किशनगंज सदर अस्पताल की सीढ़ियों पर घंटों पड़ा रहा दिव्यांग का शव, पत्नी की चित्कार से भी न दहला जिम्मेदारों का कलेजा
किशनगंज सदर अस्पताल में जो कुछ हुआ वो बहुत मार्मिक और ह्रदय को कचोटने वाला था। दिव्यांग की बिलखती पत्नी की सुध जिम्मेदारों ने लेना मुनासिब न समझा। पति के इलाज के लिए पहुंची पत्नी को भी नहीं पता था कि उसके पति की मौत हो जाएगी और फिर...
संवाद सहयोगी, किशनगंज। किसी तरह अपनी जिंदगी काट रहे दिव्यांग की मौत के बाद उसने ये न सोचा होगा कि स्वजनों को मदद के लिए बिलखना पड़ेगा, गिड़गिड़ना पड़ेगा कि कोई मेरे पति, कोई मेरे पिता या कोई मेरे भाई का शव घर तक ही पहुंचा दो। एक हाथ और एक पैर से दिव्यांग सियाराम मांझी को जिंदगी की जंग जीतने के लिए किशनगंज सदर अस्पताल ले जाया गया, वहां वो उसे हार गया। बदकिस्मती देखिए कि तीन बच्चों का लालन पोषण करने वाले मांझी को मौत के बाद भी मदद न मिल सकी।
सदर अस्पताल में सियाराम मांझी का शव सीढ़ियों में घंटों तक पड़ा रहा। अररिया जिले के सिकटी थाना क्षेत्र स्थित पररिया गांव निवासी 50 वर्षीय सियाराम मांझी की बदकिस्मती ने मौत के बाद भी उसका साथ नहीं छोड़ा। एक हाथ और एक पैर से दिव्यांग होने के कारण उसकी जिंदगी घसीट-घसीट कर चल रही थी। ऊपर से पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चों के लालन पालन में उसने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। लेकिन बीमारी के कारण घर गृहस्थी चलाना भी मुश्किल हो गया।
सोमवार को पत्नी फुलन देवी ने उसे इलाज के लिए किशनगंज एमजीएम मेडिकल कालेज में भर्ती कराया। लेकिन कोरोना जांच के लिए उसे सदर अस्पताल भेज दिया गया। सदर अस्पताल में जांच सैंपल देने के बाद जांच गृह से बाहर निकलते ही उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और वह सीढ़ियों पर गिरकर बेहोश हो गया। डयूटी पर तैनात चिकित्सक राहुल कुमार ने मौके पर ही उसका इलाज किया लेकिन इलाज के क्रम में उसकी मौत हो गई।
सियाराम की मौत के बाद घंटों उसका शव सीढ़ियों पर ही पड़ा रहा। किसी ने भी उसकी सुधी लेने की जहमत तक नहीं उठाई।
साहब भी अपने लग्जरी वाहन से आते-जाते रहे। लेकिन वाहन के बंद शीशे के कारण पत्नी फुलन देवी और उसके बच्चों की कारूणिक चित्कार उनके कानों तक नहीं पहुंच सकी। यह दीगर बात है कि उनके कारूणिक क्रंदन को सुनकर पूरे अस्पताल परिसर का माहौल गमगीन हो गया। बहरहाल स्थानीय लोगों की सूचना पर अस्पताल प्रबंधन ने शव वाहन तो उपलब्ध करा दिया। लेकिन मौके पर उपस्थित भीड़ कोरोना के भय से शव को उठाना तो दूर पास जाने से भी परहेज किया।
इस दौरान सदर अस्पताल के साफ सफाई व्यवस्था का जिम्मा उठा रखे कृष्णा बागवानी विकास मिशन के कर्मी भी चुपचाप मुकदर्शक बने रहे। किसी ने भी शव को हाथ लगाना तक मुनासिब नहीं समझा। शव की दुर्दशा को देख कुछ स्थानीय युवाओं ने मदद का हाथ बढ़ाया और शव को वाहन में लाद कर पररिया गांव के लिए रवाना कर दिया।