे में जागरूक भी करते हैं कि वन्यजीवों का संरक्षण बेहद जरूरी है। पेड़ों की अवैध कटाई को लेकर भी ये सैनिक लगातार मोर्चा संभालते हैं। कई दफा तो अवैध बालू खनन और पेड़ों की कटाई कर रहे माफिया वन रक्षकों पर हमला भी कर देते हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं।
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कोरोना काल में ड्यूटी
जब इंसान घरों में कैद था और वन्य जीव आजाद, तब इनकी रक्षा करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी थी। बिहार के वन्य अभ्यारण्य क्षेत्र में तैनात सभी वन रक्षकों ने अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी के साथ अदा की। शांत हुए माहौल में कई वन्य जीव जब शहरों की ओर विचरण करने लगे, तब वन रक्षकों ने इनकी रक्षा करते हुए जंगल तक पहुंचाया। वन जीवों तक कोरोना संक्रमण न पहुंचे इसका भी ख्याल उन्होंने रखा। इनमें से कुछ वन रक्षक कोरोना संक्रमित भी हुए और कुछ की जान भी चली गई। जानकारी मुताबिक बिहार में इस वर्ष तकरीबन 7 वन रक्षकों की जान कोरोना संक्रमण से हुई है।
क्यों मनाया जाता है वन शहीद दिवस?
आईएफएस ऑफिसर परवीन कासवान ने ट्वीट करते हुए बताया कि आखिर क्यों वन शहीद दिवस मनाया जाता है। उन्होंने लिखा, 'आज के दिन 1730 में जोधपुर के खेजरली में 363 विश्नोई राजा द्वारा मारे गए थे क्योंकि वे पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे थे। तब से इस दिन को वन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।'
वे लिखते हैं कि भारत में मानव-पशु संघर्ष के कारण प्रतिदिन औसतन एक व्यक्ति की मौत होती है। मेट्रो शहरों से दूर यह रोज की लड़ाई है। कभी-कभी वन्यजीवों की तुलना में भीड़ को नियंत्रित करना अधिक कठिन होता है। मानव बस्तियों से बहुत दूर वन रक्षक इनकी हिफाजत के लिए रोजाना कई किलोमीटर पैदल चलते हैं।' परवीन कहते हैं कि हम इन्हें पैदल सिपाही कह सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वनों की हिफाजत करने वालों को ऐसा न हो कि हम भूल जाएं।