पहाड़ और पठार पर करेले की खेती से मालामाल हो रहे किसान, बांका के किसानों की इस तरह बढ़ रही आमदनी

पहाड़ और पठार पर करेले की खेती से किसान मालामाल हो रहे हैं। फुल्लीडुमर बौंसी समेत आसपास के इलाके के किसान बरसात के मौसम में बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते हैं। इससे वे कम लागत में ज्‍यादा मुनाफा...!

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 04:15 PM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 04:15 PM (IST)
पहाड़ और पठार पर करेले की खेती से मालामाल हो रहे किसान, बांका के किसानों की इस तरह बढ़ रही आमदनी
पहाड़ और पठार पर करेले की खेती से किसान मालामाल हो रहे हैं।

बांका [राहुल कुमार]। पहाड़ी इलाके की दर्जनों बस्तियों में कड़वे करेले की खेती अभी लोगों की जिंदगी में मिठास घोल रही है। पिछले तीन-चार सालों में इसका विस्तार लगातार जारी है। पहले सालों भर खाली रहने वाली पहाड़ी जमीन पर अभी फल रहे करेला ने लोगों को जीने का नया सहारा दिया है। इस इलाके में जंगली सूअर के आतंक से लोगों की खेतीबारी उजड़ ही चुकी थी।

ऐेसे में करेला उनकी जिंदगी के लिए रामवाण साबित हुआ है। अमरपुर इलाके में झरना पहाड़ी से नीचे उतरते ही अभी बरसात के मौसम में खेतों का करेला देखकर लोगों का मन गदगद हो जाता है। पिरौटा, महादेवस्थान, दुमकाडीह, कल्याणपुर, सिंगरपुर, कुर्थीबारी, कटहरा से लेकर पहाड़ी किनारे वाले दो दर्जन गांवों से अभी हर सुबह करेला लोड पिकअप निकलने का ²श्य इसकी समृद्घि का गवाह है। सूईया, बौंसी, चांदन के इलाके में भी पहाड़ी गांव के लोग करेले को जंगली सूअर के खिलाफ अचूक फसल मानकर खेती कर रहे हैं। सूअर करेला कड़वा होने के कारण सूअर इसे नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। दूसरे फसल का अधिकांश हिस्सा सूअर चौपट कर देता था।

लाकडाउन और शराबबंदी के बाद खेती बना सहारा

झरना पहाड़ के पास राजीव कोल, परमेश्वर मरांडी, धनेश्वर मुर्मू आदि ने बताया कि पहाड़ से सटा होने के कारण इस इलाके में जंगली सूअर का खूब प्रकोप है। इस कारण इस जमीन पर लोगों ने खेती छोड़ दी थी। परदेश कमाकर और गांव-गांव में शराब बनाकर परिवार चलता था। लेकिन शराबबंदी और लाकडाउन के बाद परदेश और शराब बनाने का काम कम हो गया है।

ऐसे में किसानों ने पहाड़ी ढलान वाले खेतों में करेले की खेती की शुरुआत की। तीन-चार साल में बीघा दो बीघा की खेती हर गांव में फैल गई। पहाड़ी जमीन के कारण इस खेत में अभी पानी भी जमा नहीं होता है। दूसरा बरसात के कारण करेला के खेत को सिंचाई की आवश्यकता भी नहीं होती है। किसानों ने बताया कि बीज के बाद दवा और खाद में पूंजी लगती है। इसके बाद उनका मेहनत होता है। इस समय सब्जी महंगी होती है। अभी थोक करेला डेढ़ से ढाई हजार रुपया ङ्क्षक्वटल बिक रहा है। एक बीघा करेला लगाने वाला भी आसानी से रोजाना दो-चार हजार रुपया का करेला बेच लेता है। इससे उनकी ङ्क्षजदगी खुशहाल है।

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