यहां की ताजी नहीं, सूखी मछलियों की बंगाल तक रहती है मांग, जानिए क्या है खास
सहरसा की सूखी मछलियों की मांग बंगाल तक खूब होती है। इन मछलियों को विाशेष तरीके से तैयार किया जाता है। इसकी अच्छी कीमत भी मछुआरे को मिल रही है। मछुआरे मछली को देसी तकनीक ( बांस के चचरी) के सहारे धूप में सुखाकर नमी मुक्त कर देते हैं।
सहरसा [राजेश रंजन]। इस इलाके की देसी मछलियां स्वाद के मामले में बेहतर होती है। यही कारण है कि इन देसी मछलियों को सूखाकर भी कई लोग व्यवसाय कर रहे हैं। सूखी मछलियों का बिहार ही नहीं बंगाल तक डिमांड रहने के कारण इस धंधे से कई लोग जुड़ने लगे हैं। इसकी अच्छी कीमत भी मछुआरे को मिल रही है।
कई नदियों में पकड़ते हैं मछली
प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न नदी कोणे, तिलाबे, कोसी आदि जगहों पर लोग मछली पकड़ते हैं। मछली को देसी तकनीक ( बांस के चचरी) के सहारे धूप में सुखाकर नमी मुक्त कर देते हैं। फिर उस सूखी हुई मछलियों को बिहार सहित बंगाल के कई जिले व दूसरे प्रदेशों में भेजा जाता है। खासकर छोटी मछली पोठिया, रेवा, बुआरी, इचना, छई, गैंची, सौराठी, कतली आदि प्रजातियों को धूप में सुखाया जाता है। स्थानीय मछुआरे बताते हैं कि एक किलो सूखी मछली पर करीब 150-250 रुपए किलो की लागत आती है। जबकि बंगाल में इनका कीमत 400 रुपए प्रति किलो तक मिलता है। कहा कि पारंपरिक तौर पर जो जानकारी हमें अपने बड़े-बुजुर्गों से मिली है उसी के आधार पर काम कर रहे हैं। बताया कि ताजी मछलियां जो स्थानीय बाजार में नहीं बिकती है उसे ही सूखाकर भेजा जाता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
जिला मत्स्य पदाधिकारी मनोरंजन कुमार सिंह ने बताया कि विभाग द्वारा समय-समय पर मछुआरों को प्रशिक्षण दिया जाता है। मछलियों के प्रोसेसिंग का प्लांट महंगे रहने के कारण लोग मछली सूखाने के लिए देसी तकनीक का प्रयोग कर रहे है। इस तकनीक को दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित किया जा सकता है।
मत्स्य पालकों को दी जा रही मदद
सरकार मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है। सरकार की आेर से इसके लिए मदद भी दी जा रही है। नए तालाब आदि की खुदार्इ के लिए भी मदद की व्यवस्था है। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग इस क्षेत्र में आएं।