शक्ति पीठ के रूप में पूजी जाती हैं दुर्गाबाड़ी की मां दुर्गा मां
भागलपुर। मशाकचक दुर्गाबाड़ी की दुर्गा मां शक्तिपीठ के रूप में पूजी जाति हैं।
भागलपुर। मशाकचक दुर्गाबाड़ी की दुर्गा मां शक्तिपीठ के रूप में पूजी जाति हैं। इस स्थान के प्राचीनता की बात की जाय तो एक सौ वर्ष से सामूहिक पूजा की जाती है। इससे पहले कितने दिनों से दुर्गा मां की इस स्थान पर पूजा होती है इसकी ठोस जानकारी किसी के पास नहीं है। अर्थात सदियों पहले से मां दुर्गा यहां पूजी जाती रही हैं।
बेलूर मठ की तरह होती दुर्गाबाड़ी में पूजा
पूजा समिति के सचिव सुब्रतो मोइत्रा ने बताया कि पश्चिम बंगाल के बेलुरमठ में जिस प्रकार पूजा होती है ठीक उसी प्रकार यहां पूजा करने की परंपरा रही है। 1918 ईसवी से यहां सामूहिक पूजा हो रही है। उससे पहले कब से यहां पूजा की जाती रही है इसकी जानकारी नहीं है। यह स्थान शक्तिपीठ है। यहां मां की पूजा सदियों से होती आ रही है। शहर में सामुहिक पूजा का कन्सेप्ट दुर्गाबाड़ी से ही आरंभ हुआ है। नवरात्र के पंचमी तिथि से मेढ़ पर मां दुर्गा की स्थापना होती है। इस दरबार में सच्चे मन से आए श्रद्धालुओं की झोली भर जाती है। मां के दरबार से कोई निराश नहीं जाता है। इसके मुख्य पुरोहित बिमल मुखोपाध्याय कोलकाता से आकर देवी का आह्वान और पूजा करते हैं। बंगाल के ही मूर्तिकार तरुण पाल प्रतिमा बनाते हैं। इसके पहले उनके वंशज ही यहां का प्रतिमा बनाते रहे हैं। मां के विराजते ही दुर्गा शप्तशति का पाठ, महाआरती, महाभोग में श्रद्धालु समर्पित हो जाते हैं। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बैदिक मंत्रोचार के बीच बंगाली पद्धति से भगवती की विशेष पूजा की जाती है।
उन्होंने कहा कि पूजा समिति में पूजा करने के बाद जो राशि बचती है, उसे सोशल वेलफेयर में लगाया जाता है। कई सामाजिक काम पूजा समिति करती रहती है। जैसे गरीब बच्चों को पठन-पाठन में सहयोग, भारत सेवा संघ में भी योगदान दिया जाता है। कोरोना गाइडलाइन के अनुसार छोटा पंडाल बनाया जा रहा है। भीड़भाड़ कम लगे इसका ध्यान रखा जाएगा। दुर्गा पूजा में दुर्गाबाड़ी में आस्था की त्रिवेणी बहती है।