कोसी क्षेत्र में ड्रैगन फू्रट की खेती को दिया जाएगा बढ़ावा : कुलपति

कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति डा. अरुण कुमार ने 12वें स्थापना दिवस पर कहा कि कोसी क्षेत्र में ड्रैगन फूंट को बढ़ावा दिया जाएगा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 08:09 AM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 08:09 AM (IST)
कोसी क्षेत्र में ड्रैगन फू्रट की खेती को दिया जाएगा बढ़ावा : कुलपति
कोसी क्षेत्र में ड्रैगन फू्रट की खेती को दिया जाएगा बढ़ावा : कुलपति

भागलपुर। कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति डा. अरुण कुमार ने 12वें स्थापना दिवस पर कहा कि कोसी क्षेत्र में ड्रैगन फ्रूट की खोती को बढ़ावा दिया जाएगा। बीज उत्पादन, भंडारण और प्रसंस्करण क्षमता में वृद्धि के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।

उन्होंने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए कहा कि पूर्णिया और किशनगंज में दो कृषि महाविद्यालयों की स्थापना की गई। नामांकन के लिए 275 सीटों को बढ़ाकर 325 किया गया। कैंपस पलेसमेंट के माध्यम से 436 छात्रों को नौकरी दिलाई गई। आठ विषयों में दस अनुभवात्मक लर्निंग कार्यक्रम की शुरुआत की गई। किशनगंज में उद्यान एवं रेशम के दो नए अनुसंधान केंद्र खोले गए। 26 फसल प्रभेद एवं 44 कृषि तकनीक का विकास किया गया। आर्सेनिक के प्रभाव से फसलों को बचाने के लिए बैक्टीरिया का विकास किया गया। ठोस एवं तरल जैविक खाद तथा उत्तक संव‌र्द्धन विधि द्वारा बीमारी मुक्त केले के उत्पादन के लिए प्रयोगशाला की स्थापना की। राज्य के जर्दालु आम, कतरनी धान, शाही लीची, अनानास को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक संकेतक के रूप में दर्जा दिलाया गया। बीज उत्पादन में 50 प्रतिशत वृद्धि की। 2019-20 में बीज बिक्री से 280 लाख रुपये राजस्व की प्राप्ति हुई। उन्होंने कहा कि किसान चौपाल की सराहना नीति आयोग ने भी की है। बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए अपनी क्यारी अपनी थाली माडल का विकास किया गया है।

विजन 2030 पर चर्चा करते हुए कुलपति ने कहा कि वानिकी, कृषि अभियंत्रण, खाद्य विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी, कृषि व्यवसाय प्रबंधन, सामुदायिक विज्ञान और जैव प्रद्योगिकी महाविद्यालय की स्थापना और डिग्री कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, मधुमक्खी पालन और उत्तक संव‌र्द्धन के क्षेत्र में अनुभवात्मक लर्निंग कार्यक्रम की शुरुआत, बहु विषयक और अंतर संस्थागत शोध कार्यक्रम को बढ़ावा, निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशाला की स्थापना की गई।

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मांग से अधिक होने वाले उत्पादन को सुरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती : डा. आनंद

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के उप महानिदेशक (उद्यान) डा. आनंद कुमार सिंह ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने से पहले सबौर में कृषि महाविद्यालय था, जिसने उस समय हाइब्रिड बीज विकसित किया, जब तकनीक बहुत विकसित नहीं थी। आम के प्रभेद विकसित किए गए। इसका अनुकरण देश दुनिया में किया गया। डा. आनंद ने कहा कि अभी मांग से अधिक उत्पादन हो रहा है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ऐसी तकनीक विकसित किया जाए, जिससे तैयार उत्पाद को नुकसान से बचाया जा सके। 2013-14 में 178 मिलियन टन सब्जी की खपत थी। बीते वर्ष 190 मिलियन टन उत्पादन हुआ और वर्तमान वित्तीय वर्ष में 193 मिलियन टन उत्पादन होने की संभावना है। सब्जी और फल आदि की प्रकृति ऐसी है कि ये कम समय में ही बर्बाद होने लगते है। ऐसे में अगर हम ऐसे उत्पादों का मूल्यव‌र्द्धन कर सकें तो कुपोषण के खिलाफ जंग में जीत अवश्य मिलेगी। इसी प्रकार धान, मक्का, गेहूं आदि का भी मांग से अधिक उत्पादन हो रहा है। पहले फसल के उत्पादन के बाद हम बाजार ढूंढते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। अब हमें बाजार के आधार पर फसलों का चयन करना चाहिए। कृषि विश्वविद्यालय ने पहले भी चुनौती को अवसर में बदला है। पूरे देश में 29 मिलियन टन मक्के का उत्पादन होता है। बिहार में आठ से दस मिलियन टन मक्के का उत्पादन होता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्य बिहार को प्रेरणाश्रोत मानते हुए इसे चुनौती के रूप में ले रहे हैं।

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मानव जीवन का पहला व्यवसाय कृषि : डा. नीलिमा गुप्ता

तिलकामांझी विश्वविद्यालय की कुलपति डा. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि कृषि मानव का सबसे पहला व्यवसाय है। यही कारण है कि एग्रो इंडस्ट्री को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कृषि विश्वविद्यालय ने अल्प समय में कृषि शिक्षा, अनुसंधान, प्रसार और प्रशिक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। फूल गोभी की नई प्रजाति सबौर मुक्ता को अखिल भारतीय समन्वयक सब्जी परियोजना के तहत पूरे देश में उत्पादन के लिए चयनित किया गया है। यह बिहार कृषि विश्वविद्यालय और पूरे भागलपुर के लिए गौरव की बात है। बिहार के कई क्षेत्र आर्सेनिक से प्रभावित हैं। सबौर विश्वविद्यालय ने फसलों में आर्सेनिक संग्रहित होने से रोकने के लिए तकनीक विकसित की है। यह भी गौरव की बात है।

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कार्यक्रम में ये लोग भी थे मौजूद

अनुसंधान निदेशक डा. फिजा अहमद, निदेशक प्रशासन डा. पीके सिंह, प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने, रजिस्ट्रार डा. एम. हक, प्रसार सह निदेशक डा. आरएन सिंह, पीआरओ डा. शशिकांत, संजय मिश्रा आदि मौजूद थे।

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