विवि प्रशासन और छात्रों के बीच समन्वय जरूरी, इसे नहीं बनाएं राजनीति का अखाड़ा Bhagalpur News

भारत में गुरुकुल की परंपरा थी। बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ जीवन की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती थी। आज यह किताबी शिक्षा में ही सिमट गई है। आज देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था है।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Tue, 14 Jan 2020 03:01 PM (IST) Updated:Tue, 14 Jan 2020 03:01 PM (IST)
विवि प्रशासन और छात्रों के बीच समन्वय जरूरी, इसे नहीं बनाएं राजनीति का अखाड़ा Bhagalpur News
विवि प्रशासन और छात्रों के बीच समन्वय जरूरी, इसे नहीं बनाएं राजनीति का अखाड़ा Bhagalpur News

भागलपुर, जेएनएन। विश्वविद्यालय परिसरों को राजनीति का अखाड़ा बनने से बचाने के लिए गहन चिंतन-मंथन और उस अनुरूप व्यवस्था की जरूरत है। सांस्कृतिक परिवेश का निर्माण और विश्वविद्यालय प्रशासन व छात्रों के बीच बेहतर समन्वय बनाने पर काम करना होगा।

यह बात दैनिक जागरण कार्यालय में संपादकीय विभाग की अकादमिक बैठक में विशिष्ट अतिथि टीएनबी कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के प्राध्यापक मनोज कुमार ने कही। अकादमिक बैठक का विषय था-'राजनीति का अखाड़ा बनने से कैसे बचें विश्वविद्यालय?'

बढ़ रही संवादहीनता

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच बढ़ रही संवादहीनता के कारण ही दूरियां बढ़ रही हैं। छात्रों को विवि की विभिन्न समितियों में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाने के कारण वे अपनी बात नहीं रख पाते हैं। उन्हें धरना-प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ता है। उनसे बैठकर बात की जानी चाहिए।

राजनीतिक दलों से हो सम्मानजनक दूरी

कई छात्र संगठन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े या प्रभावित हैं। राजनीतिक दलों से छात्र संगठनों को भी एक सम्मानजनक दूरी बनाने की आवश्यकता है। यह समझना होगा कि छात्र पठन-पाठन के लिए आए हैं, उनके लिए कॅरियर अहम है। अन्य पहलू या विचारधारा की भी अपनी जगह अहमियत है, पर वह उनके कॅरियर से समझौता नहीं। एक सकारात्मक सोच के साथ हर चीज को आत्मसात करते हैं तो परिदृश्य बदल जाता है।

जो सक्षम नहीं, उन्हें ही मिले सुविधा

भारत में गुरुकुल की परंपरा थी। बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ जीवन की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती थी। आज यह किताबी शिक्षा में ही सिमट गई है। आज देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था है। एक गरीब बच्चों के लिए है तो दूसरी साधन संपन्न बच्चों के लिए। सरकारी विवि में छात्रों को रहने, खाने और पढ़ाई में रियायत मिलती है। इसे समझना होगा कि इसकी जरूरत किसे है? छात्रों की संख्या सीमित करनी होगी। यह उन्हें मिले, जो सक्षम नहीं हैं। क्या कारण है कि निजी संस्थानों में सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान और सरकारी संस्थानों में आए दिन प्रदर्शन। आखिर क्यों? छात्र संगठनों को भी छात्र हित की बात करनी होगी। विवि में शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद सहित अन्य गतिविधियां भी होनी चाहिए। सीनेट और सिंडिकेट में छात्रों को प्रतिनिधित्व मिले।

शिक्षण संस्थानों का राजनीतिक इस्तेमाल गलत

प्रो. मनोज ने कहा कि विश्वविद्यालय परिसरों में आए दिन होने वाली घटनाओं ने शिक्षा व्यवस्था व उसको संभालने वाले तंत्र की कार्यशैली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालयों का इस्तेमाल गलत है। यह न छात्रों के हित में है, न ही समाज और देश के, क्योंकि परिवार बहुत उम्मीदों के साथ बच्चों को पढऩे भेजता है। हम सब को इस पर विचार करना होगा। विवि में कौशल विकास से जुड़े कोर्स को तरजीह देनी होगी, ताकि वहां से पढ़ाई कर निकले छात्रों को आसानी से रोजगार मिल सके। वे अपने भविष्य के प्रति ज्यादा से ज्यादा जवाबदेह बनें।

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