Diwali-2021: अबकी जरूर खरीदें मिट्टी का दीया, क्योंकि इनके घर नहीं हुए त्योहार पर रौशन

Diwali-2021 प्रकाश पर्व दीवाली के मौके पर दूसरों के घरों को रौशन करने वालों के घर पर अंधेरा है। त्योहार पर भी इनके बनाए हुए माटी के दीये कम ही बिकते दिखाई पड़ते हैं। कुम्हार की चाक तो तेजी से चलती है लेकिन...

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 02:40 PM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 02:40 PM (IST)
Diwali-2021: अबकी जरूर खरीदें मिट्टी का दीया, क्योंकि इनके घर नहीं हुए त्योहार पर रौशन
Diwali-2021: अबकी दिवाली-माटी के दीयों वाली, करें ये प्रामिस

संवाद सूत्र, सहरसा। Diwali-2021: चाइनीज लाइट के बढ़ते प्रचलन के कारण मिट्टी का दीया बनाने वाले लोगों के घर में दीपावली जैसे त्योहार के मौके पर भी खुशी नहीं होती। इनलोगों का धंधा धीरे- धीरे सिमटता जा रहा है। इस घंधे से रोजी नहीं चल पाने के कारण लोग रिक्शा, ठेला चलाकर, मजदूरी कर अथवा दूसरे प्रदेश में पलायन कर रोजी कमाने के लिए विवश हो गए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना प्रारंभ होने के बाद इनलोगों द्वारा बनाया जानेवाले मिट्टी का खपड़ा भी अब नहीं बिकता है। पहले गांव घर के मेला-हाट आदि में मिट्टी के बर्तन की बिक्री होती थी, जो अब नहीं हो रही है। ऐसे में धीरे- धीरे मिट्टी का काम करनेवाले लोगों का धंधा बंद होने लगा है।

कभी दीपावली पर्व के मौके पर मिट्टी का काम करनेवाले कुम्हार जाति के लोगों के घरों में जश्न जैसा माहौल रहता था, परंतु अब इस पर्व भी उनके यहां कोई खुशी नहीं होती। लोग रंग-बिरंगे चाइनीज झालर से अपना घरों को सजाना गौरव समझते हैं। सुलिंदाबाद के रामजी पंडित कहते हैं कि पहले वे लोग एक महीने पूर्व से ही मिट्टी जमा कर दीपावली के लिए मिट्टी का दीया और डिबिया बनाते थे। गांव- गांव जाकर इसकी खूब बिक्री की जाती थी, परंतु अब जितना बनता है, वह भी नहीं बिक पाता। मेहनत की तुलना में मजदूरी भी नहीं निकल पाता।

मुरलीवसंतपुर के शिवन पंडित का कहना है कि इस धंधे से अब दो जून की रोटी भी मिलना मुश्किल है। इसलिए वे लोग दूसरा काम करने लगे हैं। गोबरगरहा के महेंद्र पंडित का कहना है कि कुछ लोग अब शौकिया कुल्हड़ में चाय पीते थे। कुछ दुकानों में इसका उपयोग होता है। इस बहाने थोड़ा- बहुत उनलोगों का धंधा चल रहा है। अब दीपावली के मौके पर भी उनलोगों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। लोग मिट्टी का दीया जलाने में शर्म महसूस करते हैं। सरकार की तरफ से उनलोगों के लिए कोई उपाय नहीं सोचा जा रहा है। ऐसे में वे लोग अपने परिवार के परवरिश के लिए दूसरा धंधा अपनाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

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