उड़ गई सिंगारपुर की रंगत! 10 साल पहले आए थे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तब कही थी ये बातें, अब तक बुनकर देख रहे राह

बुनकरों का कहना है कि 10 साल पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिंगारपुर आए थे उन्होंने हमारे लिए कई वादे किए लेकिन वे वादे पूरे नहीं हुए। आज भी हम इसी उम्मीद पर हैं कि कब हमारे सिंगारपुर की रंगत वापस लौटेगी?

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 05:35 PM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 05:35 PM (IST)
उड़ गई सिंगारपुर की रंगत! 10 साल पहले आए थे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तब कही थी ये बातें, अब तक बुनकर देख रहे राह
10 साल पहले आए थे सीएम नीतीश कुमार, अब जिंदगी और हो गई है बदहाल।

बोधनारायण तिवारी,धोरैया, (बांका)। प्रखंड में सिंगारपुर गांव की पहचान कभी हाथ से तैयार खूबसूरत रंग-बिरंगी चादर, गमछा, रजाई कवर, लूंगी व साड़ियों आदि से होती थी। 500 से भी अधिक बुनकरों को हस्तशिल्प के इस उत्पाद के लिए आमदनी के साथ क्षेत्र में सम्मान भी मिलता था। समय के साथ धागे, रंग आदि के मूल्य में वृद्धि होने तथा अपेक्षित सरकारी सहायता नहीं मिलने से धीरे-धीरे ये बुनकर बेहाल होते चले गए। अब इस काम से जुड़े यहां के 80 फीसद बुनकर जीवकोपार्जन के लिए मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, पानीपत, हैदराबाद आदि महानगरों में अपनी कला बेच रहे हैं। 500 घरों का वह काम 30 से 40 घरों तक सिमट गया है। बुनकर बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आए थे लेकिन...

हकीम अंसारी कहते हैं, 'पहले जो महिलाएं करघा से सूत काटती थीं, अब वे खेतों में काम कर रही हैं। 10 साल पहले गांव का नाम सुनकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यहां आए थे। उन्होंने कई वादे किए, तब बुनकरों की उम्मीद को पंख लग गए थे। गांव में क्लस्टर की घोषणा पर काम नहीं हुआ। जमीन रहने के बाद भी कलस्टर नहीं लगा है। हम इसी उम्मीद में थे कि सरकार हमारी कुछ मदद करेगी लेकिन मदद हुई नहीं।'

बुनकर पांचू अंसारी, बबलू अंसारी, दरूद अंसारी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा के बाद भी बुनकरों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। बुनकरों ने बताया कि इस महंगाई के समय में कपड़ा निर्माण को लेकर खरीदे गए धागा के दाम आसमान छू रहा है। पूंजी के अभाव में किसी तरह थोड़ा माल खरीदकर कपड़े तैयार कर उसे गांव गांव में घूम- घूम कर बेचकर जिंदगी काट रहे हैं।

वर्ष 1960 से चल रहे धंधा से विमुख हुए बुनकर

सिंगारपुर, चलना, चंद्रपुरा, अहिरो, घोपसंडा, जयपुर, रहमानडीह, भुसार, नौआबांध, कुर्थीटिकर,सठियारी आदि गांव के बुनकर अपने पुशतैनी धंधे को जीवित रखने में असहाय महसूस कर रहें है। बुनकर मु नियाज अंसारी, मो. सफीद अंसारी, मो. समीन अंसारी आदि ने बताया कि वर्ष 1989 में आई बाढ़ के कारण कच्ची मकान गिर जाने से करघा टूट गया। फलत: पूंजी के अभाव में दुबारा यह धंधा प्रारंभ नहीं हो पाया। इस कारण युवा बुनकरों का पलायन जारी है। कपड़े की तैयारी के लिए कच्चा धागा बौंसी के प्रदीप व पिंटू भुवानिया से लाने के बाद घर की महिलाएं उसे रंग बिरंगी रंगों में रंगकर सुखाने के बाद कपड़ा तैयार करती हैं। एक कारीगर दिन भर में पांच गमछे तैयार करते है। जिससे प्रति गमछा 65 से 70 रुपये में बेचा जाता है। जबकि बेडसीट 80 से 85 रुपये में बिक्री होती है।

'प्रति बुनकर एक लाख 20 रुपये की राशि सात बुनकरों को शेड बनाने के लिए दिया गया है। फिलहाल, अभी राशि की कमी है। इस कारण अन्य बुनकरों को नहीं दिया गया है। बुनकरों के उत्थान के लिए प्रोजक्ट बनाकर भेज दिया गया है।'- विनोद भाई, बुनकर सेवा केंद्र पदाधिकारी, भागलपुर

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