Durga Puja 2020 : सूबे में अलग पहचान रखता है गिद्धौर का दशहरा, जानिए... इसकी महत्‍ता

Durga Puja 2020 यहां मां की आराधना से निसंतान दंपत्ति को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। पहले दशहरा पर यहां के प्रसिद्ध मेले में कभी मल्लयुद्ध तीरंदाजी कवि सम्मलेन नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ करता था।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 06:36 AM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 06:36 AM (IST)
Durga Puja 2020 : सूबे में अलग पहचान रखता है गिद्धौर का दशहरा, जानिए... इसकी महत्‍ता
गिद्धौर स्थित ऐतिहासिक मंदिर में स्थापित मां दुर्गे की प्रतिमा।

जमुई [आनंद कंचन]। Durga Puja 2020 : लगभग चार सौ वर्षों पूर्व गिद्धौर राज रियासत द्वारा पतसंडा में राजा जय मंगल सिंह द्वारा स्थापित ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर का सूबे में अपना विशेष स्थान है। यह मंदिर शास्त्रों में शक्ति पीठ के रूप में वर्णित है। इस मंदिर में आयोजित दुर्गा पूजा सदियों से चर्चा में रहा है। इस इलाके के लोग यहां के दशहरे को देखने अन्य प्रांतों से भी पहुंचते हैं। लोक परंपरा व पौराणिक विधान के अनुसार पूजा संपादन का अनोखा संगम आज भी यहां देखने को मिलता है। इसलिए लोगों की जुबान पर सदियों से एक ही कहावत आज भी प्रचलित है, काली है कलकत्ते की, दुर्गा है परसंडे की, अर्थात काली के प्रतिमा की भव्यता का जो स्थान बंगाल प्रांत में है, वही स्थान गिद्धौर के परसंडा में स्थापित इस ऐतिहासिक मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा का है। यहां पर नवरात्रि के समयावधि में हर रोज हजारों श्रद्धालु अनंत श्रद्धा व अखंड विश्वास के साथ माता दुर्गा की प्रतिमा को निहारते व उनकी अराधना करते नजर आते हैं।

इस मंदिर के इतिहास में वर्णित पौराणिक कथाएं

सदियों पूर्व से जैनागमों में चर्चित पवित्र नदी उज्ज्वालिया वर्तमान में उलाय नदी के नाम से प्रसिद्ध है तथा नाग्नी नदी तट के संगम पर बने इस मंदिर में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना होती चली आ रही  है। गंगा और यमुना सरीखी इन दो पवित्र नदियों में सरस्वती स्वरुपणी दुधियाजोर मिश्रित होती है, जिसे आज भी झाझा रेलवे के पूर्व सिग्नल के पास देखा जा सकता है। जैनागमो में किए गए वर्णन के अनुसार इस संगम में स्नान करने के उपरांत मां दुर्गा मंदिर में हरिवंस पुराण का श्रवण करने से नि:संतान दंपत्ति को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

इस मेले की ऐतिहासिक परंपरा

दशहरा के अवसर पर यहां के प्रसिद्ध मेले में कभी मल्लयुद्ध, तीरंदाजी, कवि सम्मलेन, नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि उन दिनों गिद्धौर महाराजा दर्शन के लिए आम-अवाम के बीच उपस्थित होते थे तो दूसरी विशेषता यह थी कि इस दशहरा पर तत्कालीन ब्रिटिश राज्य के बड़े-बड़े अधिकारी भी मेले में शामिल होते थे, जिसमें बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर एडेन, एलेक्जेंडर मैकेंजी, एनड्रफ फ्रेज, एडवर्ड बेकर जैसे अंग्रेज शासक गिद्धौर में दशहरा के अवसर पर तत्कालीन  महाराजा के निमंत्रण पर गिद्धौर आते थे। जब राज्याश्रित इस मेले को चंदेल वंश के उत्तराधिकारी ने जानाश्रित घोषित कर दिया तब से लेकर आज तक पौराणिक परंपरा के अनुरूप ग्रामीणों द्वारा चयनित कमेटी व दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा की अध्यक्ष की देखरेख में दुर्गा पूजा का आयोजन कराया जा रहा है। कमेटी के अध्यक्ष व पतसंडा पंचायत की मुखिया संगीता सिंह ने बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी के नियमों के साथ बिना मेले का आयोजन कराए पूजा की जा रही है।

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