Economic loss to farmers: किसानों का आलू बिका माटी के मोल, व्यापारियों के यहां हो गया अनमोल
जिले का एकमात्र बिस्कोमान का शीत भंडार गृह विगत आठ सालों से बंद रहने से यहां के किसानों को माटी के मोल आलू बेचने पड़ रहे हैं। सैकड़ों आलू बेचने वाले इस इलाके के किसान इन दिनों 30-35 रुपये किलो महंगा आलू नहीं खरीद पा रहे हैं।
सहरसा, जेएनएन। बड़े पैमाने पर आलू का उत्पादन करने के बावजूद जिले में उसके भंडारन की व्यवस्था न होने से अभी उसकी बढ़ती कीमत देखकर कोसी प्रमंडल के किसान निराश हैं। जिले का एकमात्र बिस्कोमान का शीत भंडार गृह विगत आठ सालों से बंद रहने से यहां के किसानों को माटी के मोल आलू बेचने पड़ रहे हैं। यही कारण है कि तीन से चार रुपये प्रति किलो की दर से सैकड़ों ङ्क्षक्वटल आलू बेचने वाले इस इलाके के किसान इन दिनों 30-35 रुपये किलो महंगा आलू नहीं खरीद पाने से इसका स्वाद तक भूलते जा रहे हैं।
इस वर्ष प्रमंडल में आलू का अत्यधिक उत्पादन हुआ था। लेकिन सहरसा जिला मुख्यालय स्थित प्रमंडल का एकमात्र बिस्कोमान शीत भंडार गत आठ वर्ष से बंद पड़े होने से किसान आलू रखने के लिए बेगूसराय, पूर्णिया, खगडिय़ा आदि के निजी शीतगृहों के चक्कर लगाते रहे। उन जिलों के कोल्ड स्टोरों में जगह नहीं मिल पाने के कारण आखिरकार अन्य वर्षों की तरह इस बार भी उन्हें औने- पौने दाम पर पैदावार बेचने के लिए विवश होने पड़े। सहरसा का शीत भंडार चालू रहने पर किसान सितम्बर - अक्टूबर में उसे निकालकर मुंहमांगी कीमत पाते थे। लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं है।
वर्ष 1994 से कोसी क्षेत्र में बढ़ा आलू का उत्पादन
1994 में स्थापित बिस्कोमान शीत भंडार कोसी क्षेत्र के किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हुआ। इस कारण इलाके में आलू का इतना उत्पादन होने लगा कि विशाल भंडार गृह की जगह उसके लिए कम पडऩे लगी। परंतु 2008 में आई कुसहा त्रासदी के समय आलू का उत्पादन काफी कम हुआ। भंडार के प्रबंधक ने तत्कालीन जिलाधिकारी आर लक्ष्मणन से एक वर्ष के लिए इसे बंद करने की इजाजत मांगी। परंतु, बाढ़ से पस्तहाल किसानों की हालत को देखते हुए डीएम ने इसे चालू ही रखने का ही निर्देश दिया। फलस्वरुप उस वर्ष वह घाटे में रहा और 45 लाख रुपए के बिजली बिल का भुगतान नहीं कर सका। वह बकाया राशि सूद समेत बढ़कर एक करोड़ से उपर पहुंच गई। इससे वर्ष 2013 में विद्युत विभाग ने कनेक्शन विच्छेद कर दिया है।
आलू की खेती कर बेटी के हाथ पीले करते थे किसान
बिस्कोमान शीतगृह बनने के बाद सहरसा जिले के सौरबाजार, कहरा व सोनवर्षा, सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज व जदिया और मधेपुरा जिले के मुरलीगंज, गम्हरिया और सिहेंश्वर प्रखंडों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती होती थीे। उन इलाकों के किसान उसकी खेती के जरिए अपने बेटे-बेटियों की पढ़ाई लिखाई से लेकर बिटिया के हाथ पीले करने तक के कार्य निबटाते थे। किसान दिसम्बर- जनवरी में उत्पादित आलू भंडारगृह में रखते थे। फिर दुर्गापूजा के समय वहां से आलू निकालकर महंगी कीमत पर स्थानीय और दूसरे प्रदेशों में बेचकर अच्छी खासी मुनाफा कमाते थे। सौरबाजार के किसान महेन्द्र महतो कहते हैं कि उस दौरान उनलोगों के लिए आलू की खेती बहुत लाभदाई साबित होती थी। परंतु अब उनलोगों को माटी के मोल आलू बेचने पड़ रहे हैं। इस समय तो आलू इतना महंगा हो गया है कि वे लोग खुद उसे नहीं खरीद पा रहे हैं। साहपुर के रामसेवक यादव का कहना है कि शीतगृह न रहने से स्थिति आज बदल चुकी है। इससे अब किसान इसकी खेती से मुंह मोडऩे लगे हैं। हर वर्ष भंडार खुलने की उम्मीद से किसान आलू की खेती करते हैं, परंतु भंडार चालू नहीं हो पाने के कारण उन्हें निराश होना पड़ता है।
जानकारी के अनुसार बिजली बिल का मामला उपभोक्ता फोरम में चल रहा है। बिस्कोमान और बिजली विभाग के बीच समझौता होने की उम्मीद है। बिजली बिल पर समझौता होते ही बकाए विद्युत विपत्र का भुगतान कर दिया जाएगा। बिजली कनेक्शन प्राप्त होते ही विभाग द्वारा पुन: शीत भंडार गृह चालू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इसके लिए विभागीय स्तर से प्रयास किया जा रहा है।
प्रदीप कुमार ङ्क्षसह, पूर्व प्रबंधक, बिस्कोमान शीत भंडार, सहरसा।